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गर्मी से उबलता देश– आर.के. सिन्हा

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चिलचिलाती गर्मी के कारण देश का एक बड़ा हिस्सा फिलहाल उबल रहा है। आम चुनाव के मौसम में चर्चा के केन्द्र में गर्मी की मार भी एक प्रमुख बिंदु बन गया है। मैं अभी चुनाव में अनेक क्षेत्रों में जनसंपर्क अभियानों में निकल रहा हूँ। लेकिन न तो कार्यकर्ता सुबह 6 से 9 बजे और शाम के 7 से रात 10 बजे के अलावा निकलने को तैयार हैं, न ही नागरिक अपने घरों का दरवाजा खोल कर आपके स्वागत के लिये तैयार हैं। मौसम विज्ञानियों का अनुमान है कि यह तीव्र गर्मी जून महीने तक जारी रहेगी और “महसूस होने वाला तापमान” 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है।

अभी 26 मई को स्वयं मुझे पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के साथ और 27 मई को आरा संसदीय क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के साथ मात्र एक घंटे रहने का मौका मिला। 44-45 डिग्री तापमान था और मंच पर बैठना भी असहनीय हो रहा था।

सच में, इस भीषण गर्मी ने दैनिक जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में लू की घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं। यह अब लगभग पूरे देश में महसूस होने लगा है। उत्तर भारत में जहाँ कुछ क्षेत्रों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुँच गया, यह इसका एक हालिया उदाहरण है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात सहित कई राज्यों के लिए रेड अलर्ट जारी किया है।

आजकल जब सूरज देवता आग उगल रहे हैं, तब नौतपा शब्द बहुत सुनने में आ रहा है। कुछ लोगों को यह शब्द नया लग रहा है। हालांकि यह बात नहीं है। नौतपा वो नौ दिन होते हैं जब देश में गर्मी अपने चरम पर होती है। इसे ‘नवताप’ भी कहा जाता है। ये दिन साल के सबसे गर्म दिन भी होते हैं। 2024 में नौतपा 25 मई को शुरू हुआ और 2 जून तक जारी रहेगा। नौतपा के दौरान, सूर्य सीधे मध्य भारत के ऊपर होता है, जिससे पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी कम हो जाती है। इससे अधिक सीधे और तीव्र सौर विकिरण उत्पन्न होते हैं, जिससे भीषण गर्मी पड़ती है। कुछ क्षेत्रों में, खासकर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और गुजरात में तापमान लगभग 50° सेल्सियस तक पहुँचने की उम्मीद है।

हीटवेव एक लंबी अवधि की अत्यधिक गर्मी होती है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर परिणाम ला सकती है। हीटवेव के दौरान तापमान किसी विशेष क्षेत्र और समय के लिए औसत तापमान से काफी अधिक हो जाता है। हीटवेव थकावट, स्ट्रोक और गंभीर मामलों में मृत्यु का कारण बन सकती है।

याद रख लें कि हीटवेव सिर्फ उच्च तापमान नहीं होती, बल्कि असामान्य तापमान वृद्धि से परिभाषित होती है। उदाहरण के लिए, एक स्थान जहाँ गर्मियों में सामान्यतः 40 डिग्री सेल्सियस तापमान होता है, वहाँ हीटवेव नहीं मानी जाती है, भले ही तापमान 42 या 43 डिग्री तक पहुँच जाए। इसके विपरीत, एक जगह जहाँ सामान्य तापमान 27 या 28 डिग्री है, वहाँ हीटवेव मानी जाएगी यदि तापमान 35 डिग्री तक पहुँच जाए।

हीटवेव तब मानी जाती है जब किसी स्टेशन का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों में कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो। हालांकि, यह भी ध्यान दिया जाता है कि जिस तापमान पर हीटवेव घोषित की जाती है, वह क्षेत्र की तापमान जलवायु के आधार पर अलग-अलग होता है। भारत के कुछ क्षेत्र अपने स्थान और जलवायु के कारण हीटवेव के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। इनमें देश के उत्तर-पश्चिमी और मध्य भाग, जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात शामिल हैं।

शोधकर्ता बताते हैं कि हीटवेव तब होती है जब वायुमंडल में उच्च दबाव होता है, जो गर्म हवा को नीचे की ओर धकेलता है और इसे जमीन के पास फँसा देता है। यह उच्च दबाव प्रणाली एक ताले की तरह काम करता है जो गर्म हवा को ऊपर उठने से रोकता है, जिससे तापमान और बढ़ जाता है। जब हवा नीचे डूबती है तो वह गर्म हो जाती है, जिससे अत्यधिक गर्मी की स्थिति उत्पन्न होती है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन वैश्विक मौसम पैटर्न में बदलाव करके और लंबी अवधि तक उच्च दबाव की संभावना बढ़ाकर अधिक बार और तीव्र हीटवेव में योगदान देता है।

भारत में गर्मियों का तापमान आमतौर पर मई में चरम पर होता है। पाकिस्तान से आने वाली गर्म पश्चिमी हवाएं भी गर्मी में योगदान दे रही हैं। भारत के अन्य हिस्सों में, गर्मियों का तापमान पहले ही रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच चुका है, खासकर पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में, जहाँ अप्रैल का तापमान रिकॉर्ड में सबसे अधिक था। अत्यधिक गर्मी का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। हालिया शोध बताते हैं कि तीव्र और लंबी अवधि तक चलने वाली हीटवेव के दौरान समय से पहले जन्मों में वृद्धि होती है।

हीटवेव के कारण सांस लेने में तकलीफ और श्वसन संबंधी स्थितियाँ बिगड़ने की भी जानकारी है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ हवा की गुणवत्ता खराब है। उच्च तापमान हृदय और परिसंचरण तंत्र पर भी दबाव डाल सकता है, जिससे दिल का दौरा और अन्य हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। यह भी ध्यान रखा जाए कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, हीटवेव के आर्थिक प्रभाव को लेकर चिंताएँ बढ़ती जा रही हैं। नकारात्मक प्रभाव केवल मानवीय पीड़ा तक सीमित नहीं हैं बल्कि आर्थिक गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला को भी प्रभावित करते हैं। हीटवेव अक्सर कार्यबल की उत्पादकता में कमी का कारण बनती है। उच्च रात के तापमान के कारण शरीर को ठंडा होना मुश्किल हो जाता है।

भारत जैसे देश में, जहाँ कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा बाहरी गतिविधियों में लगा हुआ है, परिणाम गंभीर होते हैं। लगभग 45.76% कार्यबल कृषि में कार्यरत है, जिसमें से 83% असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। किसानों सहित बाहरी काम करने वाले लोग, गर्मी से संबंधित बीमारियों जैसे गर्मी की थकावट और हीटस्ट्रोक के प्रति विशेष रूप से कमजोर होते हैं, जिससे बार-बार ब्रेक लेना पड़ता है और उत्पादकता कम होती है।

पिछले साल एक अध्ययन ने चेतावनी दी थी कि अत्यधिक गर्मी से बाहरी काम करने की क्षमता 15 फीसदी तक कम हो सकती है, जिससे लाखों लोगों के जीवन स्तर में गिरावट आ सकती है और 2050 तक भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2.8 फीसद की गिरावट आ सकती है। सकल घरेलू उत्पाद अर्थव्यवस्था के आर्थिक प्रदर्शन का एक बुनियादी माप है, यह एक वर्ष में एक राष्ट्र की सीमा के भीतर सभी अंतिम माल और सेवाओं का बाजार मूल्य है। बहरहाल, इस गर्मी के मौसम में अपने को बचाइये। रोज खूब पानी पीजिए।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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