फॉलो करें

राम मंदिर में पहली बार मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा 23 दिसंबर 1949 को कैसे हुआ- डॉ. बी.के. मल्लिक

149 Views
अयोध्या में पहली बार भगवान राम की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा 23 दिसंबर 1949 को हुआ था। इसका एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है। बाबरी मस्जिद में वहां पर सफाई के दौरान खुदाई में भगवान राम की मूर्ति वहां से निकला। वहां के संतों को पता चला और वे लोग मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी करने लगे। इस बात की जानकारी तत्कालीन जिलाधिकारी श्री के. के. नायर  जब पता लगा तो वह भी इस कार्य के पक्षधर थे।
23 दिसंबर 1949 की सुबह 7 बजे अयोध्या थाने के तत्कालीन एस.एच.ओ. रामदेव दुबे रूटीन जांच के दौरान मौके पर पहुंचे, तो वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी। रामभक्तों की भीड़ दोपहर तक बढ़कर 5000 लोगों तक पहुंच गई। अयोध्या के आसपास के गांवों से श्रद्धालुओं की भीड़ बालरूप में प्रकट हुए भगवान राम के दर्शन के लिए टूट पड़ी। हर कोई ‘भय प्रकट कृपाला’ गाता हुआ विवादित स्‍थल की ओर बढ़ा चला जा रहा था। भीड़ को देखकर पुलिस और प्रशासन के हाथपांव फूलने लगे। उस सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में वही मूर्ति प्रकट हुई थी, जो कई दशकों से राम चबूतरे पर विराजमान थी। इनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था।
उस समय के मुख्यमंत्री श्री गोविंद बल्लभ पंत के द्वारा जब प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जब पता चला तो वे विवादित स्थल पर रखी गईं रामलला की मूर्तियों को हटवाने के लिए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें दो बार आदेश दिया। उस समय के जिलाधिकारी श्री के.के. नायर ने दोनों बार उनके आदेश का पालन करने में असमर्थता जता दी। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री गोविंद बल्लभ पंत थे। आदेश नही मानने के कारण उन्हे निलंबित कर दिया गया। श्री नायर उस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट गए और हाईकोर्ट ने उन्हें फिर से पद पर बहाली करने का आदेश दिया। उसके बाद वहां के जिलाधिकारी पद पर पुनः पदासीन हो गए।
इस कार्य के लिए भगवान श्री राम की इतनी कृपा हो गया कि उनको और उनके पत्नी की तरक्की के साथ साथ उनका ड्राइवर भी विधायक बन गया।  के के नायर का हिंदुओं में उनकी ऐसी छवि बनी कि वह खुद और उनकी पत्‍नी शकुंतला नायर लोकसभा चुनाव जीते। यही नहीं, उनका ड्राइवर भी उत्‍तर प्रदेश में विधायक बना।
 उन्‍होंने और उनकी पत्‍नी ने बाद में लोकसभा चुनाव लड़ा ही नहीं, जीता भी। यही नहीं, उनकी छवि का फायदा उनके ड्राइवर तक को मिला। उनके ड्राइवर ने उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ताल ठोकी और जीतकर विधायक बना।
अलेप्‍पी के नायर 1930 बैच के आइसीएस अफसर, दरअसल 22 और 23 दिसंबर 1949 की आधी रात बाबरी मस्जिद में कथित तौर पर गुपचुप तरीके से रामलला की मूर्तियां रख दी गईं। इसके बाद अयोध्या में शोर मच गया कि जन्मभूमि में भगवान प्रकट हुए हैं। लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, मौके पर तैनात कॉन्स्टेबल माता प्रसाद ने घटना की सूचना थाना इंचार्ज राम दुबे को दी। माता प्रसाद ने बताया कि 50 से 60 लोग परिसर का ताला तोड़कर अंदर घुस गए। इसके बाद उन्‍होंने वहां श्रीराम की मूर्ति स्थापित कर दी। साथ ही पीले और गेरुए रंग से श्रीराम लिख दिया। हेमंत शर्मा ने अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखा है कि केरल के अलेप्पी के रहने वाले के.के. नायर 1930 बैच के आईसीएस अधिकारी थे। उनके फैजाबाद के डीएम रहते बाबरी ढांचे में मूर्तियां रखी गईं।
 हेमंत शर्मा किताब में लिखते हैं कि बाबरी मामले से जुड़े आधुनिक भारत में नायर ऐसे व्‍यक्ति हैं, जिनके कार्यकाल में इस मामले में सबसे बड़ा मोड़ आया। इससे देश के सामाजिक – राजनीतिक ताने-बाने पर बड़ा असर पड़ा. केके नायर 1 जून 1949 को फैजाबाद के कलेक्टर बने थे। 23 दिसंबर 1949 को जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में रखी हुईं तो नेहरू ने यूपी के तत्‍कालीन सीएम गोविंद बल्लभ पंत से तत्‍काल मूर्तियां हटवाने को कहा। उत्तर प्रदेश सरकार ने मूर्तियां हटवाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। के.के.नायर बने सांसद, तो उनका ड्राइवर बना विधायक, किताब के मुताबिक, तत्‍कालीन पीएम नेहरू ने मूर्तियां हटाने को दोबारा कहा तो नायर ने सरकार को लिखा कि मूर्तियां हटाने से पहले मुझे हटाया जाए। देश के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई। डीएम नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। फिर देश की चौथी लोकसभा के लिए उन्‍होंने उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए। उनकी पत्‍नी शकुंतला नायर भी जनसंघ के टिकट पर कैसरगंज से तीन बार लोकसभा पहुंचीं। बाद में उनका ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बना। विवादित स्थल से मूर्तियां नहीं हटाने का मुसलमानों ने विरोध किया। दोनों पक्षों ने कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। फिर सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया।
भगवान रामलीला के मूर्ति लगवाने में तत्कालीन डीएम श्री के के नायर की भूमिका बहुत ही सकारात्मक था जिसके कारण वहां पर रामलीला की मूर्ति स्थापित की गई। उनके द्वारा किया गया कार्य पर हम सभी सनातनियों को गर्व होना चाहिए। (साभार समाचार पत्र)
डॉ. बी. के. मल्लिक 
वरिष्ठ लेखक
9810075792

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल