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रहिमन धागा प्रेम का मत तोङो छिटकाय, तोङे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पङि जाए — मदन सुमित्रा सिंघल

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बहुत ही सरल तथा प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के समय छात्रों ने रहीम दास का यह दोहा अवश्य पढा होगा,, रहिमन धागा प्रेम का मत तोङो छिटकाय तोङे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पङि जाए,,  कवि कहते हैं किसी से अपने प्रेम भ्रातत्व भाव एवं समन्वय झट से नहीं तोङना चाहिए। यदि तोड़ दिया तथा वापस एक होने की कोशिश की जाए तो भले ही मनमुटाव दूर हो जाए लेकिन एक बीच में खाई जो बन गयी उसको पाटने में ना जाने कितना समय लग सकता है। हो सकता है उपर से दिखावटी रिश्ते मात्र रह जाए। लेकिन प्रेम एक तरफा कभी भी नहीं होता दोनों लोगों अथवा पक्षों में समर्पण भाव से रिश्ता होना चाहिए ना कि लोकलाज में निभा रहे हैं। जब कोई भी रिश्ता बोझ बन जाए तो निश्चित रूप से बार बार प्रयत्न करना आवश्यक है लेकिन जब रोग नासुर बन जाए तो स्थिति को भांपकर किनारा कर लेना चाहिए। रोज मरने से बेहतर है कि एक बार ही हिंमत करके निर्णय लेना जरुरी होता है। कुछ तोङने से सिवाय हानि के हाथ कुछ भी नहीं लगता फिर भी निर्णय लिया है तो परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।  समाज शास्त्र हमें पुख्ता एवं लंबे बंधन में बांधने की परंपरा के तहत एक स्वस्थ एवं संपन्न जीवन के लिए सुप्रबंध करता है लेकिन कभी कभार टकराव की नोबत आने से तब तक बर्दाश्त करना चाहिए जब तक सब्र का प्याला छलक ना जाए। शिक्षा संस्कार एवं मर्यादा का निर्वहन करने से स्वत ही बहुत से कष्ट अपने आप खत्म हो जाते हैं बशर्ते धैर्य एवं संयम से काम लिया जाए।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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