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भगवान राम के विवाह के बारे में क्या है, मिथिला के लोगों का सोच – डॉ. बी. के. मल्लिक

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मार्गशीष यानी अगहन महीना के शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को राम और सीता का विवाह हुआ था। उसी समय से इस पंचमी को विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम को सीताजी से विवाह हुआ था। लोग इस दिन शादी का मुहूर्त को शुभ मानते है और  यह एक ऐसा दिन है जिस दिन को बिना पंचाग देखे भी लोग शादी करते है।  मिथिला और नेपाल में रहने वाले लोग विवाह पंचमी के दिन शादी नहीं करते है । मिथिला के लोगो कहना है कि राजा जनक ने  सीताजी की शादी  ऐसे मुहूर्त में किया जिसके कारण सीता जी को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा। लेकिन मिथिला के लोग विवाह पंचमी को बड़े धूम धाम से मनाते   हैं।
 मिथिला का राजा जनक  जिसका राजधानी जनकपुर था और सीताजी को  मिथिला मे बेटी कही जाती है। इसलिए भी मिथिलावासी सीता के दुख और कष्टों को लेकर अतिरिक्त रूप से संवेदनशील हैं। 14 वर्ष वनवास के बाद भी गर्भवती सीता का राम ने परित्याग कर दिया था। इस तरह राजकुमारी सीता को महारानी सीता का सुख नहीं मिला। इसीलिए विवाह पंचमी के दिन लोग अपनी बेटियों का विवाह नहीं करते हैं। आशंका यह होती है कि कहीं सीता की तरह ही उनकी बेटी का वैवाहिक जीवन दुखमय न हो।
मिथिला में विवाह पंचमी पर की जाने वाली रामकथा का अंत राम और सीता के विवाह पर ही हो जाता है। क्योंकि दोनों के जीवन के आगे की कथा दुख और कष्ट से भरी है और इस शुभ दिन सुखांत करके ही कथा का समापन कर दिया जाता है।
राम और सीता के विवाह की वर्षगांठ के तौर पर विवाह पंचमी का उत्सव मनाया जाता है।
 रामायण के अनुसार भगवान राम और देवी सीता भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के अवतार हैं। दोनों ने समाज में आदर्श और मर्यादित जीवन की मिसाल कायम करने के लिए मानव का अवतार लिया।  बिहार के सीतामढ़ी जिले में सीता का जन्म धरती से हुआ है। जब जनक हल चला रहे थे, तब उन्हें एक नन्हीं-सी बच्ची मिली थी। इसे ही नाम दिया गया सीता, यही जनकनंदिनी कहलाईं।
रामायण के अनुसार एक बार बचपन में सीता ने मंदिर में रखे धनुष को बड़ी सहजता से उठा लिया। उस धनुष को तब तक परशुराम के अतिरिक्त और किसी ने उठाया नहीं था। तब राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो कोई शिव का यह धनुष उठा पाएगा, उसी से सीता का विवाह किया जाएगा।
उसके बाद सीता के स्वयंवर का दिन निश्चित किया गया और सभी जगह संदेश भेजे गए। उस समय भगवान राम और लक्ष्मण महर्षि वशिष्ठ के साथ दर्शक के रूप में उस स्वयंवर में पहुंचे थे। कई राजाओं ने प्रयास किए, लेकिन कोई भी उस धनुष को हिला न सका। प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर की बात थी। हताश जनक ने करुण शब्दों में अपनी पीड़ा वशिष्ठ के सामने व्यक्त की थी ‘क्या कोई भी मेरी पुत्री के योग्य नहीं है?” तब महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को इस स्वयंवर में भाग लेने के लिए आदेशित किया।
अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान श्रीराम ने धनुष उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे कि धनुष टूट गया। इस तरह उन्होंने स्वयंवर की शर्त को पूरा किया और सीता से विवाह के लिए योग्य पाए गए।
राम और सीता भारतीय जनमानस में प्रेम, समर्पण, उदात्त मूल्य और आदर्श के परिचायक पति-पत्नी हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार  राम-सा कोई पुत्र, भाई, योद्धा और राजा नहीं हुआ। उसी तरह इतिहास-पुराण में सीता-सी कोई पुत्री, पत्नी, मां, बहू नहीं हुई। इसलिए भी हमारे समाज में राम और सीता को आदर्श पति-पत्नी के रूप में स्वीकारा, सराहा और पूजा जाता है। इसी के मद्देनजर राम-सीता के विवाह की वर्षगांठ को उत्सव के रूप में मनाए जाने की परंपरा है।
डॉ. बी. के. मल्लिक
वरिष्ठ लेखक
9810075792

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