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शिलचर 15 मई ( प्रे•. सं. ) । वर्ष 1921 में घटित स्वतंत्रता संग्राम ‘मुलुक चलो आंदोलन’ के 103 वर्षपूर्ती समारोह इस बार शिलचर में होगा। आगामी 21 मई को हिंदी भवन में श्रद्धांजलि समरोह और विचार गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। इस दिन गुमनाम शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी। इसके अलावा बराक घाटी के सभी क्षेत्रों में भी बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने का प्रस्ताव लिया गया है। मालूम हो कि शिलचर के हिंदी भवन में हिंदीभाषी समाज के प्रबुद्ध व्यक्तियों द्वारा आयोजित एक बैठक में उपरोक्त निर्णय लिए गए हैं। उक्त बैठक में शिक्षक दिवाकर रॉय और करीमगंज कॉलेज के भौतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर डॉ सुजीत तिवारी ने मुल्क चलो आंदोलन पर ऐतिहासिक तथ्यों को विस्तृत रूप से उपस्थापण किया। चाय श्रमिकों द्वारा संगठित ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम मुलुक चलो आंदोलन 1921 के अमर बलिदानियों को उनके बलिदान दिवस 21 मई के अपसर पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम का रूप रेखा निर्धारित करने के संबंध में अन्य वक्ताओं ने भी अपने सुझाव दिए। उक्त बैठक में प्रमुख रूप से उपस्थित राजकुमार दुबे, राजेंद्र पांडेय, युगल किशोर त्रिपाठी, केशव दीक्षित, राजेश मिश्रा, अनंतलाल कुर्मी, प्रमोद जायसवाल, राजेन कुंवर, कंचन सिंह, राजीव रॉय, मनोज कुमार साह, राजदीप रॉय, शुभम रॉय, किरण त्रिपाठी, विश्वजीत यादव, योगेश दुबे, संजीत पांडेय, दिलीप सिंह, रवि कुमार शुक्ला, विवेकानंद द्विवेदी आदि ने श्रद्धांजलि समारोह को सफल करने के लिए अपने सुझाव दिए। सभा का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता राजदीप राय ने किया। दिवाकर रॉय ने अपने वक्तय में कहा कि हमें अपने पूर्वजों के बलिदानों को याद करने सौ से अधिक वर्ष लग गए। राज्य विधानसभा और लोकसभा में मुलुक चलो आंदोलन के इतिहास चर्चा में आए यह कोशिश करनी होगी। अंग्रेजी हुकूमत खिलाफ चाय श्रमिकों द्वारा संगठित आंदोलन के इतिहास, इस आंदोलन को जलियावाला बाग जैसा बताया गया था, को दबा दिया गया। अब समाज को जागरूक कर इस परिप्रेक्ष्य में ठोस पहल की आवश्यकता बताई। वहीं डॉ. सुजीत तिवारी ने कहा कि हमें अपने पूर्वजों को जानने और समझने में 103 वर्ष लग गए। मुलुक चलो आंदोलन बलिदानी देव शरण त्रिपाठी बराक घाटी के गौरव है। प्रखर गांधी वादी थे । उनके योगदानों से प्रेरणा मिलती है। भारत और राज्य सरकार से मुलुक चलो आंदोलन के बलिदानों को मर्यादा देने, स्कूली पाठ्क्रमों में पढ़ाए जाने और जुड़े स्थानों को ऐतिहासिक स्थलों के रूप में संरक्षित करने की मांग करनी होगी। प्रो. तिवारी ने कहा कि गंगा दयाल दीक्षित के बलिदानों को भुलाया नही जा सकता। इतिहास को खंगालने की कोशिश कर रहे है । सिलचर के प्रेमतला में अपना प्राण त्याग दिया। फिलहाल एक समिति बनाई गई है, उनके अगुवाई में श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया जाएगा।