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– पहले यह धारणा परंपरागत रूप से बनी हुई थी कि महिलाएं उद्यमिता में जाने से कतराती हैं। इस सोच को आज के दौर की महिलाओं ने बदल कर रख दिया है। चाहे उद्यमिता का क्षेत्र हो या फिर कोई अन्य, महिलाओं ने अपने पैरों पर खड़े होकर न सिर्फ स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि वे परिवार का सहारा भी बनी हैं।
गीता यादव, वरिष्ठ पत्रकार
पिछले कुछ वर्षों में वास्तव में देश में उद्यमियों के रूप में उद्यम करने और सफल होने वाली महिलाओं की संख्या में काफी इजाफा हुआ है, जिससे देश की सामाजिक और आर्थिक जनसांख्यिकी प्रभावित हुई है। आज देश में 20 प्रतिशत से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों का स्वामित्व महिलाओं के पास है। यह कुल श्रम शक्ति का 23.3 प्रतिशत है। यह देखना दिलचस्प है कि देश का लगभग 50 प्रतिशत स्टार्ट-अप इकोसिस्टम वर्तमान में महिलाओं द्वारा सशक्त है। महिला बल की इस बढ़ती भागीदारी से रोजगार का सृजन हुआ है। हजारों परिवारों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिली है। महिलाएं जो हमेशा अपने नेतृत्व कौशल के लिए जानी जाती हैं, आज बाधाओं को तोड़ रही हैं और इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण जैसे नए युग के उद्योगों पर हावी हो रही हैं, जहां 50 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी महिलाएं हैं।
इसके अलावा कृषि क्षेत्र में जहां मुख्य रूप से पुरुष प्रधान क्षेत्र नियोजित महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में अधिक है। यह देखते हुए कि भारत की महिला साक्षरता दर अब 68 प्रतिशत बढ़ गई है, जो आजादी के समय 9 प्रतिशत से बढ़कर वर्तमान में 77 प्रतिशत हो गई है। महिला साक्षरता की बढ़ती दर के अलावा देश में महिला उद्यमिता की निरंतर वृद्धि में योगदान देने वाले कई अन्य कारक हैं, जो भारत को अगले पांच वर्षों में महिला उद्यमियों के लिए एक केंद्र बना सकता है। सरकार और समाज के साझा प्रयासों के कारण आज भारतीय महिलाएं फुटकर व्यापार, रेस्टोरेंट, होटल, ब्यूटी पार्लर, फैशन डिजाइन, ऑटोमोबाइल, टूर एंड ट्रेवल्स, फूड प्रोसेसिंग, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, हस्तशिल्प, कृषि, कुटीर उद्योग आदि क्षेत्रों में अनवरत रूप से सफलता के नवीन कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।
ग्रामीण महिलाओं की ओर देखें तो वे कृषि, पशुपालन, सिलाई, कशीदाकारी आदि का व्यवसाय कर अपने परिवारों को समृद्ध बनाने के साथ-साथ रोजगार सृजन और वित्तीय आधार को मजबूत करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इन ग्रामीण महिलाओं के लघु और कुटीर उद्योग आधारित व्यावसायिक बुनियादी ढांचे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका है। सरकारी योजनाओं के अलावा विलेज फाइनेंशियल सर्विसेस जैसी माइक्रोफाइनांस कंपनियों ने लघु ऋण प्रदान के माध्यम से नकद आपूर्ति कर अपना हाथ बंटाया है। भारत में महिला उद्यमियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन अभी भी ऐसे कई कारण हैं, जिनकी वजह से महिलाएं उद्यमशीलता का रास्ता अपनाने से कतराती हैं। हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि उद्यमिता पर अभी भी पुरुष संस्थापकों का वर्चस्व है। हाल के वर्षों में कार्यस्थल समानता की दिशा में की गई प्रगति के बावजूद व्यवसायों में महिलाएं अभी भी बड़े पैमाने पर कम प्रतिनिधित्व और कम वेतन पर काम कर रही हैं।
अधिकांश महिलाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने से रोकने वाली नंबर एक बाधा उनकी फंडिंग तक पहुंच है। वास्तव में पुरुषों की तुलना में लगभग दोगुनी महिलाओं ने इसे व्यवसाय शुरू न करने का मुख्य कारण बताया, जो एक महत्वपूर्ण लिंग अंतर को दर्शाता है। सबसे बड़ी लिंग विसंगति परिवार और देखभाल की जिम्मेदारियों से संबंधित है, जो पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है। भारत में महिला उद्यमियों को सीमित वित्तीय संसाधनों और पूंजी तक पहुंचने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सीमित आर्थिक सुरक्षा, संपत्ति के स्वामित्व की कमी और सामाजिक बाधाओं के कारण पारंपरिक ऋणदाता महिलाओं को ऋण देने से झिझकते रहे हैं। ये ऋणदाता अक्सर गारंटी के साथ-साथ अन्य सख्त शर्तों की मांग करते हैं, जिससे महिलाओं के लिए ऋण प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
एक अध्ययन के अनुसार, भारत में महिलाओं की अगुवाई वाले कारोबार के लिए करीब 20.5 अरब डॉलर की पूंजी का अभाव है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों में ज्यादा मुनाफा 19 फीसदी की तुलना में 31 प्रतिशत होने के बाद भी उनके कर्ज मांगने के खारिज होने का अनुपात कहीं ज्यादा यानी पुरुषों के 8 प्रतिशत की तुलना में 19 फीसदी है और वे सूक्ष्म छोटे और मध्यम उद्योगों को सरकारी बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कुल कर्ज का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर पाती हैं। भारत में महिलाओं की उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय तकनीक के जरिए कर्ज देने में लैंगिक बराबरी को बढ़ावा देने की जरूरत है। हालांकि हाल के वर्षों में डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफार्मों के बढ़ने से महिलाओं के लिए न्यूनतम प्रतीक्षा समय के साथ व्यावसायिक ऋण प्राप्त करना आसान हो गया है और यही कारण है कि पहले की तुलना में महिला उद्यमियों की संख्या भी बढ़ी है।
सतत आर्थिक विकास, लैंगिक समानता और गरीबी उन्मूलन में महिलाओं की भागीदारी की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए भारत सरकार ने भी महिला उद्यमियों का समर्थन करने के लिए कई पहल शुरू की है। इन पहलों का एक उद्देश्य एक समावेशी और सहायक नीति ढांचा, वित्त तक समान पहुंच प्रदान करना, मेंटरशिप और नेटवर्क चैनलों का विस्तार करना है। कुल मिलाकर ये प्रयास महिला उद्यमियों के लिए अपना व्यवसाय संचालित करने और बढ़ाने के अवसर प्रदान करते हैं। सरकार की नारी शक्ति एक ऐसी पहल है, जो महिलाओं को बाजार में उपलब्ध दर से सस्ती दर पर आसान ऋण प्रदान करती है, जिससे महिलाओं को उनकी उद्यमशीलता आकांक्षाओं को साकार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। एक अन्य उदाहरण महिला उद्यमिता मंच है, जो भारत में महिला उद्यमिता से संबंधित सभी चीजों के लिए एक एकीकृत पोर्टल और वन-स्टॉप शॉप के रूप में कार्य करता है।
भौतिक बिक्री की पारंपरिक प्रक्रिया, जिसमें अक्सर घर-घर बिक्री या दुकान किराए पर लेने या खरीदने की आवश्यकता शामिल होती है। इसने कई भारतीय महिलाओं के लिए चुनौती पेश की, जिनके पास पारिवारिक प्रतिबद्धताएं, घरेलू कर्तव्य और सीमित धन था। हालांकि ई-कॉमर्स प्रवृत्ति और अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे डिजिटल बिक्री प्लेटफार्मों के उद्भव से महत्वपूर्ण बदलाव आया है। महिलाएं अब स्वस्थ कार्य जीवन संतुलन बनाते हुए अपने उत्पादों को अपने घरों में बेच सकती हैं। पूरे भारत और यहां तक कि विश्व स्तर पर ग्राहकों तक पहुंच सकती हैं। भारत का उद्यमिता परिदृश्य स्पष्ट रूप से बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जो लगातार देश में रहने वाली महिलाओं की क्षमता और दृढ़ संकल्प को उजागर कर रहा है।
आज भारत में 5.85 करोड़ उद्यमियों में से 80.5 लाख महिला उद्यमियों द्वारा देश के औद्योगिक विकास और विस्तार में सराहनीय योगदान प्रदान किया जा रहा है। साथ ही महिलाओं द्वारा संचालित औद्योगिक इकाइयों द्वारा लगभग 1.35 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। आज भारतीय महिला उद्यमियों का रुझान परंपरागत उद्योगों के साथ-साथ नवाचार वाले स्टार्ट-अप उद्योगों की ओर बढ़ता जा रहा है। अनेक महिलाएं अपना हाई प्रोफाइल जॉब छोड़कर नव प्रवर्तन और भावी विकास संभावनाओं से ओत-प्रोत उद्योगों की बागडोर संभाल रही हैं। जमीनी स्तर के आंकड़ों से पता चलता है कि आने वाले दशकों में भारत परिवर्तन की एक और लहर देखने को तैयार है, जिसमें कार्यबल पर महिलाओं का वर्चस्व होने के साथ-साथ देश के भविष्य को आकार दिया जा रहा है, जहां 30 मिलियन से अधिक महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसाय से साल 2030 तक 170 मिलियन नौकरियों की उम्मीद है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत का आर्थिक भविष्य आज पहले से कहीं अधिक उज्ज्वल दिखता है। महिला उद्यमिता को किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। महिला उद्यमी न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाती हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ाती है। भारतीय समाज में महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के लिए सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक मोर्चों पर बदलाव लाने की जरूरत है। अगर सरकार की नीतियां सहयोगी बनें, महिलाओं को नवाचार के लिए उचित आर्थिक सहायता मिल सके तो उनका क्षेत्र विस्तृत हो सकता है। वुमन एंटरप्रेन्योरशिप इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यदि महिलाओं में उद्यमशीलता को प्रोत्साहन दिया जाए तो देश में 15 से 17 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं। इसके लिए आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को बदलना जरूरी है। समाज को रूढ़िवादी सोच से बाहर निकलना होगा। महिलाओं की नवाचार से जुड़ी सोच और प्रयासों को बढ़ावा देना होगा। इसके साथ ही लैंगिक भेदभाव को दूर करना होगा।
गीता यादव, वरिष्ठ पत्रकार
पिछले कुछ वर्षों में वास्तव में देश में उद्यमियों के रूप में उद्यम करने और सफल होने वाली महिलाओं की संख्या में काफी इजाफा हुआ है, जिससे देश की सामाजिक और आर्थिक जनसांख्यिकी प्रभावित हुई है। आज देश में 20 प्रतिशत से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों का स्वामित्व महिलाओं के पास है। यह कुल श्रम शक्ति का 23.3 प्रतिशत है। यह देखना दिलचस्प है कि देश का लगभग 50 प्रतिशत स्टार्ट-अप इकोसिस्टम वर्तमान में महिलाओं द्वारा सशक्त है। महिला बल की इस बढ़ती भागीदारी से रोजगार का सृजन हुआ है। हजारों परिवारों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिली है। महिलाएं जो हमेशा अपने नेतृत्व कौशल के लिए जानी जाती हैं, आज बाधाओं को तोड़ रही हैं और इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण जैसे नए युग के उद्योगों पर हावी हो रही हैं, जहां 50 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी महिलाएं हैं।
इसके अलावा कृषि क्षेत्र में जहां मुख्य रूप से पुरुष प्रधान क्षेत्र नियोजित महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में अधिक है। यह देखते हुए कि भारत की महिला साक्षरता दर अब 68 प्रतिशत बढ़ गई है, जो आजादी के समय 9 प्रतिशत से बढ़कर वर्तमान में 77 प्रतिशत हो गई है। महिला साक्षरता की बढ़ती दर के अलावा देश में महिला उद्यमिता की निरंतर वृद्धि में योगदान देने वाले कई अन्य कारक हैं, जो भारत को अगले पांच वर्षों में महिला उद्यमियों के लिए एक केंद्र बना सकता है। सरकार और समाज के साझा प्रयासों के कारण आज भारतीय महिलाएं फुटकर व्यापार, रेस्टोरेंट, होटल, ब्यूटी पार्लर, फैशन डिजाइन, ऑटोमोबाइल, टूर एंड ट्रेवल्स, फूड प्रोसेसिंग, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, हस्तशिल्प, कृषि, कुटीर उद्योग आदि क्षेत्रों में अनवरत रूप से सफलता के नवीन कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।
ग्रामीण महिलाओं की ओर देखें तो वे कृषि, पशुपालन, सिलाई, कशीदाकारी आदि का व्यवसाय कर अपने परिवारों को समृद्ध बनाने के साथ-साथ रोजगार सृजन और वित्तीय आधार को मजबूत करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इन ग्रामीण महिलाओं के लघु और कुटीर उद्योग आधारित व्यावसायिक बुनियादी ढांचे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका है। सरकारी योजनाओं के अलावा विलेज फाइनेंशियल सर्विसेस जैसी माइक्रोफाइनांस कंपनियों ने लघु ऋण प्रदान के माध्यम से नकद आपूर्ति कर अपना हाथ बंटाया है। भारत में महिला उद्यमियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन अभी भी ऐसे कई कारण हैं, जिनकी वजह से महिलाएं उद्यमशीलता का रास्ता अपनाने से कतराती हैं। हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि उद्यमिता पर अभी भी पुरुष संस्थापकों का वर्चस्व है। हाल के वर्षों में कार्यस्थल समानता की दिशा में की गई प्रगति के बावजूद व्यवसायों में महिलाएं अभी भी बड़े पैमाने पर कम प्रतिनिधित्व और कम वेतन पर काम कर रही हैं।
अधिकांश महिलाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने से रोकने वाली नंबर एक बाधा उनकी फंडिंग तक पहुंच है। वास्तव में पुरुषों की तुलना में लगभग दोगुनी महिलाओं ने इसे व्यवसाय शुरू न करने का मुख्य कारण बताया, जो एक महत्वपूर्ण लिंग अंतर को दर्शाता है। सबसे बड़ी लिंग विसंगति परिवार और देखभाल की जिम्मेदारियों से संबंधित है, जो पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है। भारत में महिला उद्यमियों को सीमित वित्तीय संसाधनों और पूंजी तक पहुंचने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सीमित आर्थिक सुरक्षा, संपत्ति के स्वामित्व की कमी और सामाजिक बाधाओं के कारण पारंपरिक ऋणदाता महिलाओं को ऋण देने से झिझकते रहे हैं। ये ऋणदाता अक्सर गारंटी के साथ-साथ अन्य सख्त शर्तों की मांग करते हैं, जिससे महिलाओं के लिए ऋण प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
एक अध्ययन के अनुसार, भारत में महिलाओं की अगुवाई वाले कारोबार के लिए करीब 20.5 अरब डॉलर की पूंजी का अभाव है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों में ज्यादा मुनाफा 19 फीसदी की तुलना में 31 प्रतिशत होने के बाद भी उनके कर्ज मांगने के खारिज होने का अनुपात कहीं ज्यादा यानी पुरुषों के 8 प्रतिशत की तुलना में 19 फीसदी है और वे सूक्ष्म छोटे और मध्यम उद्योगों को सरकारी बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कुल कर्ज का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर पाती हैं। भारत में महिलाओं की उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय तकनीक के जरिए कर्ज देने में लैंगिक बराबरी को बढ़ावा देने की जरूरत है। हालांकि हाल के वर्षों में डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफार्मों के बढ़ने से महिलाओं के लिए न्यूनतम प्रतीक्षा समय के साथ व्यावसायिक ऋण प्राप्त करना आसान हो गया है और यही कारण है कि पहले की तुलना में महिला उद्यमियों की संख्या भी बढ़ी है।
सतत आर्थिक विकास, लैंगिक समानता और गरीबी उन्मूलन में महिलाओं की भागीदारी की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए भारत सरकार ने भी महिला उद्यमियों का समर्थन करने के लिए कई पहल शुरू की है। इन पहलों का एक उद्देश्य एक समावेशी और सहायक नीति ढांचा, वित्त तक समान पहुंच प्रदान करना, मेंटरशिप और नेटवर्क चैनलों का विस्तार करना है। कुल मिलाकर ये प्रयास महिला उद्यमियों के लिए अपना व्यवसाय संचालित करने और बढ़ाने के अवसर प्रदान करते हैं। सरकार की नारी शक्ति एक ऐसी पहल है, जो महिलाओं को बाजार में उपलब्ध दर से सस्ती दर पर आसान ऋण प्रदान करती है, जिससे महिलाओं को उनकी उद्यमशीलता आकांक्षाओं को साकार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। एक अन्य उदाहरण महिला उद्यमिता मंच है, जो भारत में महिला उद्यमिता से संबंधित सभी चीजों के लिए एक एकीकृत पोर्टल और वन-स्टॉप शॉप के रूप में कार्य करता है।
भौतिक बिक्री की पारंपरिक प्रक्रिया, जिसमें अक्सर घर-घर बिक्री या दुकान किराए पर लेने या खरीदने की आवश्यकता शामिल होती है। इसने कई भारतीय महिलाओं के लिए चुनौती पेश की, जिनके पास पारिवारिक प्रतिबद्धताएं, घरेलू कर्तव्य और सीमित धन था। हालांकि ई-कॉमर्स प्रवृत्ति और अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे डिजिटल बिक्री प्लेटफार्मों के उद्भव से महत्वपूर्ण बदलाव आया है। महिलाएं अब स्वस्थ कार्य जीवन संतुलन बनाते हुए अपने उत्पादों को अपने घरों में बेच सकती हैं। पूरे भारत और यहां तक कि विश्व स्तर पर ग्राहकों तक पहुंच सकती हैं। भारत का उद्यमिता परिदृश्य स्पष्ट रूप से बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जो लगातार देश में रहने वाली महिलाओं की क्षमता और दृढ़ संकल्प को उजागर कर रहा है।
आज भारत में 5.85 करोड़ उद्यमियों में से 80.5 लाख महिला उद्यमियों द्वारा देश के औद्योगिक विकास और विस्तार में सराहनीय योगदान प्रदान किया जा रहा है। साथ ही महिलाओं द्वारा संचालित औद्योगिक इकाइयों द्वारा लगभग 1.35 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। आज भारतीय महिला उद्यमियों का रुझान परंपरागत उद्योगों के साथ-साथ नवाचार वाले स्टार्ट-अप उद्योगों की ओर बढ़ता जा रहा है। अनेक महिलाएं अपना हाई प्रोफाइल जॉब छोड़कर नव प्रवर्तन और भावी विकास संभावनाओं से ओत-प्रोत उद्योगों की बागडोर संभाल रही हैं। जमीनी स्तर के आंकड़ों से पता चलता है कि आने वाले दशकों में भारत परिवर्तन की एक और लहर देखने को तैयार है, जिसमें कार्यबल पर महिलाओं का वर्चस्व होने के साथ-साथ देश के भविष्य को आकार दिया जा रहा है, जहां 30 मिलियन से अधिक महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसाय से साल 2030 तक 170 मिलियन नौकरियों की उम्मीद है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत का आर्थिक भविष्य आज पहले से कहीं अधिक उज्ज्वल दिखता है। महिला उद्यमिता को किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। महिला उद्यमी न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाती हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ाती है। भारतीय समाज में महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के लिए सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक मोर्चों पर बदलाव लाने की जरूरत है। अगर सरकार की नीतियां सहयोगी बनें, महिलाओं को नवाचार के लिए उचित आर्थिक सहायता मिल सके तो उनका क्षेत्र विस्तृत हो सकता है। वुमन एंटरप्रेन्योरशिप इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यदि महिलाओं में उद्यमशीलता को प्रोत्साहन दिया जाए तो देश में 15 से 17 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं। इसके लिए आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को बदलना जरूरी है। समाज को रूढ़िवादी सोच से बाहर निकलना होगा। महिलाओं की नवाचार से जुड़ी सोच और प्रयासों को बढ़ावा देना होगा। इसके साथ ही लैंगिक भेदभाव को दूर करना होगा।
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