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बच्चा बच्चा राम का जन्मभूमि के काम का-(2)—शास्त्री सिलचर,

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सम्माननीय मित्रों ! विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित प्रथम एकात्मता गंगा यात्रा में रथारूढ माँ भारती एवं विशाल ताम्र कलश में गंगाजल था ! प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी छे इंच मोटी लगभग 8×8 फुट की चौडी प्लेट पर भगवे ध्वज के साथ भारत के मानचित्र मध्य मेरी माँ भारती विराजमान थीं ! जिस नगर,गांव,सडकों से ये रथ निकलता विशाल जन सैलाब उनके दर्शन हेतु टूट पडता ! इसी यात्रान्तर्गत दंताली आश्रम के प्रसिद्ध संत श्री सच्चीदानंद जी,गुजरात विश्व विद्यालय के कुलपति पद्मश्री श्रीमान केका शास्त्री जी,महंत शिवानंद जी,प्रातः स्मरणीय पूज्य संत श्री चिन्मयानंद जी,अशोक सिंघल जी,श्री ए एस आप्टे जी, श्री लालकृष्ण आडवाणी जी जैसे मूर्धन्य स्वनामधन्य महापुरुषों से मेरा व्यक्तिगत परिचय हुवा ! इनमे से कोई न कोई एक व्यक्तित्व प्रत्येक धर्म सभा में होते।
मुझे धुँधली-धुँधली सी यादें हैं कि बनासकांठा,महेसाणा,पाटन,
साबर कांठा,अहमदाबाद आदि जिलों में मेरी उपस्थिति में दर्जनों स्थानों पर मुस्लिमों ने पथराव किये ! गोलियां चलायीं ! तद्कालीन स्थानीय कांग्रेस सरकार के उकसावे एवं मौन समर्थन से रथ के रात्रिकालीन ठहेराव में आयोजित होती विशाल धर्म सभा क्षेत्र में अराजकता फैलायी जाती ! बिजली काट दी जाती ! अचानक ही पुलिस सुरक्षा बल हटा दिया जाता ! सभा की मिली हुयी स्वीकृत रद्द कर दी जाती ! शोभायात्रा का मार्ग जबरन परिवर्तित कर दिया जाता ! मस्जिदों से लाउडस्पीकर द्वारा गालियां दी जातीं ! और किसी न किसी स्थानीय अथवा शोभायात्रा के चल रहे कार्यकर्ता पर एफआइआर कर दी जाती !
मुझपर उस अवधि में चार एफआइआर हुयीं ! किन्तु पुलिस-प्रशासन कोई भी हो वो हैं तो मनुष्य ! भला बुरा सब समझते हैं वे ! अच्छे-बुरे की पूरी पहचान है उनको ! कोई भी एफआइआर चाहे किसी पर हुयी हो सभी स्थानीय थानों पर ही एफआर में स्पष्ट हो जातीं कि-“ये लोग निर्दोष थे इनके विरुद्ध न्यायिक षड्यंत्र किया गया”।
मुझे स्मरण है कि उस समय समूचा गुजराती व्यवस्था मुस्लिमों के समक्ष नतमस्तक थी क्योंकि-“सरपंच,नगर प्रमुख,डेलीगेट, सांसद,विधायक,राज्यपाल,निगम सभी के सभी स्थान कांग्रेसी भ्रष्ट विचारधारा से प्रभावित लोगों की थी ! और सामान्य धर्म प्राण हिन्दू उन लाखों करोड़ों भेंड बकरियों की तरह थे जो अत्यंत ही धैर्य पूर्वक कातर नेत्रों से अपने किसी नायक को ढूंढ रहे थे ! उद्धारक की प्रतिक्षा कर रहे थे और इसी अवधि में एकात्मता यात्रा ने समूचे हिन्दू जनमानस में नयी ऊर्जा नये प्राण फूंक दिये तथा अंततः साबरमती के उसपार अहमदाबाद में एकात्मता यात्रा रथ की एक और विशाल धर्म सभा होने के पश्चात आदरणीय श्री लालकृष्ण आडवाणी जी के सानिध्य में सोमनाथ मंदिर की ओर रथ ने प्रयाण किया।इस अवधि में हमारे साथ के अनेक कार्यकर्ताओं ने अपना प्राणोत्सर्ग भी किया।
मित्रों ! इसके पूर्व 21/7/1984 को अयोध्या में-“श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समीति”का गठन हुवा था इसमें भी मुझे जाना था किन्तु दुर्भाग्य से अचानक ज्वरातिसार होने के कारण
तब मुझे चिकित्सालय में सात दिनों तक रहना पडा।
तदोपरान्त 1985 में मेरे दिशा पथ प्रदर्शक संघ प्रचारक आदरणीय श्री लाल जी भाई प्रजापति एवं प्रवीण भाई ओतिया ने आश्रम आकर बताया कि स्वामी जी ! उडूपी कर्नाटक में विश्व हिन्दू परिषद के तत्वावधान में द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय धर्म संसद आयोजित की जा रही है ! और आपको निमंत्रण भेजा गया है ! अत्यंत ही हर्षित होकर मैं उडुपी गया जहाँ त्रिदिवसीय सम्मेलन हुवा जिसमें समूचे विश्व के कोने-कोने से बीस हजार से भी अधिक साधू महात्मा एकत्रित हुवे ! यह पहला अवसर था जब सीख,जैन,बौद्ध,शाक्त,शैव्य,वैष्णव,दास,नाथ,दशनामी, वेदान्ती, चार्वाक,आस्तिक-नास्तिक ! हिन्दी,बिहारी,बंगाली,मराठी,कन्नड़, उडिया,तमिल  कश्मीरी सभी के सभी एक साथ एक मंच पर भगवा ध्वज तले एकत्रित हुवे ! और यहाँ सर्वप्रथम गहन विचार विमर्श के पश्चात श्रीमहंत चिन्मयानंद जी ने सार्वजनिक रूप से मंच से सिंह की तरह दहाड़ते हुवे श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समीति की ओर से कि कहा-“बच्चा-बच्चा राम का ! जन्मभूमि के काम का।”
मित्रों ! इसी उद्देश्य को लेकर समूचे भारत में जब हिन्दू जनमानस व्यग्र हो रहा था तभी जिस स्थान पर इस अंतर्राष्ट्रीय धर्म संसद का आयोजन हुआ था उसी स्थान पर केन्द्र और राज्य सरकारों ने हिन्दुओं को चिढाने के लिये केवल एक सप्ताह पश्चात वेटिकन सिटी से ईसाईयों के मुख्य धर्माचार्य-“पोप जाॅन पाॅल द्वितीय” को बुलाया और विशाल-“प्रे” का आयोजन किया था ! क्या इस अपमान को हमारे धर्माचार्य भूल जायेंगे ? कांग्रेस को इस पाप का भूत कब्रिस्तान में भी सताता रहेगा।
विश्व हिन्दू परिषद का प्रतीक चिन्ह-“वट-वृक्ष” है! ये वही वृक्ष है जिसकी छाँव में गुरूकुल में हमारे बटुक वेद पढना सीखते थे ! जहाँ गौतम से अचानक-“बुद्ध” हो गये ! मुझे गर्व है कि इसी वट वृक्ष की छाँव तले मेरे जीवन के पचासों वर्ष व्यतीत हो गये !
बहुत कठिन दिन थे वे संघ के लिये ! और किसी भी हिन्दुत्व पर गर्व करने वाले व्यक्तियों के लिये ! गुजरात की स्थिति अत्यंत ही चिन्ताजनक थी मुझे स्मरण है कि छोटे छोटे केवल दो कमरों के स्थान पर महेसाणा जैसे प्रसिद्ध जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यालय था ! कईयों जिलों में तो कार्यालय भी नहीं थे।
ऐसी विषम परिस्थिति में एक बैठक रखी गयी थी ! जिसमें लगभग दो सौ व्यक्तिओं ने भाग लिया ! इनके भोजन की व्यवस्था बीस लोगों को दी गयी थी ! जिन्होंने अपने मोहल्ले में घर-घर जाकर एक-एक पैकेट भोजन इकट्ठा किया था ! तब मैं अपने हांथों से बाजरे की रोटी और लहसुन,मिर्च तथा धनिया की चटनी लेकर गया था ! वो रोटियां रात तीन बजे उठकर मिट्टी के चूल्हे पर लकडियों से बनायीं थीं ! और जिसने भी वो रूखी-रोटी और चटनी खायी उसने यही कहा कि -“रोटी हो तो इसके जैसी” इसी सभा में स्थानीय विश्व हिन्दू परिषद ने स्थानीय स्तर पर महेसाणा जिले के लिये यह उद्घोष करवाया था-“अभी तो ये अंगडाई है ! आगे और लडाई है”क्रमशः ..आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″

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