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चुनाव से पहले ही बिखर रहा विपक्षी गठबंधन

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गुवाहाटी, 15 मार्च । लोकसभा चुनाव दहलीज पर आ चुकी है। किसी भी समय चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती है। जहां एक ओर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी हर प्रकार से चुनाव के लिए कमर कस चुकी है। वहीं, भाजपा को पराजित करने के लिए असम में 16 राजनीतिक दलों को मिलाकर बनाया गया विपक्षी गठबंधन ”यूनाइटेड अपोजिशन फोरम” ऐन मौके पर आकर धराशायी हो चुका है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा की अगुवाई में बने इस गठबंधन को सबसे पहले प्रदेश कांग्रेस द्वारा ही ठेंगा दिखा दिया गया। कांग्रेस पार्टी द्वारा राज्य की कुल 14 सीटों में से 13 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए गए। वहीं, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी से लेकर गठबंधन के तमाम घटक दलों ने अपने-अपने स्तर पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा सीपीआई और आम आदमी पार्टी से आग्रह कर रहे हैं कि कम से कम डिब्रूगढ़ सीट पर विपक्ष का साझा उम्मीदवार लुरिन ज्योति गोगोई को बनाया जाना चाहिए। लेकिन, आम आदमी पार्टी गुवाहाटी और शोणितपुर की सीट पर हटने के लिए तैयार भी है, लेकिन डिब्रूगढ़ सीट को छोड़ने के लिए पार्टी कतई तैयार नहीं है।

आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज धनवार पूरी ताकत से पिछले कुछ दिनों से चुनाव की तैयारियों में लगे हुए हैं। वहीं, असम जातीय परिषद के नेता लुरिन ज्योति गोगोई भी चुनावी मैदान में उतर गए हैं। भाजपा द्वारा केंद्रीय मंत्री तथा असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को डिब्रूगढ़ से उम्मीदवार बनाया गया है।

ऐसे में डिब्रूगढ़ सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना प्रबल हो गई है। यदि मुकाबला त्रिकोणीय हुआ तो निश्चित ही सर्बानंद सोनोवाल भारी मतों के अंतर से चुनाव जीत जाएंगे। क्योंकि, भाजपा विरोधी वोट लुरिन ज्योति गोगोई और मनोज धनवार के बीच बंट जाएगा।

कमोवेश इसी प्रकार की स्थितियां राज्य की अन्य लोकसभा सीटों पर भी बनती दिख रही है। खासकर धुबड़ी सीट पर लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके निवर्तमान सांसद एआईयूडीएफ प्रमुख मौलाना बदरुद्दीन अजमल के मुकाबले कांग्रेस पार्टी द्वारा दमदार उम्मीदवार राज्य के पूर्व मंत्री रकीबुल हुसैन को उतार दिया गया है। रकीबुल हुसैन की जीत हो सकती है या नहीं यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। लेकिन, रकीबुल हुसैन बदरुद्दीन अजमल के हारने का कारण जरूर बन सकते हैं। ऐसे में एनडीए के उम्मीदवार बीच से चुनाव जीत भी जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं है।

कांग्रेस द्वारा धुबड़ी में मजबूत उम्मीदवार उतारे जाने से बौखला चुके बदरुद्दीन अजमल ने नगांव, बरपेटा, बराक घाटी समेत राज्य के सभी मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार के लिए पराजय का सीधा कारण बन सकते हैं। क्योंकि, अल्पसंख्यक मुस्लिम वोटों पर कांग्रेस और एआईयूडीएफ दोनों की ही नज़रें टिकी हुई है। यदि जमीनी हकीकत को देखते हुए सभी गैर भाजपा दल समय रहते साझा उम्मीदवार खड़ा करने पर सहमत नहीं होते हैं तो विपक्षी पार्टियों की निजी महत्वाकांक्षा की बलिबेदी पर भाजपा राज्य में चुनावी परचम लहरा सकती है।

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