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कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय में जगद्गुरु शंकराचार्य व्याख्यानमाला संपन्न हुआ

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कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातनाध्ययन विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा समिति के आर्थिक सहयोग से विश्वविद्यालय के सर्वदर्शन और दर्शनशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। व्याख्यानमाला के उद्घाटन भाषण में विश्वविद्यालय के कुलपति, आचार्य प्रहलाद रा. जोशी ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में संपूर्ण भारतवर्ष का तीन बार पैदल भ्रमण कर बख़ूबी समझा और निरंतर साधना के बल पर प्रत्यक्ष अनुभव किया था। संभवतः यही कारण रहा कि वे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के स्थाई, मान्य एवं व्यावहारिक सूत्र और सिद्धांत देने में सफल रहे। पूरब से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण तक राष्ट्र को एकता एवं अखंडता के सुदृढ़ सूत्र में पिरोने में उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली। भारत की एकता एवं एकात्मता में आद्यशंकराचार्य के योगदान पर व्याख्यान करते हुये गौहाटी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में अध्यापक, प्रो. कामेश्वर शुक्ल ने कहा कि कहा कि जगद्गुरु ने अपने उपदेश से मनुष्य को छोटे-छोटे स्वार्थों, एवं संकीर्णताओं से ऊपर उठाया तथा उसकी संवेदना को विस्तार दिया। उन्होंने बताया और समझाया कि मनुष्य यदि स्वार्थ एवं संकीर्णताओं से ऊपर उठ जाय तो वह संपूर्ण सृष्टि के साथ गहरा आत्मिक संबंध स्थापित कर सकता है। द्वितीय व्याख्यान, , एसोसिएट प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र विभाग, विश्वभारती ,शांतिनिकेतन के दर्शन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शुभ्रज्योति दास ने भारतीय एवं वैश्विक एकात्मता में जगद्गुरु शंकराचार्य के योगदान विषय पर अपना विचार व्यक्त किया। व्याख्यानमाला कार्यक्रम का संचालन दर्शनशास्त्र विभाग के सहायक अध्यापिका डॉ. पापरी बरुवा ने किया। कार्यक्रम का उद्देश्य-व्याख्या, सर्वदर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ. रणजीत कुमार तिवारी ने किया। दोनों ही संसाधकों ने श्री शंकराचार्य के जीवन दर्शन को अलग-अलग दृष्टिकोण से समझाया कि भारत की एकता एवं अखंडता के लिए वेदांत दर्शन और शंकराचार्य को पढ़ना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। व्याख्यानों के अन्त में जिज्ञासा समाधान का कार्यक्रम भी संपन्न हुआ। कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के २०० से अधिक शिक्षक, शोध-छात्र, स्नातकोत्तर कार्यक्रम के विद्यार्थियों ने भागग्रहण किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों ने जगद्गुरु शंकराचार्य के चित्र के सामने दीपप्रज्ज्वलन एवं पुष्पसमर्पण किया तथा न्यायविभाग के अतिथि-अध्यापक श्रीदीपान्कर भट्टाचार्य ने मङ्गलाचरण किया। अन्त में दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष, डॉ. बिकास भार्गव शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन किया।

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