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महासंकट में लंगर / इस संस्कृति को प्रणाम

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महासंकट में लंगर / इस संस्कृति को प्रणाम
कहते हैं महासंकट में ,
किसी देश की संस्कृति ,
नस्ल इंसान ईमान कमान,
खरे सोने की पहचान होती है ।
कोरोना विषाणु उपभेद के ,
उभरने की खबर क्या फैली ,
दहशत में पूरा यूरोप इंग्लैंड ,
पूरे यू के में फिर से नाकाबंदी ,
केंट सीमा पर फंसे रहे ,
भूखे प्यासे बहुतेरे ट्रक ड्राइवर I
खबर पहुंची निकट के गुरूद्वारे ,
चंद लमहों में ,
लंगर परंपरा के अनुसार ,
गरमागरम खाने के साथ ,
अकल्पनीय सदाशयता के साथ ,
सिक्ख समुदाय हाज़िर था,
ट्रक ड्राइवरों के पास ।
कहते हैं न ,
युद्ध में त्याग और बलिदान ,
सिक्ख शूरवीरों से सीखें ,
शीश कट जाये ,
पर आततायी के सामने ,
झुकते नहीं ये सूरमें ।
दयाराम उबलते पानी के हंडे में ,
बंद कर दिये गये ,
सतीदास रुई में लपेट कर ,
जिन्दा जला दिये गये ,
और मतीदास सरेआम आरी से ,
चीर दिये गये ,
पर क्रूरता बर्बरता के समक्ष ,
गुरु तेगबहादुर नतमस्तक नहीं हुये,
शीश कट गया पर उफ तक नहीं किये I
ऐसे प्रणम्य गुरु तेगबहादुर ,
दशमेश गोविन्द सिंह को प्रणाम I
दो साहिबजादे ,
जोरावर सिंह फतेह सिंह ,
जीवित दीवार में चुन दिये गये,
बाकी दो अजित और जुझार ,
दुश्मनों से लोहा लेते ,
जूझते खेत रहे,
मुगलों के पैर उखड़ गये I
समर में शेर ये बब्बर ,
निडर सिंह शावक थे ,
शिष्य गुरु तेग बहादर ,
सहोदर युगों की धरोहर I
महाअधर्म में चट्टान ,
महायुद्ध में सिकंदर,
महासमर में न्यौछावर ,
महासंकट में लंगर I
वीरता जिनकी पहचान ,
हिन्द की आन बान शान ,
ऐसा गुरु पंथ स्वर्गधाम ,
इस संस्कृति को प्रणाम I
– डाक्टर श्रीधर द्विवेदी, 24 दिसम्बर 2020 ।

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