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वैश्या भानूमति का त्याग ( लघुकथा)

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भानूमति सौंदर्य की जहाँ प्रतिमूर्ति थी वहीं दिल से बहुत ही नर्म थी। कठोर प्रशासक के रूप में उसकी तुती जहनमारा में बजती थी। वृद्ध भानूमति पेशे से तो वैश्या के नाम से बदनाम थी लेकिन अपनी संपन्नता के कारण सभी दलों के राजनेता चुनाव के समय हाजिरी लगाते थे क्योंकि भानूमति के नाम से अनेक जनहित के प्रकल्प चलते थे। हजारों लोगों को रोजगार देने वाली भानूमति काफी लोकप्रिय थी।

   मुख्य अतिथि के रूप में भानूमति ने अपने संबोधन में बताया कि मैं नृत्य एवं गायन में बचपन से दिवानी थी लेकिन माँ बाप की दसवीं संतान होने के कारण गरीब एवं अभाव में कला दबकर रह गई। गाँव में कलाकारों की मंडली अपनी कला का प्रदर्शन किया तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद जब जाने लगे तो उनके साथ मैं भी रेल में बैठ गयी। जब वो पंद्रह घंटे बाद उर्मिला नगर पहुंचे तो उनके साथ चल पङी। शिक्षानंद मास्टर ने अनुनय निवेदन के बाद मुझे टीम में शामिल कर लिया लेकिन उसके बेटे वृषभान की नजर हमेशा मुझे निहारती थी। वृषभान ने एक दिन मुझे शिकार बना लिया लेकिन पाप पलने लगा तो किसी कोठे पर मुझे बेच दिया। पहले अम्मा ने गर्भवती समझ कर फिर मेरे पुत्र श्यामल के कारण मुझे धंधे में नहीं लगाया।
    मेरा बेटा अपने पिताजी के बारे में पुछता तो मैं टाल देती उसे विदेश में पढाया वही वृषभान का बेटा धवल भी  साथ पढता था।फिर वो बङा हुआ तो शादी कर दी। धवल एवं श्यामल राम लक्ष्मण जैसे लगते थे।
  अब मैं अम्मा की वारिस बनकर नृत्य गायन एवं कला के लिए काम करने लगी लेकिन पति मेरा वृषभान ही रहा।
    एक दिन भारी कर्ज के कारण वृषभान की संपत्ति कुर्क हो रही थी तो भानूमति ने खरीदने के बाद धवल के नाम करदी। इससे वृषभान एवं उसकी पत्नी दोनों भानूमति के पास आकर आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन भानूमति ने सिंदूर लगवाने एवं रिश्तेदार बनने से सख्त मना कर दिया।
    भानूमति वैश्या बनकर भी वृषभान को पति माना लेकिन जब सामाजिक रूप से मान्यता को ठुकरा कर एक त्याग की मूर्ति बन गयी।

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