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प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर ह्वास, बढ़ती आबादी, बढ़ते पर्यावरणीय प्रदूषण, औधौगिक विकास, बढ़ते कंक्रीट के जंगलों, वनों के लगातार ह्वास और पर्यावरण के प्रति जन-जागरूकता की कमी के कारण धरती पर गर्मी लगातार बढ़ रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि राजस्थान के फलौदी का तापमान हाल ही में पचास डिग्री सेल्सियस हो गया। नौतपा के पहले दिन ही इतना तापमान रिकार्ड किया गया। हालांकि नौतपा भी इस धरती के प्राणियों के लिए बहुत जरूरी है। क्यों कि नौतपा के बारे में लोकसंस्कृतिविद दीपसिंह भाटी बताते हैं कि ‘लू’ तो बेहद जरूरी है। मैं प्रश्न करता हूँ, ‘क्यों’ तो वे जवाब देते हैं- ‘दो मूसा, दो कातरा, दो तीड़ी, दो ताय। दो की बादी जळ हरै, दो विश्वर दो वाव।’ इसका मतलब यह है कि नौतपा के पहले दो दिन लू न चली तो चूहे बहुत हो जाएंगे। अगले दो दिन न चली तो कातरा (फसल को नुकसान पहुंचाने वाला कीट)। तीसरे दिन से दो दिन सून चली तो टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे। चौथे दिन से दो दिन नहीं तपा तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे। इसके बाद दो दिन लू न चली तो विश्वर यानी सांप-बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे। आखिरी दो दिन भी नहीं चली तो आंधियां अधिक चलेंगी। फसलें चौपट कर देंगी।’ लेकिन नौतपा भी एक हद तक ठीक है। आज जिस तरह से धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है, वह धरती के सभी प्राणियों के लिए बहुत ही चिंताजनक है। चिंताजनक इसलिए कि आज हम विभिन्न पर्यावरणीय संसाधनों का लगातार दोहन करते चले जा रहे हैं और धरती पर लगातार पानी की कमी भी महसूस की जा रही है। राजस्थान के अनेक इलाकों में आज पानी जमीन में बहुत नीचे चला गया है। जगह-जगह ट्यूब वैल खोदे जा रहे हैं, उतनी संख्या में पेड़ों को लगाया नहीं जा रहा, जितनी संख्या में उनको विकास का बहाना बनाकर काट डाला जाता है। आज हम न तो धरती के पर्यावरण को बचाने की ओर ही पर्याप्त ध्यान दें रहे हैं और न ही धरती के विभिन्न संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग ही कर रहे हैं। लेकिन इसी बीच कभी कभी ऐसी अच्छी व मन को सुकून देने वाली खबरें आतीं हैं जो यकायक ही हमारा ध्यान पर्यावरण संरक्षण की ओर आकर्षित करती हैं। हाल ही में, ऐसी ही सुकून देने वाली एक खबर राजस्थान के सीकर जिले से एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के हवाले से आई है। खबर में बताया गया है कि ‘राजस्थान के सीकर जिले के हर्ष गांव में बारिश के पानी को सहेजने के चलते आमजन को पेयजल के लिए परेशान नहीं होना पड़ रहा है। इसका परिणाम यह आया कि अब गांव के सूखे हैंडपंपों और कुंए में भी पानी आने लगा है।’ दरअसल सीकर जिले के एक गांव हर्ष में पानी जमीन में काफी नीचे चला गया था लेकिन यहां के युवाओं की पहल से गांव में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार किए और उनका परिणाम यह हुआ कि गांव का भूमिगत जल स्तर 200 फीट पर आ गया। खबर में बताया गया है कि अन्य गांवों व सीकर शहर में भूमिगत जल का स्तर 500 से 600 फीट से भी अधिक है। यह भी जानकारी मिलती है कि पिछले सात साल में गांव का भूमिगत जलस्तर 10 फीट से अधिक ऊपर आ गया है। आज गांव में
घरों के छत के पानी को सहेजने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाए गए हैं। इसके जरिए टांकों में पेजयल की व्यवस्था की गई है। यहां तक कि गांव के सरकारी स्कूल, सार्वजनिक स्थानों पर वॉटर रिचार्ज प्वाइंट बनाए गए हैं। खबर में लिखा गया है कि ‘हर्ष गांव के लोग हर्ष पहाड़ से बहकर आने वाले बारिश के पानी को भी खेतों में मेड़बंदी कर रोकते हैं।’ युवाओं ने अपनी पहल से सूखे हैडपंप व ट्यूबवैल को रिचार्ज प्वाइंट में तब्दील किया है और इसका सुखद व सकारात्मक परिणाम सामने आया है। पिछले कुछ वर्षों से बढती जनसंख्या, औद्योगिकीकरण में लगातार वृद्धि तथा कृषि में विस्तार होने से, विकास आदि के कारण आज के समय में जल की मांग बढती चली जा रही है । अतएव, जल संरक्षण आज की आवश्यकता बन गई है। हमें जल संरक्षण तकनीकों पर आज पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत है, क्यों कि पानी एक अपरिहार्य संसाधन है। जल संरक्षण के तरीकों में हम ग्रेवाटर रिसाइक्लिंग सिस्टम, वर्षा जल संचयन, कुशल सिंचाई प्रौद्योगिकी, पानी की मात्रा को रिकार्ड करने हेतु जल मीटर, कुशल शौचालयों का उपयोग आदि को शामिल कर सकते हैं। हम पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकों का सहारा भी ले सकते हैं और बहुत सा जल बचा सकते हैं। पारंपरिक जल तकनीकों में हम क्रमशः टांका, बावड़ी, कुंड, जोहड़, चंदेल टैंक, बुंदेला टैंक, पाटा,झालरा इत्यादि तरीके अपना सकते हैं।
प्रौद्योगिकी की शक्ति का अधिकतम उपयोग करके, हमारे देश के छोटे व बड़े शहर जल संरक्षण की दिशा में बड़े कदम उठा सकते हैं, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए इस बहुमूल्य संसाधन की स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है। हमें यह बात कदापि नहीं भूलनी चाहिए कि पृथ्वी का 97.5% पानी खारा है; शेष 2.5% मीठे पानी में से, केवल 0.5% ही मानव उपयोग के लिए आसानी से उपलब्ध है। पानी धरती पर उपलब्ध एक बहुत ही अनमोल संसाधन है और आज विश्व में लगातार जलवायु परिवर्तन की स्थितियों के मद्देनजर जल का संरक्षण बहुत ही जरूरी हो गया है अन्यथा आनी वाली पीढ़ियों के लिए एक बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार , दुनिया भर में 2.3 बिलियन लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। पानी की कमी के गंभीर प्रभाव मेट्रो और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में देखे जा सकते हैं, जहाँ लगभग कोई ताज़ा भूजल उपलब्ध नहीं है। कहना ग़लत नहीं होगा कि जल संरक्षण एक धरती के सभी जीवों व पेड़ पौधों के भविष्य के लिए बहुत ही अनिवार्य तत्व है। जल जहां एक ओर हमारे पर्यावरण की रक्षा करता है, आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करता है, वहीं दूसरी ओर यह सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है। इतना ही नहीं यह जलवायु परिवर्तन समाधान में भी अपना अभूतपूर्व योगदान देता है। हमें तालाबों, बावड़ियों, जोहड़ो, मिट्टी के बांधों, विभिन्न जल स्त्रोतों के रख-रखाव और उनकी गाद निकालने तथा उनकी दीर्घायु सुनिश्चित करने में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए। बांधों के माध्यम से भी जल संचयन किया जा सकता है। ड्रिप सिंचाई जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यहां यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि भारत एक गंभीर जल संकट के कगार पर है। मौजूदा जल संसाधन संकट में हैं, और हमारे देश की नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, जल संचयन तंत्र बिगड़ रहे हैं और भूजल स्तर लगातार घट रहा है। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि वर्ष 2030 तक भारत में जल की मांग, उसकी पूर्ति से लगभग दोगुनी हो जाएगी। जानकारी देना चाहूंगा कि देश में वर्ष 1994 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6000 घनमीटर थी, जो वर्ष 2000 में 2300 घनमीटर रह गई तथा वर्ष 2025 तक इसके और घटकर 1600 घनमीटर रह जाने का अनुमान है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि भारत दुनिया में भूमिगत जल का सर्वाधिक प्रयोग करने वाला देश है। अंत में यही कहूंगा कि जल प्रबंधन प्रकृति और मौजूदा जैव विविधता के चक्र को बनाए रखने में मदद करता है। यह स्वच्छता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमें अपशिष्ट जल का उपचार करना चाहिए। जल को अनावश्यक बहने से रोकना चाहिए। प्राकृतिक जल निकायों की देखभाल करनी चाहिए। हमें न केवल अपने लिये इसकी(जल) रक्षा करनी है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये भी इसे बचा कर रखना है। वर्तमान समय में जब भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व जल संकट का सामना कर रहा है तो यह बहुत ही आवश्यक व जरूरी हो जाता है कि इस ओर हम बहुत ही गंभीरता से ध्यान दें। जानकारी देना चाहूंगा कि आज भारत में जल प्रबंधन अथवा संरक्षण संबंधी अनेक नीतियाँ मौज़ूद हैं, परंतु समस्या उन नीतियों के कार्यान्वयन के स्तर पर है। हमें इन सब पर अवश्य ही ध्यान देना होगा।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
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