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अंग्रजों के शारीरिक मानसिक एवं आर्थिक शोषण के खिलाफ 1921 में आज तक के सबसे बङे श्रमिक आंदोलन का नेतृत्व श्रमिक नेता गंगा दयाल दिक्षित राधा कृष्ण पांडेय, देव सरण त्रिपाठी सहित कई लोगों के साथ हजारों श्रमिकों ने मुल्क चलो आंदोलन शुरू किया। यह बराकघाटी असम में हुआ। सन्1921 की 20-21 मई को जहाज में चढने वाले श्रमिकों को गोलियों से भूनना शुरू किया तो अफरातफरी में ना जाने कितने श्रमिक मेघना नदी में डुब गए तो कितने निहत्थे गोलियों के शिकार हो गये। संख्या हजारों में बताई जाती है। बताया जाता है कि दिग्भ्रमित दिशाविहिन अपने लोगों को आंखों के सामने खोकर एक रेलवे स्टेशन में सोये हुए थे कि अंग्रेज अफसर के आदेश पर एक सेना की टुकङी ने निर्मम हत्या सोये हुए लोगों की। इतने बड़े हादसे को हमारे बुजुर्ग नेताओं ने विशेष रूप से जनता के सामने ठीक से प्रस्तुत नहीं किया। आज भी दो चार गांवों में श्रद्धांजलि सभा करने एवं अखबारों में छोटे छोटे लेख छपवाने तक सिमित रहा है। चाय बागानों के नाम से अनेक संगठन चल रहे हैं लेकिन इस भयानक कांड पर शोध करने एक एक घटना को कलमवद्ध करने के लिए काम करने के लिए एक टीम बनानी चाहिए ताकि 21 मई को बलिदान दिवस के रूप में मान्यता प्राप्त हो सके। ईश्वर दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें । शत शत नमन
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653