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बिहारी भगाओं बांग्लादेशी बसाओ  -रविशंकर रवि की कलम से असम का सच

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असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा जिस खतरे को भांप गए, बाकी लोग उसे कब महसूस करेंगे। आज स्थिति यह है कि सब्जी उगाने वाले ज्यादातर लोग एक धर्म विशेष से जुड़े हुए हैं। इतना ही नहीं, गुवाहाटी महानगर के विभिन्न हिस्से में सब्जी बेचने वाले किस समुदाय के हैं, यह पता कर लें। आटो, टैक्सी भी वही चलाते हैं और गुवाहाटी में एप्प से चलने वाले अधिकांश ड्राइवर उसी समाज से आते हैं।
सड़क निर्माण हो या भवन निर्माण, सारे मजदूर किस समुदाय से आते हैं, यह सभी जानते हैं। लेकिन कुछ जातीय संगठनों के पदाधिकारियों की नजर में बिहारी ही सबसे अधिक ‘खतरनाक’ हैं, इसलिए उनको भगाने की साजिश लगातार चल रही है। हम किसी धर्म विशेष के लोगों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन जिस तरह बिहारियों को भगाकर मजदूरों या खेतिहर की जगह खाली कराई जा रही है, उसे कौन भर रहा है, ये बात पता नहीं इन जातीय संगठनों को क्यों नहीं समझ में आ रही है। किसी बिहारी या मारवाड़ी समाज के लोगों पर हमला करना, उन्हें प्रताड़ित करना जितना सहज है, उतना ही मुश्किल किसी ‘मियां’ पर हमला करना है। आज वे इतने एकजुट हैं कि जवाबी हमले करते हैं।
इसलिए आप सर्वेक्षण करके देख सकते हैं कि कितने निरीह बिहारियों पर हमले करके अपना दंभ दिखाने वाले कुछ नेताओं ने एक धर्म विशेष के लोगों से उलझना तो दूर की बात है, आंख तक दिखाने की हिम्मत नहीं दिखाई है। ऐसी घटनाओं की वजह से अब कामगार बिहारियों ने असम की तरफ देखना बंद कर दिया है। वे अब काम की तलाश में पश्चिमी राज्यों की तरफ जाते हैं। पता नहीं लोग उस खतरे को क्यों नहीं महसूस कर पाते हैं, जिसकी तरफ मुख्यमंत्री संकेत कर रहे हैं। असम में बसे बिहारियों की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। उनके नाम असम की मतदाता सूची में है या नहीं, इसकी भी उन्हें कोई चिंता नहीं है। उन्हें न तो यहां का विधायक बनना है और न ही कोई अन्य राजनीतिक पद लेना है। वे अपने आप को वोटबैंक नहीं मानते हैं। वे तो बस अपना काम करने में विश्वास करते हैं। लेकिन जब भी मौका मिलता है, असम के विकास के लिए जान दे देते हैं। यही बात मारवाड़ी समाज पर भी लागू होती है। वे शांति से अपना व्यवसाय करना चाहते हैं। समय-समय पर सामाजिक सरोकारों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। फिर भी उनके साथ दोयम नागरिक जैसा व्यवहार किया जाता है।
पहले अल्फा ने हिंदीभाषियों को निशाना बनाया। बिहारी मजदूरों पर हमला किया। बड़ी संख्या में काम के लिए असम आने वाले व्यापारी लौट गए। वे रिक्शा-ठेला चलाते थे | सब्जी उगाते थे और बेचते थे। लेकिन अब उनकी जगह एक धर्म विशेष के लोगों ने ले ली। अब वही लोग हमें आंख दिखा रहे हैं। किसी भी संगठन की उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं है। वे नाम बदलकर हिंदू लड़कियों से शादी कर रहे हैं, फिर उस लड़की की उपाधि लेकर अपने आप को असम का स्थानीय घोषित कर रहे हैं, लव जिहाद को बढ़ावा दे रहे हैं। उनकी बात नहीं चलने पर हिंदू लड़की की हत्या तक कर देते हैं। गोलाघाट की घटना उसका ज्वलंत उदाहरण है। फिर भी कुछ जातीय संगठन के
निशाने पर हिंदीभाषी ही हैं।
(साभार दैनिक पूर्वोदय)

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