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मणिपुर में लगी है आग मगर,
तपिश न पहूंची दिल्ली तक.
सब लगे थे दिल्ली पाने को,
मणिपुर की चिंता हुई नहीं.
मुद्दत हुई मणिपुर को जलते,
जूं ना रेंगीं सरकारी कानों पर,
लगता गूंगी-बहरी सरकारें हुईं,
या पूर्वोत्तर की चिंता ही नहीं.
भूल के आपसी लफड़ोंं को,
ध्यान दो अपने घर पर भी,
कहीं स्वार्थपने की आंधी में,
न घर जल जाये अपना ही.
महंगा पड़ जायेगा हमको,
चिंतन ना करना ठीक नहीं,
ये सीमांत प्रांत की भूमि है,
अनदेखी करना ठीक नहीं.
अब तो जागो हे रखवालों,
ज्यादा निद्रा ठीक नहीं,
देर ना हो जगने में तुमको,
हो जाये घरौंदा ना ढ़ेर कहीं.
मुरारी केडिया,
९४ ३५० ३३०६०.