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पूर्वोत्तर संत मणिकांचन सम्मेलन २०२३ – उत्तर कमलाबारी सत्र, माजूली (असम)

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१९६६ जोरहाट संत सम्मेलन के बाद दिनांक २८ दिसंबर २०२३ को “पूर्वोत्तर संत मणिकांचन सम्मेलन” असम की सत्रों की पवित्र भूमि माजूली के उत्तर कमलाबारी सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्यनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। इसका आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ,उत्तर असम प्रांत के द्वारा आयोजित किया गया। इस एकदिवसीय संत सम्मेलन में पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों के ४८ सत्रों के सत्राधिकार तथा ३७ विभिन्न धार्मिक संस्थानों से कुल १०४ धर्माचार्यों की उपस्थिति रही। इस सम्मेलन का मुख्य हेतु सभी संप्रदायों के बीच संपर्क, समन्वय, सदभाव और समरसता को आगे बढ़ाने के लिए किया गया।इस कार्य के लिये परस्पर सहयोग का आवाहन किया गया ।
इस संत सम्मेलन में पूर्वोत्तर के सभी संप्रदायों की समस्याओं के पर चिंतन-मंथन हुआ। संत सम्मेलन में सरसंघचालक डॉ.मोहन भागवत जी ने कहा कि जैसे हर एक व्यक्ति का एक निश्चित स्वभाव होता है ,ठीक वैसे ही हर एक राष्ट्र का अपना स्वभाव या चरित्र होता है।राष्ट्र का स्वभाव उसकी संस्कृति से आता है। भारत का स्वभाव ‘एकम् सत् विप्रा: बहुधा वदन्ती ‘ से प्रतिफलित होता है – सत्य एक है पर विद्वान लोक उसे अनेकों भाष्य में बताते हैं। यह सर्व समावेशी संस्कृति केवल भारत में ही है। परम पूजनीय डॉ. भागवत जी ने कहा कि आज के समय में विश्व को शांति और सहअस्तित्व का संदेश और इसपर केंद्रित जीवन-पद्धति देने के लिये भारत को खड़ा ही रहना पड़ेगा। इस कार्य के लिये संतों को ही समाज में आगे आना होगा ।
डॉ भागवतजी ने सबको स्मरण दिलाया कि हम सबके पूर्वज एक हैं, सबकी मान्यतायें एक हैं, और हम सबको अपनी विविधताओं का पालन करते हुए हमारी एकता को आगे ले जाना है। एकता समरूपता नही है अपितु समभाव है। परम पूजनीय सरसंघचालक जी ने सेवा के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार आदि के द्वारा समाज को स्वावलंबी बनाने पर बल दिया।
डॉ भागवत जी ने यह भी कहा की संस्कारों के साथ परिवारों में राष्ट्रीय सजगता की अति आवश्यकता है। हमारी नयी पीढ़ी तक इस भाव और हमारी श्रेष्ठ आध्यात्मिक मूल्यों को पहुँचाने का काम सभी धर्माचार्यों और उनके मठ-मंदिरों को करना चाहिए। सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी ने यह भी कहा कि जिस तरह महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव जी ने अपने श्रेष्ठ जीवन व्यवहार से अपने समाज का सुधार किया ठीक उसी तरह हमें भी संगठित शक्ति के द्वारा वर्तमान कुरीतियों को समाप्त करना है।
आज के इस एक दिवसीय संत सम्मेलन में पूर्वोत्तर भारत के प्रमुख संतों में त्रिपुरा के शांतिकाली आश्रम से श्री चितरंजन जी महाराज , उत्तर कमलाबारी सत्र के श्री जनार्दनदेव गोस्वामी, आऊनी आती सत्र, दक्षिणपात सत्र, गढ़ मूल सत्र, बरपेटा के श्री सुंदरिया सत्र, नामसाई बोधि विहार के श्री भंते, परशुराम कुंड के बाबा, श्रीमंत शंकरदेव संघ, जयंतियाँ पहाड़ के डलोई श्री पूरामोन किंजिन, झेलियांग रांग हररका, बोडो बलि बाथो समाज, राजश्री भाग्यचन्द्र फाउंडेशन मणिपुर, लखीमन संघ, कार्गु गामगी समाज और असम सत्र महासभा आदि विशेष रूप से उपस्थित थे।
पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का दो दिवसीय माजूली प्रवास कल एक विशाल जनसभा को संबोधित करने के उपरांत समाप्त होगा।

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