प्रेरणा ब्यूरो, काछाड़ 28 मार्च: काछाड़ में भारतीय जनता पार्टी की हालत नाजुक है, काछाड़ की सातों सीट पर भाजपा को महागठबंधन तगड़ी टक्कर दे रहा है, एक तरफ यूडीएफ के साथ गठबंधन करके कांग्रेस को संजीवनी मिल गई है तो दूसरी तरफ भाजपा की कब्र खोदने में पुराने भाजपाई लगे हुए हैं। टिकट वितरण से पहले बराक घाटी में भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा था किंतु टिकट की घोषणा होने के बाद से ही धीरे धीरे परिस्थितियां करवट लेने लगी और अब तो ऐसा लग रहा है कि कहां तो तय था चिरागा हर एक घर के लिए कहां मयस्सर नहीं एक नजर के लिए।
एक तरफ तो टिकट वितरण में हिंदीभाषियों की उपेक्षा और दूसरी तरफ टिकट वितरण से नाखुश पूर्व विधायक और पुराने भाजपाई। कांग्रेस से भाजपा में आए विधायक राजदीप ग्वाला का टिकट काटे जाने से हिंदीभाषियों का क्षोभ चरम पर है। ऊपर से शिलचर के सांसद ने कांग्रेस द्वारा 6 हिंदीभाषियों को टिकट दिए जाने पर आपत्तिजनक बयान दिया, उसने आग में घी घी डालने का काम किया है।
शिलचर में पूर्व विधायक और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष दिलीप कुमार पाल मैदान में ताल ठोक रहे हैं और रोज रोज भाजपा के ऊपर विशेष करके शिलचर के सांसद के ऊपर सिंडिकेट राज कायम करने का सनसनीखेज आरोप लगा रहे हैं। इसके चलते शिलचर में मुकाबला भाजपा बनाम महागठबंधन ना होकर भाजपा बनाम दिलीप कुमार पाल बनता जा रहा है।
सोनाई के विधायक और विधानसभा उपाध्यक्ष अमीन उल हक लश्कर के रास्ते का कांटा बन गए भाजपा के ही बागी आशीष हलदार। उनके समर्थन में हिंदू संगठनों के कुछ कार्यकर्ता सक्रिय रुप से मैदान में काम कर रहे हैं। अर्थात यहां भी भाजपा का खेल भाजपाई ही बिगाड़ रहे हैं।
लखीपुर में भाजपा के बागी गुट ने थोइबा सिंह को निर्दल प्रत्याशी के रूप में खड़ा किया है। थोइबा सिंह भाजपा के मणिपुरी वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी करते नजर आ रहे हैं। अंतिम समय में पाला बदलकर भाजपा के ही मुकेश पांडेय ने घर वापसी करते हुए कांग्रेस के टिकट से भाजपा प्रत्याशी कौशिक राय को चुनौती दिया है।
इन सब स्थिति को देखते हुए राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह भाजपा की अंदरूनी लड़ाई का परिणाम है, शिलचर के सांसद डॉक्टर राजदीप राय के बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए पुराने भाजपाइयों का एक बड़ा खेमा एक रणनीति के तहत चुनाव में निर्दल प्रत्याशियों को खड़ा करके भाजपा को हराने में लगा हुआ है।
उधारबंद के भाजपा प्रत्याशी मिहिर कांति सोम से मतदाताओं का मोह भंग हो चुका है और एंटी इनकंबेंसी के चलते कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मंत्री अजीत सिंह की राह आसान लग रही है। बड़खला में अपेक्षाकृत नए उम्मीदवार को भाजपा ने टिकट दिया है, जिनका पहचान कम है। विधायक किशोर नाथ का टिकट काटे जाने से उनके समर्थक सदमे में हैं।
पिछली बार थोड़े मतों के अंतर से निर्दल प्रत्याशी के रूप में पराजित होने वाले मिस्बाहउल इस्लाम लश्कर इस बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में है और उन्हें युडीएफ का भी समर्थन है। इसलिए इस बार मिसबाहउल को जीतने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।
काठीघोड़ा से पूर्व विधायक अमर जैन का टिकट काटकर भाजपा प्रत्याशी बने पूर्व मंत्री गौतम राय भी कड़े मुकाबले से गुजर रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और यूडीएफ में अल्पसंख्यक मतों के बिखराव का सीधा लाभ भाजपा को मिला था। इस बार सीधे मुकाबले में अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण हो रहा है। इसलिए गौतम राय का करिश्माई व्यक्तित्व भी फीका नजर आ रहा है।
असम सरकार के कैबिनेट मंत्री और भाजपा के प्रभावी नेता परिमल शुक्लबैद धोलाई से कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं। निर्दलीय चुनाव लड़कर 5 बार दूसरे स्थान पर रहे कामाख्या माला इस बार भाजपा के मंत्री को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। पिछली बार चुनाव में चाय बागान और हिंदीभाषियों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हुआ था किंतु इस बार पिछले 5 बरस भाजपा द्वारा हिंदीभाषियों की लगातार उपेक्षा, टिकट वितरण में मनमानी, शिलचर के सांसद के आपत्तिजनक बयान, टेट में हिंदी विषय के शिक्षकों की नियुक्ति न होना और अन्य अनेक मुद्दों के चलते हिंदीभाषी मतदाताओं में व्यापक क्षोभ हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के समय हिंदीभाषी संगठनों के प्रतिनिधियों को असम सरकार के प्रभावशाली मंत्री डॉ हेमंत विश्वशर्मा द्वारा अनेक आश्वासन दिए गए थे किंतु उनका पालन नहीं किया गया, इससे भी हिंदीभाषी संगठनों में क्षोभ है।
इस विधानसभा चुनाव में कहीं-कहीं ऐसी स्थिति है कि कहना पड़ रहा है “कौन है कौरव, कौन पांडव टेढ़ा सवाल है, चारों ओर फैला शकुनि का कूट जाल है। महाभारत होना है, कोई बने राजा रंक को तो रोना है।” कुल मिलाकर लखीपुर और शिलचर को छोड़कर बाकी सीटों पर भाजपा की स्थिति नाजुक है। कह सकते हैं कि घर को आग लगी घर के चिराग से। कुछ लोग चुनाव परिणाम आने के बाद यह भी कह सकते हैं कि “हमें अपनो ने लूटा गैरों में कहां दम था, हमारी किश्ती वहां डूबी पानी जहां कम था।”