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दवा, गाय के घी से लेकर सरसों तेल तक… बाबा रामदेव का विवादों से है पुराना नाता, जानें कब-कब क्या हुआ

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने योग गुरु रामदेव की तरफ से सह-स्थापित और हर्बल उत्पादों का कारोबार करने वाली कंपनी पतंजलि आयुर्वेद को कई रोगों के संबंध में अपनी दवाओं के बारे में विज्ञापनों में ‘झूठे’ और ‘भ्रामक’ दावों को लेकर आगाह किया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पतंजलि आयुर्वेद के ऐसे सभी झूठे और भ्रामक विज्ञापनों को तुरंत रोकना होगा। अदालत ऐसे किसी भी उल्लंघन को बहुत गंभीरता से लेगी। दूसरी तरफ इस मामले में रामदेव की तरफ से सफाई भी आई है। रामदेव का कहना है कि अगर हम झूठे हैं तो हम पर 1000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाए। उन्होंने कहा है कि हमने गलती की है तो हम मौत की सजा के लिए भी तैयार हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब बाबा रामदेव, उनकी कंपनी पंतजलि विवादों में घिरी हो। इससे पहले भी वे, पंतजलि आयुर्वेद और उनके उत्पाद विवादों में घि

पतंजलि के गाय के घी की गुणवत्ता पर सवाल

साल 2022 में पंतजलि के गाय के घी में मिलावट सामने आई थी। उत्तराखंढ में खाद्य सुरक्षा विभाग की तरफ से किए गए परीक्षण में ‘शुद्ध गाय का घी’ खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं उतरा था। पतंजलि के ‘शुद्ध गाय घी’ का नमूना उत्तराखंड के टिहरी में एक दुकान से लिया गया था। इसे एक राज्य प्रयोगशाला में भेजा गया था जहां इसे मिलावटी और संभावित रूप से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पाया गया था। आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए बाबा रामदेव ने इस परीक्षण को उनकी कंपनी और पतंजलि के देसी घी को बदनाम करने की साजिश बताया था। इसके अलावा पतंजलि के नूडल्स को लेकर भी विवाद हुआ था। दिसंबर 2022 में बीजेपी नेता और सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने बाबा रामदेव को ‘मिलावटखोरों का राजा’ करार दिया था। उन्होंने पतंजलि के उत्पादों के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू करने की धमकी भी

साल 2022 में पांच दवाओं पर रोक

उत्तराखंड के आयुर्वेदिक और यूनानी सेवाओं के अधिकारियों ने पतंजलि की दिव्य फार्मेसी को नवंबर, 2022 को पांच दवाओं का उत्पादन रोकने और मीडिया में विज्ञापन हटाने के लिए कहा था। स्टेट अथॉरिटी पंतंजलि ग्रुप की दवाओं बीपीग्रिट, मधुग्रिट, थायरोग्रिट, लिपिडोम और आईग्रिट गोल्ड के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन दवाओं को इन बीमारियों के इलाज के रूप में आक्रामक रूप से प्रचारित किया गया। बाद में कंपनी दिव्य फार्मेसी की तरफ से संशोधित फॉर्म्यूलेशन की जानकारी दी गई था। इसके बाद फिर से इन दवाओं के उत्पादन को हरी झंडी दे दी गई थी।

कोरोनिल दवा को लेकर हुआ था विवाद

साल 2021 में पतंजलि की तरफ से हरिद्वार के दिव्य प्रकाशन पतंजलि अनुसंधान संस्थान में विकसित ‘कोरोनिल’ टैबलेट लॉन्च किया था। पतंजलि की तरफ से दावा किया गया था कि यह सात दिनों में कोविड -19 को ठीक करता है। वहीं, इंडियन मेडिकल एसोसिशन की तरफ से इस पर कड़ी आपत्ति जताई गई थी। पतंजलि आयुर्वेद की तरफ से उस समय दावा किया था कि इस टैबलेट को आयुष मंत्रालय से डब्ल्यूएचओ की प्रमाणन योजना के अनुसार कोविड के इलाज में मददगार दवा के रूप में प्रमाणित किया जा चुका है। विवाद बढ़ने का बाद इस मामले में पतंजलि को सफाई देनी पड़ी थी। इसमें कहा गया था कि प्रमाणन केंद्र की तरफ से और WHO किसी भी दवा को स्वीकृत या अस्वीकृत नहीं करता है। आयुष विभाग की सख्ती के बाद इस दवा को ‘इम्युनिटी बूस्टर’ बता कर बेचा जाने लगा था।

एलौपैथ को बताया था बेवकूफ विज्ञान

बाबा रामदेव ने साल 2021 में मई महीने में दावा किया था कि एलोपैथी एक ‘बेवक़ूफ़ विज्ञान’ है। उन्होंने कहा था कि रेमडेसिविर, फेविफ्लू जैसी दवाएं और भारत के औषधि महानियंत्रक (ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) की तरफ से अनुमोदित अन्य दवाएं कोविड -19 रोगियों के इलाज में विफल रही हैं। रामदेव ने ट्विटर पर शेयर किए लेटर में लिखा था कि अगर एलोपैथी सभी शक्तिशाली और ‘सर्वगुण संपन्न’ (सभी अच्छे गुणों से युक्त) है, तो डॉक्टरों को बीमार नहीं पड़ना चाहिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव के खिलाफ सख्त टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रामदेव को दूसरी आधुनिक दवाओं और इलाज प्रणालियों की आलोचना नहीं करनी चाहिए। इसके बाद साल 2022 में रामदेव ने एलोपैथी संबंधी अपनी टिप्पणी के लिए खेद व्यक्त किया था। उन्होंने फिर कहा था कि वो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और एलोपैथी के विरोधी नहीं हैं।

किम्भो ऐप के स्वदेशी होने पर उठे थे सवाल

साल 2018 में 30 मई को पतंजलि की तरफ से वाट्सऐप को टक्कर देने के लिए स्वदेशी मैसेंजिंग ऐप किम्भो पेश किया था। हालांकि, कुछ ही घंटों के बाद इस ऐप को वापस ले लिया गया था। एक्सपर्ट ने इस ऐप में प्राइवेट जानकारियों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी। हालांकि, पतंजलि ने इन दावों को खारिज किया था। वहीं, इस ऐप के स्वदेशी होने पर भी सवाल खड़े हुए थे। फ्रांस के एक एथिकल हैकर एलियट एल्डरसन ने दावा किया था कि एक अमरीकी कंपनी के बंद हो चुके मैसेजिंग ऐप ‘बोलो’ को ही किम्भो के रूप में पेश किया गया है। पतंजलि प्रोडक्ट्स के प्रवक्ता एसके तिजारावाला ने इन दावों को भी खारिज किया था।

तेल के विज्ञापन को लेकर सवाल

साल 2016 में पतंजलि के सरसों तेल के विज्ञापन को लेकर सवाल उठे थे। खाद्य तेल उद्योग (SEA) संगठन सॉल्वेंट एक्सटैक्ट्रस असोसिएशन ऑफ इंडिया का आरोप था कि पतंजलि के कच्ची घानी सरसों तेल के विज्ञापन झूठा और भ्रामक है। एसईए के बयान में कहा गया था कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा प्रकाशित सरसों तेल का मौजूदा विज्ञापन उचित नहीं है। इस विज्ञापन में सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टेड तेलों के बारे में भ्रामक और झूठे बयान दिए गए हैं। एसईए ने पतंजलि को साक्ष्य दस्तावेजों के साथ एक विस्तृत ज्ञापन-पत्र भेजा था। साथ ही ज्ञापन में सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टेड तेलों के खिलाफ दिए गए भ्रामक बयानों को वापस लेने का निवेदन किया था। वहीं, 2022 में राजस्थान में पतंजलि के सरसों का तेल गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं पाया

दवाओं में जानवरों की हड्डियां मिलाने का आरोप

मार्क्सवादी नेता वृंदा करात ने साल 2006 में रामदेव पर पंतजलि की दवाओं में इंसानों और जानवरों की हड्डियों को मिलाने का आरोप लगाया था। इसको लेकर खूब विवाद हुआ था। बाद में पतंजलि ने आरोपों से इनकार किया था। इसके लगभग एक दशक बाद, पश्चिम बंगाल की एक लेबोरेटरी में गुणवत्ता परीक्षण में विफल होने के बाद सेना ने अपने कैंटीन से पतंजलि आंवला का रस वापस ले लिया था।

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