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जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अहंकार पूर्वक घोषणा की थी कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता, सारे रास्ते सील कर दिए गए थे, बस- ट्रेन बंद कर दी गई थी, फिर भी लाखों की संख्या में कैसे अयोध्या पहुंच गए कारसेवक? 2 नवंबर 1990 को प्रयागराज से अयोध्या पैदल जाने का एक संस्मरण कारसेवक दिलीप कुमार की जुबानी:
बात उन दिनों की है जब 1990 में कारसेवा के लिए सोमनाथ से अयोध्या के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता माननीय लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा निकली थी। 31 अक्टूबर को कारसेवा का दिन निर्धारित किया गया था लेकिन उसके पहले ही बिहार में लालू यादव की सरकार ने आडवाणी जी के रथ को रोक दिया था और उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। उत्तर प्रदेश और बिहार सहित देश के विभिन्न भागों में कारसेवा में जाने वालों की गिरफ्तारियां हो रही थी। अयोध्या जाने वाले सभी रास्तों को बंद कर दिया गया था। स्कूल, सिनेमा हॉल और गोदामघरों को जेल बना दिया गया था। उत्तर प्रदेश की सारी जेले कारसेवकों से भर गई थी। मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक अंतिम वर्ष का छात्र था, साथ में आईईआरटी से पार्ट टाइम कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कोर्स भी कर रहा था। इलाहाबाद अयोध्या आंदोलन का केंद्र बन गया था। मैंने भी कारसेवा में अयोध्या जाने का निर्णय लिया।
पता चला कि 29 अक्टूबर को जगतगुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती के साथ हजारों कारसेवक प्रयागराज से अयोध्या के लिए कुच करेंगे। मैं भी उसी जत्थे में शामिल हो गया। शायंकाल यात्रा शुरू हुई, नगर भ्रमण के पश्चात यात्रा जब गंगा जी पर स्थित फाफामऊ पुल के पास पहुंची तो पुलिस ने रास्ता ब्लॉक कर दिया और लोगों को गिरफ्तार करना शुरू किया। कारसेवकों को बसों में भर भर कर जेल भेजा जाने लगा। कुछ कारसेवकों के साथ मैं पुलिस को धक्का देते हुए पुल पर आगे बढ़ गया और पुलिस हमलोगों को गिरफ्तार करती उसके पहले ही हम लोग पुल के नीचे कूद गए। हम लोग वहां से फाफामऊ पहुंचे, जहां कई बसों में गिरफ्तार किए हुए कारसेवकों को रखा गया था। वहां हम लोगों ने बहुत सारे कारसेवकों को छुड़ा लिया और रेलवे लाइन से अयोध्या की तरफ चल दिए। रात भर चलते-चलते प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन पहुंचे, वहां थोड़ी देर विश्राम के लिए प्लेटफार्म पर सोए ही थे कि पुलिस आकर कारसेवकों को गिरफ्तार करने लगी। मैं धीरे से प्लेटफार्म से लुढ़क कर रेलवे लाइन पर चला गया और छुपते- छुपाते रेलवे स्टेशन के नजदीक एक मेला लगा हुआ था, वहां पहुंचकर एक चौकी पर थोड़ी देर विश्राम किया।
उजाला होते ही मैंने एक बुजुर्ग सज्जन से अयोध्या का रास्ता पूछा, उन्होंने पूछा कि कैसे जाएंगे, बस ट्रेन सब बंद है। मैंने कहा पैदल जाऊंगा, सुनते ही द्रवित होकर रोने लगे और कहने लगे इतना अत्याचार तो अंग्रेजों ने भी नहीं किया था। मुझे अपने घर ले गए, चाय नाश्ता कराया, रास्ते के खाने के लिए भी दिया और मुझे अयोध्या के रास्ते पर पहुंचा दिया। मैंने देखा अयोध्या जाने के लिए खेतों में रास्ता बन गया है, लोग पगडंडी से जा रहे हैं। कहां-कहां के लोग मिल रहे थे कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, राजस्थान पूरे देश के कारसेवकों का लाइन लगा हुआ था। रास्ते में गांव-गांव में लोग कारसेवकों के स्वागत में कहीं खिचड़ी, कही पूरी सब्जी, कहीं चाय नाश्ते की व्यवस्था किए हुए थे। हम आगे बढ़ते ही जा रहे थे। पैदल ही सई नदी पार किया, बकुल्ही नदी पार किया, नदी में पानी कम था। किंतु जब सुल्तानपुर में गोमती नदी के किनारे पहुंचे तो उसे पार कर पाना संभव नहीं था। पार करने का एक ही साधन था नांव किंतु वहां घाट पर पुलिस का पहरा था। धीरे-धीरे कारसेवक वहां जमा होने लगे, 4- 500 कारसेवक हो गए। पुलिस वाले 4-5 ही थे, उनके पास हथियार के नाम पर डंडा ही था। एक पुलिस वाले ने हम लोगों को कहा कि आप लोग अगर उस पर जाना चाहते हैं तो हम लोगों को पेड़ में बांध दीजिए और नाव लेकर चले जाइए। हम लोगों ने ऐसा ही किया, पुलिस वालों को पेड़ में बांधकर और हम लोग नांव से पार हो गए।
30 तारीख की रात में हम लोग तमसा नदी पार किए। पानी ज्यादा नहीं था किंतु बहुत ठंडा था कपड़े भीग गए। एक ही कपड़ा पहन कर घर से निकले थे, दूसरा कपड़ा नहीं लिया था। चलते चलते पैरों में छाले भी पड़ गए थे, ठीक से चला नहीं जा रहा था। एक जगह लोगों ने अलाव की व्यवस्था की थी, वहां कपड़े सुखाए और रात बिताई। 31 अक्टूबर की सुबह हम लोग अयोध्या से 50 किलोमीटर दूर थे। दोपहर होते-होते वापस आते लोग मिलने लगे और बोले कारसेवा शुरू हो गई। हम लोगो का उत्साह दुगुना हो गया किंतु पैर में छाले होने के कारण तेज गति से चल नहीं पा रहे थे, लंगड़ा रहे थे। रास्ते में लोग रोकते थे, कहते थे, आपका संकल्प पूरा हुआ, अभी यहां विश्राम कीजिए, आराम होने पर जाइएगा। किंतु हमारा संकल्प था रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, चाहे जितना खून बहे पर पीछे पग न हटाएंगे। नाचते-गाते, नारा लगाते मस्ती में कारसेवकों की टोलिया अयोध्या की तरफ बढ़ती ही जा रही थी। रात होते होते हम लोग अयोध्या कारसेवक पुरम में पहुंच गए। वहां पता चला की पुलिस के लाठी चार्ज में श्रद्धेय अशोक सिंघल जी का सर फट गया, कुछ लोगों को गोली भी लगी है।
रात्रि विश्राम के पश्चात 1 नवंबर को सुबह मणिराम छावनी में कारसेवकों की सभा को श्रद्धेय अशोक सिंघल जी ने संबोधित किया, उन्होंने कहा कि आज विश्राम है, कल पुन: कारसेवा की जाएगी। मैंने सोचा कि चलो आज घूम कर रास्ता देख लेते हैं, कल कैसे राम जन्मभूमि की तरफ जाना है। रास्ता देखने के चक्कर में पुलिस ने हमको पकड़ लिया, उसमें भी दरोगा परिचित निकल गया। दरोगा ने मुझे बहुत गाली दिया क्योंकि उसे पता था कि मेरी मां को कैंसर है। उसने कहा कि मां को छोड़कर कारसेवा में आए हो, कल की कारसेवा में कोई जिंदा बचकर जाने नहीं पाएगा। मैंने कहा हम हिंदू अयोध्या आए हैं, प्राणों की बलि चढ़ाएंगे, चाहे जितना खून बहे, पर मंदिर बना कर जाएंगे। पुलिस वालों ने मुझे पकड़ कर, गिरफ्तार किए गए कारसेवकों की बस में बैठा दिया। बस जब अयोध्या से निकल गई तो मैं बस में हंगामा करने लगा कि मुझे नहीं जाना है। सभी कारसेवकों ने मेरा पक्ष लिया और कहा कि जब यह नहीं जाना चाहते हैं तो इनको उतार दो। बस में केवल दो पुलिस वाले थे, उन्होंने कहा कि यहां सड़क पर उतारने से सुरक्षा बल गोली चला देंगे। पुलिस वालों ने मुझे फैजाबाद रेलवे क्रॉसिंग पर उतार दिया। संजोग से रेलवे क्रॉसिंग के पास ही मेरे एक परिचित का घर था और मैं उनके घर चला गया। 1 तारीख को उनके घर में आराम किया, दवा खाया, कपड़े धोए। 2 तारीख को कारसेवा में जाने से वह लोग भी मना कर रहे थे। किंतु मैं 2 तारीख को सुबह उन लोगों को बिना बताए, चुपके से छत से कूद कर, रेलवे लाइन पड़कर फिर से अयोध्या कारसेवक पुरम पहुंच गया।
मणिराम छावनी में कारसेवकों को निर्देश दिया जा रहा था कि पुलिस के साथ संघर्ष नहीं करना है, जहां पुलिस रोके वहीं रुक जाना है और बैठकर धीरे-धीरे आगे बढ़ना है, एक दूसरे की कमर कसकर पकड़ना है। आंसू गैस का प्रयोग होने पर उससे बचने के उपाय बताए जा रहे थे। मणिराम छावनी से दो दल बनाए गए, एक दल हनुमानगढ़ी होकर आदरणीय विनय कटियार जी के नेतृत्व में राम जन्मभूमि की ओर प्रस्थान किया। दूसरा दल कोतवाली होकर श्रद्धेय उमा भारती जी के नेतृत्व में जन्मभूमि की और कुच किया। मैं सुश्री उमा भारती के दल में था। नारा लगाते गीत गाते हजारों कारसेवक मुलायम सिंह का अभिमान चूर करने के लिए जन्मभूमि की तरफ बढ़ रहे थे। कोतवाली के पास ही पुलिस ने मोर्चा संभाल रखा था, वहां उमा भारती को गिरफ्तार कर लिया गया और कारसेवकों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े जाने लगे। छोटे-छोटे गोले आए, उनको कैच कर हम लोगों ने पुलिस पर वापस फेंका फिर बड़े-बड़े गोले आने लगे। आंसू गैस का गोला गिरते ही तेजी से धुआं फैलता था जो त्वचा में लगने से जलन होती थी, आंख में लगता था किसी ने मिर्च झोंक दिया। आंसू गैस से बचाने के लिए लोग घरों की छतों से पानी गिरा रहे थे, नमक दे रहे थे, मलने के लिए। कुछ लोगों ने पहले से चेहरे पर चूना लगा रखा था।
कोई आगे नहीं बढ़ पा रहा था, इसी बीच एक लड़की ललकारते हुए आगे बढ़ी सब कायर है। उसके पीछे कारसेवकों की भीड़ दौड़ पड़ी, मैं भी दौड़ा। पुलिस ने फायरिंग की, कई लोगों को गोली लगी। हम लोग तीन चार सौ कारसेवक चारों ओर से पुलिस के बीच फंस गए। पुलिस लाठी चार्ज कर रही थी और पकड़ पकड़ कर बसों में भर रही थी। सभी कारसेवक एक दूसरे को पकड़कर जमीन पर बैठ गए थे, पुलिस वाले मार रहे थे लेकिन कारसेवकों पर कोई असर नहीं था। इसी बीच भीड़ का एक रेला आया और पुलिस वाले भाग खड़े हुए। चारों ओर से फायरिंग की आवाज आ रही थी, हम लोग छुपते -छुपाते जन्मभूमि की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे थे। इसी बीच मैं भागते-भागते हनुमानगढ़ी पहुंच गया, जहां शरद कोठारी और रामकुमार कोठरी में एक भाई पुलिस की गोली से मारा जा चुका था और दूसरा भाई मेरी आंखों के सामने मारा गया। मुझे आंसू गैस के गोले लगे थे, पुलिस की लाठियां लगी थी, चारों तरफ खून ही खून बिखरा हुआ था। मैं बेहोश होकर गिर पड़ा।
जब मुझे होश आया तो मैंने अपने आप को कारसेवकों की लाशों के बीच पाया, मुझे भी कारसेवक उठाकर लाए थे और मरा हुआ जानकर कफन भी उढ़ा दिया था। मैं उठ बैठा, कारसेवक उत्तेजित थे, नारे लग रहे थे खून का बदला खून से लेंगे। पता चला बड़ी संख्या में कारसेवक गायब है, पुलिस वालों ने हत्या करके लाशें गायब कर दी। असंख्य कारसेवक बलिदान हुए, कितने अपंग हो गए, कितने घायल हो गए। मुलायम सिंह सरकार ने निहत्थे कारसेवकों पर अंधाधुंध फायरिंग करके मानवता को शर्मसार कर दिया। कारसेवा स्थगित करने की घोषणा हुई, सभी कारसेवकों को वापस जाने का निर्देश हो गया। पूरे देश में मुलायम सिंह सरकार के खिलाफ आक्रोश फैल गया। मैंने प्रयागराज में 7 फरवरी 1991 को फाफामऊ रेलवे पुल के शिलान्यास स्थल पर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का विरोध किया और मंच पर चढ़कर उन्हें चप्पल से मारा था। इसमें मेरी गिरफ्तारी हुई भीड़ ने मेरी बहुत पिटाई भी की थी। तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के ऊपर भी मैंने हमला किया था, उसमें भी गिरफ्तार होकर नैनी सेंट्रल जेल में 14 दिन रहा। जन्मभूमि आंदोलन की आग मेरे सीने में धधकती रही, मैं 1992 में संघ का प्रचारक बन गया। चुनार और सोनभद्र में काम करने के पश्चात मुझे 1995 में असम के चाय बागानों में काम करने के लिए भेज दिया गया। पिछले 33 वर्षों से संगठन, हिंदुत्व और समाज के लिए कार्यरत हूं। राम मंदिर का सपना साकार हुआ, हम भाग्यशाली हैं जो अपनी ही आंखों से आज पूरे दुनिया को राममय होते हुए देख रहे हैं।
आज अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थान पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है, यह हम सभी के लिए गर्व और आनंद का विषय है।