फॉलो करें

फाग में कृष्णराग— डॉ.संगीता पांडेय

79 Views

फाग आते ही हृदय खिल उठता है, क्यों? दरअसल यह महीना अपने आप में ही अद्भुत है. कृष्ण राग का महीना भी इसे कह सकते हैं.  जिसमे न केवल उल्लास है बल्कि प्रेम और सौहार्द की भावना भी भरी हुई है. इसीलिए भगवान् कृष्ण को फागुन पसंद था या यह कह लें कि फागुन देश का शगुन है, जो कृष्ण प्रेम में रचा बसा है तो हमारे पूरे वातावरण में नई ऊर्जा प्रवाहित करता है , जीने की शक्ति प्रदान करता है और एक ऐसा आत्मविश्वास पैदा करता है जो जीवन के उद्देश्य की पूर्ती के लिए प्रमुख बन जाता है. ये तो सर्वविदित है कि भारतवर्ष त्योहारो का देश है.

यहाँ पर भिन्न-भिन्न जाति धर्म के लोग मिल जुल कर रहते है तथा सभी लोग हर त्यौहार को मिल जुल कर आपसी भाईचारे के साथ मनाते है.  यह त्योहार जाति, धर्म का भेद भाव मिटाकर सबको एक रंग में रंग देता है. फागुन का महीना वैसे भी बसन्त के रंग में घुला रहता है. सूरज अपनी तपन को इसी महीने रंगों पर सवार होकर खेत-खलिहानों को ऊर्जा देने धरती पर उतरता है. यही महीना है जब पुराणों में उल्लेखित ढेर सारी कथाएं , किवदन्तियां जीवित होती है.  प्रेम और स्नेह से सराबोर फागुन जीवन में रंग घोलता है और ये रंग होली जैसे त्यौहार के रूप में आज हम सबके सामने है. आदिकाल के कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकाल के सूरदास,रहीम, रसखान, पद्माकर, जायसी, मीराबाई,कबीर ,और रीतिकालीन बिहारी, केशव, धनानंद आदि अनेक कवियों को होली का यह विषय बहुत प्रिय रहा है. इस विषय पर जहां एक ओर नितान्त लौकिक नायक नायिका के बीच खेली गयी होली का वर्णन इन कवियों द्वारा किया गया है वहीं राधा कृष्ण के बीच खेली होली का भी सुन्दर वर्णन इन कवियों ने किया है. होली को बसन्तोत्सव भी कहते है. बसन्त ऋतु में जब पेड़-पौधों में भी समरसता आ जाती है ,तब मनुष्य का क्या कहना. इसीलिए तो आनन्द और मस्ती का त्यौहार है होली. होली के समय रबी की फसल तैयार हो जाती है इसलिए इसका महत्व और बढ़ जाता है. ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूलकर गले मिलते है और फिर से दोस्त बन जाते हैं. होली का त्यौहार फागुन मास के पूनम (पूर्णिमा) को मनाया जाता है.  भारतीय पंचांग और ज्योतिष के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा यानी होली के अगले दिन से नववर्ष का आरंभ माना जाता है. होली के पर्व के साथ अनेक कथाएँ जुडी है. जिसमें सबसे प्रसिद्ध है भक्त प्रह्लाद की कथा. प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था. वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था. उसने अपने राज्य में ईश्वर के नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी. इसी असुर के पुत्र थे भक्त प्रह्लाद. हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को हर तरह से ईश्वर भक्ति करने से रोका परन्तु जब वह ना माना तब क्रुद्ध होकर अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए. होलिका को वरदान था कि उसे आग जला नही सकती. होलिका ने अपने भाई का आदेश माना और प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ गई. आग में बैठने पर होलिका तो जल गयी पर प्रह्लाद बच गये. ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होली के एक दिन पहले होलिका जलाई जाती है. यह कथा इस बात का संकेत करती है की बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है. होलिका दहन की अग्नि को जलते हुए शरीर का प्रतीक माना गया है शायद इसीलिए  नव विवाहित लड़कियों को ससुराल में पहली होली नहीं मनाने दिया जाता. रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है. होली से सम्बन्धित दूसरी कथा ,श्री कृष्ण और राधा से जुडी है

ऐसी लोक मान्यता है की श्री कृष्ण सावले थे और राधा के गोर रंग को लेकर उनसे खिझते थे इसलिए अपने मित्रो के साथ बरसाना (राधा का गाँव ) उन्हें सिर्फ रंग लगाने जाते थे. जिसके बाद गुस्से में राधा और उनकी सखियाँ सभी लड़को की डंडे से पिटाई करती थी. इसलिए ब्रज के बरसाना गाँव की होली को लठ मार होली कहते है. यहाँ की होली इतनी प्रसिद्ध है की लोग दूर विदेशो से भी खिंचे चले आते है. भले ही भारत के शहरों में होली के दिन ही रंग से होली खेली जाए लेकिन उत्तर भारत  मथुरा में होली एक हफ्ते पहले शुरू हो जाती है. होली के पर्व की तरह इसकी परम्पराएँ भी अत्यंत प्राचीन है. प्राचीन काल में यह विवाहित महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिये मनाया जाता था. और पूर्ण चन्द्र के पूजा करने की परम्परा थी. उस समय खेतों के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था. मौजूद दौर में इसका स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदल रहा है. ऐसा कहा जाए की होली मौज मस्ती का त्यौहार हो गया है तो गलत न होगा. इस दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल ,अबीर और तरह -तरह के रंग डालते है. इस दिन लोग प्रातः काल उठ रंगों को लेकर अपने नाते रिश्ते दारो व मित्रो के घर जाते है और उनके साथ होली खेलते है. बच्चों के लिए तो यह त्यौहार विशेष मह्त्व रखता है.

वो कुछ दिन पहले से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की पिचकारियाँ और गुबारे लाते है. बच्चे गुबारों व पिचकारियों से अपने मित्रों के साथ होली का आनन्द उठाते है. बच्चों का होली का मजा काम ना हो इसके लिए माता-पिता को विशेष ध्यान रखना चाहिए. बच्चों को ज्यादा देर तक पानी में नहीं रहने देना चाहिए. जिससे वे बुखार व अन्य बीमारियों से बचे रहें .बच्चों की त्वचा बहुत ही नाजुक होती है. कई बार बाजार में मिलने वाले केमिकल रंग उनकी त्वचा और आंखों को नुकसान पहुंचा देते हैं. इसके लिए माता-पिता को ध्यान देना चाहिए कि उनका बच्चा किसके साथ और कितने समय तक होली खेल रहा है. जिससे आपके बच्चों का होली का मजा भी काम नहीं होगा और वह होली के दौरान इस तरह की समस्याओं से भी दूर रहेंगे. इस दिन सभी लोग आपसी बैर -भाव को भूल कर एक दूसरे से गले मिलते है. घरो की औरते कई दिन पहले से पापड़ ,मिठाइयां ,गुझिया ,नमकीन आदि बनती है. इसके साथ लोग ठंडाई को भी घरों में बनाते है . जो मेहमान इस दिन उनके घर आते है वे इन चीजो से उनका स्वागत करते है.

आज कल जिस तरह रोज हमारे मोबाईल फोन उपडेट होते है . उसी तरह हमारे त्योहारों में हमे अपडेशन दिखाई पड़ रहा है. पहले लोगों द्वारा घर पर या मौहले में रंग खेल लिए जाते थे. इसके साथ ढोल मजीरा इत्यादि तरह के बादक यंत्रो का लोग प्रयोग करते थे  परन्तु अब उसकी जगह डीजे ने ले लिया है. लोग इसका प्रयोग कर के झूम उठते है. इस के साथ ही शहरों में लोग अपनी-अपनी बिल्डिंगों में रेन डांस का आयोजन भी करते है. बड़े -बड़े महानगरों के इर्द -गिर्द तो कई ऐसे रीसौट होते है जो की त्योहारो पर लोगो को विशेष पैकेज उपलब्ध कराते है ये लोगो के लिए कलर स्विमिंग पुल माइल्ड कलर रेन डांस का आयोजन करते है. इसलिए आज कल आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ इस तरह के होली का आनन्द उठाने जाते है. वही सामान्य जन अपने आस पड़ोस तथा मुहलों में सबके साथ होली का आनन्द अपने तरीके से उठाते है. होली में हमें ऐसे भी लोग मिलते है जो कि रंग नहीं खेल सकते जैसे कोई अगर ड्यूटी पर हो या कोई धार्मिक व्यक्ति हो जो रंग खेलना पसंद नहीं करता है उनके साथ हमें जबरदस्ती नहीं करना चाहिए.

होली खेलने के दौरान कड़ी धूप के संपर्क में आने से होली खेलने वालों के बाल और त्वचा रूखे हो जाते है. इसलिए होली खेलने से पूर्व चेहरे,हाथों और शरीर के खुले हिस्सों पर मांश्चयुराइजर क्रीम या सनस्क्रीम लोशन और बालों में तेल अच्छे से लगाना चाहिए. ऐसा करने से आप होली के रंगों के कुप्रभाव से बचें.

 डॉ.संगीता पांडेय

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल