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चोरी ओर सेवा — मदन सुमित्रा सिंघल

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कृपा नगर में भंडारा स्वामी के नाम से मशहूर हरसुख साधारण दुकानदार था वो शहर में धार्मिक अनुष्ठान करने तथा बङे बङे धनाड्य लोगों के नाम से भंडारा लगाते थे। केदारनाथ का बहुत बङा कारोबार था इसलिए उन्हें किसी के यहाँ जन्म मृत्यु एवं शादी में जाने की फुर्सत नहीं तो कभी जरूरत भी नहीं समझी। हरसुख साधारण व्यक्ति था जो रात में इतनी सी चोरी करता था कि अगले को कोई नुकसान ना हो सिर्फ अपनी दुकान चलती रहे। दुकान में सुबह शाम तीन तीन घंटे जाता था दिन में सो जाता था क्योंकि रात में एक से तीन बजे चोरी करता था इसलिए दो घंटे आराम छह घंटे दुकान में काम सुबह एवं रात में धार्मिक अनुष्ठान में जुटा रहता था। केदारनाथ जब भी हरसुख कहता पांच सात सौ रूपये देकर मिष्ठान का भंडारा लगवा देता था। एक दिन हरसुख पकङा गया तो नगर समिति के सामने पेश किया गया। उसके दुकान एवं मकान की तलाशी ली गई तो कुछ भी नहीं मिला। सिर्फ एक चाबियों का गुच्छा मिला तो दो बङे तीन चार छोटे छोटे झोले मिले।  नगर समिति के वरिष्ठ लोगों ने हरसुख को हाथ जोड़कर पुछा कि आप जो भी सफाई देंगे वो ही हम सुनकर आपको छोङ देंगे क्योंकि कृपा नगर में आपकी कृपा से ही धर्म कर्म होता है तो हरसुख ने बताया कि मुझे ऐसे धार्मिक काम करने का नशा हो गया इसलिए समय नहीं मिलता कि मैं बाजार में जाकर समान खरीदने के बाद बैठकर बेच सकूँ इसलिए केदारनाथ जी ने कहा कि यह मेरा काम संभालो तो मैंने हां तो भरदी। लेकिन मैंने निर्णय लिया कि चाबियों से किसी की दुकान खोल कर थोड़ा सा समान ले जाउँ ताकि उसे पता भी नहीं चले ना ही नुक्सान हो वो ही समान मैं बेचकर अपनी ग्रहस्थी पालता हूँ। केदारनाथ अब बङे व्यवसायी बन गये तो वो छोटे छोटे काम नहीं करते।  सब अचंभित थे वही भोलेपन पर तरस खाकर कहा कि हालांकि आप धार्मिक एवं अच्छे इंसान है आप चोरी करने के बावजूद भी इमानदार भी है लेकिन यह अच्छा काम नहीं आप छह घंटे नगर समिति में काम करें हम पर्याप्त वेतन देंगे तथा धार्मिक काम करने के लिए धन एवं समय।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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