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बात नाजायज थी, जमी नहीं हमको,
सौगात उनकी मोड़ दी ठाकुर
सिक्कों में तोलते हैं ,जज्बात उनकी रियासत में ,
दुनिया ये उनकी हमने छोड़ दी ठाकुर
कहानी दिलकश थी उनकी ,बुनियाद मगर झूठ पर टिकी, ना दिल में बसी, ना जहन में छपी
बेशक दलीलें उन्होंने करोड़ दी ठाकुर
दुश्वारियां ,मुसीबतें, तकलीफें सबसे पार पा गए हम तो जिंदगी घूरती है मुझ पर, टक्कर उसे हमने बेजोड़ दी ठाकुर
सच पर वह चमकता नकाब झूठ का, और उनकी जय जय महफिल में
खफा है अब मुझसे , क्योंकि
उनके झूठ की दीवार मैंने तोड़ दी ठाकुर
बात नाजायज थी, जमी नहीं हमको,
सौगात उनकी मोड़ दी ठाकुर
विश्वास राणा “फना”