उत्तरकाशी, 22 जनवरी । उत्तराखंड के इस शहर को उत्तर की काशी कहा जाता है। गोमुख यहां से सिर्फ 120 किलोमीटर दूर है, जहां से पवित्र गंगा का उद्गम है। भगवान काशी विश्वनाथ की इस नगरी पर गंगा और भगवान शिव का रंग सबसे पक्का है। मगर अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का ये असर है कि बाबा भोलेनाथ की नगरी भी रामभक्ति से सराबोर है।
पौराणिक माघ मेले पर भी रामभक्ति की छाया है। इसलिए यहां होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बीच भी रह-रहकर जय श्रीराम का उद्घोष सुनाई दे जाता है। उत्तरकाशी के माघ मेले को बाड़ाहाट का थौलू कहा जाता है। बाड़ाहाट उत्तरकाशी का पुराना नाम है और थौलू का अर्थ मेले से होता है। दस दिनों तक चलने वाले इस मेले में सजावट हर बार खास होती है। रोशनी से सारा शहर जगमगाता है। मगर इस बार की सजावट हो या रोशनी, हर एक चीज पर अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की छाया है। यहां के बाजार भगवा झंडों से पटे हैं। तमाम दुकानों पर भगवा पेंट दिखाई देता है।
माघ मेला और अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का मिला-जुला प्रभाव काशी विश्वनाथ की नगरी को एक अलग सा अनुभव प्रदान कर रहा है। काशी विश्वनाथ मंदिर में अखंड रामायण का पाठ चल रहा है। इसके आयोजन से जुडे़ विद्युत उपभोक्ता शिकायत निवारण मंच के न्यायिक सदस्य कीर्ति प्रसाद भट्ट बेहद प्रफुल्लित हैं। कहते हैं-यह परम सौभाग्य है कि यह देखना हमें अपने जीवनकाल में नसीब हुआ है।
काशी विश्वनाथ मंदिर यहां का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध मंदिर है। छोटे-बडे़ तमाम मंदिर यहां कतार से हैं। हर मंदिर में खास सजावट है। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से सभी ने किसी न किसी रूप में अपने को जोड़ लिया है। साईं मंदिर के मुख्य पुजारी नरेश अरोड़ा का कहना है कि भगवान श्रीराम इस देश के प्राण तत्व है। उनके भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का पल अभूतपूर्व है। हर एक नागरिक हर्षित है।