फॉलो करें

“मृदुर्हि परिभूयते”

492 Views

“मृदुर्हि परिभूयते”
सम्माननीय मित्रों ! मृदु पुरूष का अनादर होता है…ऐसा श्रुति कहती है ! व्यवहार तथा व्यवस्था में ऐसा प्रत्यक्ष दिखता भी है,
मेरा अपना स्वयं का ननिहाल बलिया के आसपास है ! भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं की दृष्टि में हिन्दी की उप-भाषा-भोजपुरी” समूचे विश्व की सबसे मीठी भाषा है ! और महाराज भोज द्वारा शासित तद्कालीन समूचे क्षेत्र के लोगों को अर्थात लगभग समूचे मध्य भारतीय क्षेत्र की जनता आज भी केवल और केवल अनेकों उप भाषाओं के साथ-“हिन्दी” की पताका लेकर चलती है ! ये सच्चाई है कि-“बागी बलिया”ने जितना बलिदान दिया उतना ही उसे दबाया और कुचला गया ! इसका कारण केवल इतना है कि दानवीर महाराजा भोज का खून जिनकी रगों में दौड़ता हो वे केवल बलिदान देना जानते हैं ! और जो बलिदान देते हैं उनका युगों युगों से अपमान होता आया है।


अभी तक हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार होता चुपचाप देखते रहने वाले ! समर्थ होते हुवे भी कुछ न करने वाले-“राष्ट्रपिता” कहलाने लगे ! और मंगल पाण्डे, जी जैसे महान क्रांतिकारी के बलिदान को उपेक्षित किया जा रहा है।
मित्रों ये कडवी सच्चाई है कि सन् १८५७ की जनक्रांति को कुचलने के लिये पंजाब के सिख, एवं नेपाल नरेश जंग बहादुर थापा ने चालीस हजार नेपाली सैनिकों को ईस्टइण्डिया कम्पनी  की सहायता के लिये भेजा था ! ये ऐतिहासिक सच्चाई है कि  तद्कालीन तथाकथित-“बंगाल” के सभी जमींदारों ने अपनी-अपनी नीजी सेनाओं को कम्पनी की सहायता के लिये भेजा था।
और उनकी सैनिक टुकड़ियों नै पटना,बलिया,आरा,बक्सर, बनारस, प्रयाग,लखनऊ,कानपुर दिल्ली,आगरा,गुजरात, मध्यप्रदेश अर्थात लगभग समूचे मध्य भारत में भयानक उत्पात किया था, महिलाओं के साथ बलात्कार,गांव के गांव जलाने से लेकर सामान्य नागरिकों की बर्बरता पूर्वक हत्या की थी ! सामूहिक हत्या की थी ! अर्थात जब भारतीय क्रान्तिकारी ईस्ट इंडिया कम्पनी से जूझ रहे थे तब-“पंजाबी सिख,नेपाली गुरखा और बंगाल के सूबेदार की सेना” अपने ही भारतीय सैनिकों और जनता की निर्ममता से हत्या कर रही थी ! यह मैं नहीं कहता -इतिहास ऐसा कहता है।


मित्रों ! इतिहास ये भी कहता है कि यदि सिख,बंगाल के सूबेदार और नीजी जमींदारों से लेकर नेपाली और बंगाल के गोरखों ने !
इस्ट इंडिया कम्पनी का साथ न दिया होता तो मंगल पाण्डे जी के बलिदान से धधकी जनक्रांति में उसी समय-“परतन्त्रता, मेकाॅले की संस्कृति और पाश्चात्यीकरण का भूत”ये तीनों ही जलकर खाक हो चुके होते।  इनमें वो भी गोरखे हैं जो आज उत्तर बंगाल में अपने अस्तित्व की लडाई लड रहे हैं ! “गोरखा लैण्ड” की मांग कर रहे हैं ! इनके पूर्वजों के अत्याचार का दण्ड इनको भुगतना पडता है। अट्ठारह सौ सत्तावन की महान क्रान्ति में भाग लेने वाले ! अपना बलिदान देने वाले किसी एक भी बलिदानी सिख,गोरखा और बांग्ला भाषी का नाम आपने सुना ?
मैं अपने बांग्ला भाषी बन्धुवों को ससम्मान कहना चाहता हूँ कि
ये कडवी सच्चाई है कि उसी क्रान्ति से सीख लेकर अखण्ड बंगाल के किसानों ने उन्नीस सौ उनसठ में नील की खेती बन्द कराने हेतु-“इंडिगो” अर्थात-“नील क्रान्ति” की जिसके पश्चात धीरे-धीरे बांग्ला भाषी समुदाय में ये चेतना आयी कि वे भी -“भारतीय” हैं। अन्यथा भारत के शिक्षित,व्यापारी एवं आभिजात्य वर्ग ने इस क्रांति से अपने-आप को केवल – “आत्मनिहित” स्वार्थ के कारण दूर रखा।

नक्सल वाद का जहर किसने घोला ? लाल सलाम का आगाज  भारत में  किसने किया ? जेएनयू में-भारत तेरे टुकड़े होंगे ईंशाऽल्लाह ईंशाऽल्लाह” के नारे किसने लगाये ? मित्रों ! समाज में ती न तरह के लोग होते हैं ! एक रोटी बनाता है दूसरों के लिये !
दूसरा रोटी खाता है ! केवल खाता है ! और तीसरा वो होता है जो खाते खाते पेट भर जाने के बाद-“रोटी छुपाता है ! इसलिए कि वो -“चोर” है ! आभिजात्य वर्ग,शिक्षित वर्ग इन्हीं दोनों में अधिकांश ऐसे चोर बैठे हैं जिन्होंने संस्कृति और स्वतंत्रता के लिये कुछ भी नहीं किया ! और स्वतंत्रता मिलते ही वो अग्रीम पंक्ति में बैठ गये। मित्रों आपने कभी उन्नाव के-गंगू मेहतर” का नाम सुना ? ये ऐसे साधारण कृषी-श्रमिक क्रान्तिकारी थे कि जब
इन्होंने सुना कि मंगल पाण्डे जी को फांसी दे दी गयी तो ये अपनी बस्ती के कुछ वीर नौजवानों के साथ गोरी पलटन पर टूट पडे और इन्होंने अकेले ही एक सौ पचास से भी अधिक म्लेक्षों को मौत के घाट उतार दिया और घायल होने पर नेपाली सैनिकों ने इनको घोडे की पूँछ से बांधकर घसीटते हुवे लाकर कानपुर कलेक्ट्रेट के सामने बरगद के पेड़ पर फांसी से लटका दिया-
स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ।
सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥
अर्थात ये सच्चाई है कि पानी उबलने पर खौलने लगता है किन्तु धीरे-धीरे शान्त होकर फिर ठण्डा हो जाता है ! ऐसी ही कहानी कुछ हम हिन्दी भाषी समुदाय की न हो जाये इसका हमें ध्यान रखना होगा ! हमें ये ध्यान रखना होगा कि यह मांग हमारी अपने स्वयं के द्वारा चुनी हुई सरकार से है ! हम सच्चाई और अहिंसकता पूर्वक संविधान और सभी मानदण्डों का पालन करते हुवे प्रशासन एवं राज्य सरकार के अनुमोदन के पश्चात ही अमर शहीद मंगल पांडे जी की मूर्ति की स्थापना हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री श्रीमान हेमन्तो बिस्वशर्मा जी के कर-कमलों द्वारा होती देखेंगे ! और इसके अतिरिक्त हम किसी भी प्रकार से भारत के किसी भी महापुरुष की मूर्ति मंगल पांडे चौक पर स्थापित हो यह स्वीकार नहीं करेंगे ....-“आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्क सूत्रांक 6901375971”

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल