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एर्नाकुलम विस्फोट एक चेतावनी है

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अवधेश कुमार

किसी आतंकवादी घटना की गंभीरता का मूल्यांकन केवल इस आधार पर नहीं होता कि उसमें कितने लोगों की मौत हुई। केरल में एर्नाकुलम जिले के कलामसेरी के कन्वेंशन सेंटर यानी सम्मेलन केंद्र में हुआ विस्फोट हर दृष्टि से डराने और चिंतित करने वाली घटना है। निस्संदेह , तीन व्यक्तियों की मृत्यु तथा 51 लोगों का घायल होना सुरक्षा एजेंसियों के लिए थोड़ी राहत का विषय है। हालांकि एक व्यक्ति की भी मृत्यु या घायल होना हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। यहोवाज विटनेसेस या यहोवा विटनेस समुदाय के तीन दिनों के कार्यक्रम में 2000 के आसपास लोग उपस्थित थे। तीन विस्फोट का मतलब इसकी पहले से पूरी तैयारी की गई थी। यह भी साफ हो गया है कि विस्फोट ईईडी से ही हुआ। अभी यह कहना मुश्किल है कि कोच्चि निवासी डोमिनिक मार्टिन नामक व्यक्ति द्वारा घटना की जिम्मेवारी लेने का सच क्या है। क्या वह अकेले इस विस्फोट में शामिल था या उसके साथ अन्य लोग थे? जो कुछ वह कह रहा है उतना ही सच है या इसके पीछे कोई व्यापक षड्यंत्र है? राष्ट्रीय जांच एजेंसी या एनआईए और केरल का आतंकवाद निरोधी दस्ता की छानबीन के बाद इसका पूरा सच सामने आएगा। किंतु केरल सरकार द्वारा बिना सोचे समझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आरोपित करने से ज्यादा गैर जिम्मेदार कुछ नहीं हो सकता। तो केरल के रुख और यहोवाज विटनेसेस के साथ इस समय देश का जैसा वातावरण है और विशेष कर केरल में जैसा तनावपूर्ण माहौल बनाया गया है उनकी गहराई से विवेचना आवश्यक है।

यहोवाज विटनेसेस ईसाई धर्म से  निकला हुआ एक समूह है। इसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयौर्क  के वारविक में है और माना जाता है कि इस समय विश्व भर में इसके पचासी लाख सदस्य हैं। इसे इंटरनेशनल बाइबल स्टूडेंट्स एसोसिएशन की इकाई माना जाता है जिसकी स्थापना चार्ल्स टेज रसेल ने वर्ष 1872 में पीट्हवर्ग में की थी। यह मुख्य धारा के ईसाई समुदाय  कैथोलिक प्रोटेस्टेंट आदि से अलग विचार रखता है। इसके अनुसार होली ट्रिनिटी यानी पवित्र त्रयी गॉड, द फादर; गॉड , द सन;– यीशू :  गाड था होली स्पिरिट में ये विश्वास नहीं करते। ये यहोवा को  गॉड ऑफ द बाइबल और सभी चीजों के निर्माता के रूप में करते हैं।

यहोवाज विटनेस के लोग यीशु मसीह को ईश्वर न मानकर उनका पुत्र मानते हैं तथा स्वयं को वास्तविक क्रिश्चियन कहते हैं। यह क्रिसमस और ईस्टर जैसी छुट्टियां भी नहीं मानते। इनके सामाजिक नियम और रीति- रिवाज काफी सख्त हैं जिसमें तलाक लेने और रक्त लेने तक का निषेध है। स्वाभाविक अन्य ईसाई मतावलंबियों के साथ इनका तनाव होता है। जो ईसा मसीह को ईश्वर मानते हैं वो ईश्वर न मानने वालों का विरोध करेंगे। ये लोगों के बीच अपना विचार प्रसार कर उन्हें अपने साथ शामिल करने की कोशिश करते हैं और इससे भी तनाव पैदा होता है। ध्यान रखिए, केरल में लगभग तीन दशक पहले इस समूह के तीन बच्चों पर उनके स्कूल में राष्ट्रगान का अपमान करने पर अनुशासन तो कार्रवाई की थी और यह मामला उच्चतम न्यायालय तक गया था।  यह समुदाय अपने विस्तार के लिए ऐसी बातें बोलता है जिससे निस्संदेह भारत विरोध या यहां की सभ्यता संस्कृति सामाजिक व्यवहार आदि की निंदा और उनके अंत करने तक की बातें होती हैं। केरल में चर्च की कुछ गतिविधियां भी समाज को असहज करने वाली रही हैं और उनका विरोध होता रहा है।

मार्टिन ने घटना के बाद छह मिनट का एक वीडियो जारी किया जिसमें कह रहा है कि उसने इसलिए किया क्योंकि संगठन की शिक्षाएं  देशद्रोही है। इसकी विचारधारा खतरनाक है और इसलिए इसे राज्य में समाप्त करना होगा। उसका कहना है कि उसने कई बार संगठन को अपनी शिक्षा या विचार को सही करने को कहा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उसके अनुसार चूंकि मेरे पास कोई अन्य विकल्प नहीं था, इसलिए मैंने यह निर्णय लिया। यहोवाज विटनेस ने उसे अपना पंजीकृत सदस्य मानने से इन्कार किया है। जिस तरह डोमिनिक मार्टिन बयान दे रहा है उससे नहीं लगता कि समूह से उसका संबंध नहीं रहा होगा। निश्चित रूप से इस घटना के बाद डोमिनिक मार्टिन के साथ समूह की ,गतिविधियों, विचारों , संसाधनों आदि की व्यापक छानबीन होगी। किंतु पिछले कुछ समय से केरल में भारत विरोधी हिंसक मजहबी कट्टरपंथ की चिंताजनक गतिविधियां सामने आईं हैं। इजरायल और हमास युद्ध के बाद वैसे तो देश का वातावरण ही काफी संतप्त और तनावपूर्ण बनाया जा चुका है लेकिन केरल में लगभग प्रतिदिन कहीं न कहीं कोई छोटी बड़ी रैली या धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। इस विस्फोट के एक ही दिन पूर्व केरल की एक रैली को हमास के पूर्व प्रमुख खालिद मशाल ने संबोधित किया था जिसमें उसने कहा था कि बुलडोजर, हिंदुत्व और यहूदीवाद को उखाड़ फेंकना है। तात्कालिक विस्फोट से सीधे इसका संबंध हो या नहीं हो किंतु स्थिति कितनी खतरनाक है कि विदेश में बैठे हिंसक संगठन का पूर्व प्रमुख वर्चुअल भारत की रैली को संबोधित करते हुए हिंसक विद्रोह के लिए उत्तेजित करता है और लोग तालियां बजाते हैं। भाजपा को छोड़कर किसी राजनीतिक पार्टी ने इसका विरोध नहीं किया।

केरल सरकार को इसका संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए थी। ऐसा न करने से केवल उन तत्वों का ही नहीं हिंसा की मानसिकता पालने वाले सभी का हौसला बढ़ता है। 20 फोटो के बाद केरल सरकार के प्रवक्ता का बयान है कि पूरा केरल फिलिस्तीन के नाम पर एकजुट है और अगर यह विस्फोट उसे तोड़ने के लिए है तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। सरकार की यह मानसिकता डरावनी है। केरल में फिलिस्तीन के नाम पर हो रही रैलियों और प्रदर्शनों में सत्तारूढ़ वाम मोर्चा के साथ कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्षी मोर्चा के नेता भी शामिल हो रहे हैं। हमास के पूर्व प्रमुख खालिद मशाल के रैली में शामिल होने के बाद भ्रम दूर हो जाना चाहिए। इसके बाद यय कहना ज्यादा आसान हो गया है कि इजरायल विरोध‌ के नाम पर हमास का समर्थन किया जा रहा है। पार्टियां, संगठन अपने बयानों और गतिविधियों से पूरे देश का माहौल तनावपूर्ण बना रहे हैं। पूर्णिया में सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ तो महाराष्ट्र में मुंबई से लेकर कई स्थानों पर प्रदर्शनों में उत्तेजक नारे और भाषण हो रहे हैं। इसके परे भी राजनीतिक मतभेद को पार्टियां इस तरह प्रकट करती हैं मानो देश के अंदर युद्ध की स्थिति हो। ऐसे तनावपूर्ण वातावरण में कोई असंतुलित व्यक्ति और समूह हिंसा की सीमा तक जा सकता है। कई राज्य केंद्र के सुरक्षा अलर्ट या खुफिया इनपुट को भी राजनीतिक आधार पर विश्लेषित करते हैं। यहां तक कि उनकी अपनी सुरक्षा एजेंसियों की सूचनाओं को भी बार कई बार उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता जितनी ली जानी चाहिए। जैसी जानकारी है केंद्र की ओर से हमास इजरायल युद्ध के बाद सभी राज्यों को उनकी सुरक्षा संवेदनशीलता के अनुसार सुरक्षा अलर्ट दिया गया था। केरल संवेदनशील राज्यों में शीर्ष पर है , इसलिए उसे कई अन्य राज्यों के साथ विशेष रूप से आगाह किए जाने की सूचना थी। एक साथ 2000 लोग 3 दिनों के लिए इकट्ठे हों, उस संगठन का ईसाइयों के बीच ही विरोध हो, प्रदेश का वातावरण लगातार रैलियों ,विरोध प्रदर्शनों से तनावपूर्ण बना हो, पहले से वहां मजहबी कट्टरपंथ आतंकवाद के स्लीपर सेल पकड़े गए हों वहां विशेष सुरक्षा व्यवस्था न किया जाना बहुत कुछ कहता है। केरल में इसाई मतों के बीच आपसी विरोध और तनाव के समाचार वहां के स्थानीय अखबार में आते रहते हैं। यही नहीं यहोवाज के लोग येरूसलम भी काफी जाते रहते हैं। तो इस दृष्टिकोण से भी थोड़ी ज्यादा सुरक्षा की आवश्यकता थी। जान बिन सही स्पष्ट होगा कि इसके पीछे किस तरह का षड्यंत्र है। दूसरे संगठन भी ध्यान बांटने के लिए ऐसे तत्वों का उपयोग करते हैं।

क्या विस्फोटों के बाद इसे फिलिस्तीन एकजुटता को तोड़ने की कोशिश में के रूप में देखने के सरकार के बयान को जिम्मेवार माना जा सकता है? अभी भी केरल सरकार संघ को आरोपित कर और स्वीकार राजनीति कर रही है। सुरक्षा के मामले पर इस तरह का व्यवहार हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा। अनेक शक्तियों और देश भारत में हिंसा और सांप्रदायिक तनाव पैदा कर इसे तोड़ने का षड्यंत्र करते रहते हैं। इसके प्रमाण भी मिले हैं। हमने अनेक आतंकवादी हमले झेले हैं। फिलिस्तीन हमास युद्ध के बाद की संवेदनशीलता को देखते हुए पार्टियों, नेताओं और संगठनों को अत्यंत ही सोच समझकर संयमित बयान देने की आवश्यकता थी। सुरक्षा अलर्ट को भी पूरी गंभीरता से लिया जाना चाहिए। एर्नाकुलम विस्फोट हम सबके लिए एक सबक बनकर आया है। आप सरकार का विरोध करिए लेकिन ऐसे मामले पर कुछ भी बोलते समय ध्यान रखिए कि इसके दुष्परिणाम हमारे देश के लिए घातक हो सकते हैं। सबके पास सारे मुद्दों की पूरी जानकारी नहीं होती। कौन इससे क्या निष्कर्ष निकाल कर कहां क्या कर देगा इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

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