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पहले रूस नहीं , मणिपुर जाना चाहिए प्रधानमंत्री को ! — अशोक भाटिया

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हाल ही में अख़बारों में छपे समाचारों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने रूस का दौरा कर सकते हैं। जानकारी के मुताबिक उनकी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक होनी है। रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुए युद्ध के बाद ऐसा पहली बार होगा कि प्रधानमंत्री  मोदी रूस जाएंगे। लगातार तीसरी बार ऐतिहासिक कार्यकाल हासिल करने के बाद यह उनकी पहली रूस यात्रा भी होगी। लोगों का मानना है कि दूसरे देशों व भारत के दूसरे देशों की यात्रा के पहले प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर जाना चाहिए और वहां शांति स्थापित करने का प्रयत्न करना चाहिए । मणिपुर की जनता व विपक्ष का भी बार – बार आरोप रहा है कि प्रधान मंत्री मणिपुर की ओर ध्यान नहीं दे रहे है । संघ प्रमुख मोहन भागवत जी ने भी इस ओर ध्यान आकर्षित किया था । क्योंकि मणिपुर का मामला गंभीर होता जा रहा है ।

हाल ही में हिंसाग्रस्त मणिपुर में कुकी-जो समुदाय ने अपने लिए अलग प्रशासन की मांग की है। इस संबंध में समुदाय के हजारों लोगों ने चुराचांदपुर, कांगपोकपी और टेंग्नौपाल जिलों में रैलियां आयोजित कीं। उनका कहना है कि हिंसा प्रभावित राज्य में शांति स्थापित करने के लिए उनकी मांग पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। उन्होंने पड़ोसी देश म्यांमार के साथ मुक्त आवाजाही व्यवस्था को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले का भी विरोध किया।

केंद्र सरकार ने इस साल फरवरी में भारत-म्यांमार सीमा के 1600 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में बाड़ लगाने का फैसला किया था और ओपन मूवमेंट सिस्टम को समाप्त कर दिया था। भारत के पूर्वोत्तरी हिस्से के चार राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और नागालैंड की सीमा म्यांमार के साथ लगती है। अब तक इधर के लोग म्यांमार की सीमा में और वहां के लोग भारतीय सीमा में बिना किसी रोकटोक के आते जाते थे।

कूकी-जो समुदाय के लोगों ने रैली के बाद, मणिपुर हिंसा के राजनीतिक समाधान की मांग करते हुए एक ज्ञापन चुराचांदपुर के उपायुक्त धारुन कुमार के माध्यम से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंपा। इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने इन रैलियों का आयोजन किया था। कुकी-जो समुदाय के लोगों ने चुराचांदपुर जिले में पब्लिक ग्राउंड से पीस ग्राउंड तक लगभग 3 किमी तक मार्च निकाला और ‘राजनीतिक समाधान नहीं, तो शांति नहीं’ जैसे नारे लगाए।

सैकोट से भाजपा विधायक पाओलीनलाल हाओकिप ने भी इस बात पर जोर दिया कि मणिपुर में स्थायी शांति के लिए, केंद्र सरकार को मैतेई और कुकी-जो समुदायों के मुद्दों को सुलझाने में सीधे शामिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमने विभिन्न केंद्रीय चैनलों के माध्यम से लगातार शांति की मांग की है, फिर भी इस बारे में कोई स्पष्ट संदेश नहीं मिला है’। इसके साथ ही कांगपोकपी जिले में, आदिवासी एकता समिति ने थॉमस ग्राउंड में एक रैली आयोजित की।इस रैली में जिले भर के कुकी-जो लोगों ने ‘राजनीतिक समाधान’ की वकालत करते हुए पोस्टर और बैनर प्रदर्शित किए। रैली के दौरान किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए दोनों जिलों में कड़े सुरक्षा प्रबंध किए गए थे। केंद्रीय और राज्य बलों को तैनात किया गया था। इसके अतिरिक्त, कुकी इंपी टेंग्नौपाल द्वारा टेंग्नौपाल जिले में भी इसी तरह की रैली आयोजित की गई।।

वहीं, मेईतेई बहुल इंफाल घाटी में सोमवार को ख्वाइरबंद इमा मार्केट की महिला विक्रेताओं के साथ ‘शांति के लिए ख्वाइरबंद इमा कीथेल समन्वय समिति’ के बैनर तले एक रैली भी देखी गई, जिसमें हिंसा को समाप्त करने के लिए तत्काल संसदीय हस्तक्षेप की मांग की गई।विरोध ख्वाइरबंद बाजार के केंद्र में शुरू हुआ, जहां सुबह-सुबह बड़ी संख्या में महिला विक्रेता एकत्र हुईं। उनकी शुरुआती योजना मणिपुर राजभवन और मुख्यमंत्री के बंगले की ओर मार्च करके अपनी मांगों के लिए दबाव बनाने की थी।

हालांकि, सुरक्षा बलों ने उनके प्रयास को विफल कर दिया, जिन्होंने कंगला किले के पश्चिमी द्वार के पास विरोध प्रदर्शन को रोक दिया और प्रदर्शनकारियों को वापस ख्वाइरामबंद बाजार की ओर मोड़ दिया।इससे बाद महिला विक्रेता बाजार में फिर से एकत्र हुईं और अपने-अपने बाजार शेड के सामने धरना दिया। महिला विक्रेताओं ने मणिपुर की एकता और अखंडता के संरक्षण का आह्वान करते हुए कुकी-ज़ो समुदाय द्वारा अलग प्रशासन की मांग का भी कड़ा विरोध किया।

उन्होंने मेईतेई गांव के वालंटियर्स को पकड़ने के उद्देश्य से सुरक्षा बलों द्वारा बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाने की कथित योजनाओं पर भी अपनी चिंता व्यक्त की। शांति समिति की सह-संयोजक हुइरेम बिनोदिनी ने विरोध के दौरान मीडिया को संबोधित किया और राज्य की मौजूदा उथल-पुथल पर मणिपुर के निर्वाचित विधायकों की चुप्पी पर दुख जताया।

उन्होंने कहा  कि हमारे प्रतिनिधि उन लोगों के लिए आवाज़ उठाने में विफल रहे हैं जिनके लिए उन्हें काम करना चाहिए। उनकी चुप्पी मणिपुर के नागरिकों के लिए एक गंभीर अन्याय है जो डर और अनिश्चितता में जी रहे हैं। बिनोदिनी ने 14 महीने से चल रहे संकट को सुलझाने के लिए संसदीय कार्रवाई की अहम जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने यहां तक चेतावनी दी कि अगर सरकार मणिपुर संकट का जल्द से जल्द समाधान नहीं निकालती है तो मणिपुर के लोग और खुद राज्य भारत से अलग हो जाएगा।

हमने आपको हिंसा की हालिया घटनाओं के बारे में बताया। अब थोड़ा सा पीछे चलते हैं और समझते हैं कि इस हिंसा के पीछे की वजह क्या है, और इसकी शुरुआत कैसे हुई? सबसे पहले टकराव की वजह को समझ लेते हैं। और इसके लिए मणिपुर के भौगोलिक और समाजिक स्वरूप को समझना जरूरी है। भूगोल की किताबों में मणिपुर को दो हिस्सों में बांटा गया है। सेंट्रल वैली यानी घाटी और पहाड़ी इलाके। मणिपुर के 60 विधानसभा सीटों में से 40 घाटी में है। जो राजधानी इम्फाल सहित 6 जिलों में फैली है। जबकि बाकी की 20 सीटें 10 पहाड़ी जिलों में फैली है। घाटी राज्य के कुल क्षेत्र की महज 11 फीसद है। लेकिन 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां राज्य की करीब 57 फीसद आबादी बसी हुई है। जिसमें मुख्यत: हिंदू बहुल मैतेई समुदाय का दबदबा है। पहाड़ी इलाकों में राज्य की 88 फीसद से ज्यादा जमीन और यहां करीब 43 फीसद आबादी की बसावट है। जिसमें 33 से अधिक जनजातीय समूह शामिल हैं। हालांकि इसमें मुख्य दो हैं नागा और कुकी। दोनों में इसाइयों की बहुलता है।

मैतेई, नागा और कुकी। तीनों समुदायों के बीच जातीय प्रतिद्वंदिता का लंबा इतिहास रहा है। मैतेई समुदाय, मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय है। राज्य के शासन-प्रशासन में प्रभावी भी। विधानसभा की 60 में से 40 सीटों पर इनका दबदबा है। राज्य के सिस्टम को भी मैतेई समुदाय काफी प्रभावी तरीके से कंट्रोल करता है। लेकिन मैतेई के पास जनजातिय दर्जा नहीं है। और इसका नुकसान इस तरह से उठाना पड़ा है कि मैतेई समुदाय के लोग सेंट्रल वैली में ही सिमट कर रह गए हैं। क्योंकि पहाड़ी इलाके रिजर्व हैं। वहां जमीन खरीदने का अधिकार केवल जनजातीय समूहों को ही है। यानी मैतेई केवल राज्य के 11 फीसद इलाके में ही सिमटे हैं।

जनजातीय समूह के लोग कहते है कि घाटी के लोगों ने राजनीतिक वर्चस्व के दम पर राज्य में विकास के काम हथिया लिए। अब उनकी नजर जंगलों पर है। जबकि मैतेई समुदाय के लोग अपने लिए ST स्टेटस की मांग कर रहे हैं। ताकि सेंट्रल वैली के अतिरिक्त राज्य के अन्य इलाकों में जमीन खरीद सकें। ज़मीन के अलावा दूसरा प्रश्न है रोज़गार का। मणिपुर में उद्योग नहीं के बराबर हैं। खेती के लिए भूमि बेहद सीमित है। ऐसे में पक्की नौकरी का एक ही ज़रिया है – सरकार। इन सरकारी नौकरियों में सूबे के सभी समुदायों की दिलचस्पी है। ऐसे में मैतेई, जिन्हें ST आरक्षण नहीं मिलता, उनमें ये भावना पनप रही है कि नौकरियां उनके हाथ से चली जा रही हैं।

यहां हम ये बात रेखांकित कर दें कि मणिपुर में जनजातिय तनाव को सिर्फ ज़मीन और रोज़गार के चश्मे से देखना भूल होगी। मैदानों में बसे मैतेई, और पहाड़ों पर बसी कूकी-नागा जनजातियां, दोनों के भीतर जातिय अस्मिता और पहचान का गहरा बोध है। और दोनों समूह अपनी-अपनी पहचान को लेकर आक्रामक हैं। उसपर किसी तरह के अतिक्रमण को बर्दाश्त नहीं करते। खैर, हाल के तनाव पर लौटते हैं।

बीते दिनों मणिपुर हाईकोर्ट का एक फैसला आया। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य सरकार, केंद्र सरकार से मैतेई समुदाय को ST स्टेटस दिलाने की सिफारिश करे। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश प्राप्ति के 4 हफ्तों के भीतर सिफारिश करने का निर्देश दिया। इस फैसले ने मणिपुर का माहौल और गरम कर दिया। जनजातीय समूहों में राज्य की एन बीरेन सिंह की सरकार के खिलाफ पहले से ही नाराजगी थी। वजह थी राज्य में अफीम की खेती और जंगली इलाकों में अवैध अतिक्रमण के खिलाफ चल रहा अभियान। जनजातीय समूहों का कहना था कि कार्रवाई के नाम पर बेगुनाह लोगों को टार्गेट किया जा रहा है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार के खिलाफ जनजातीय समूहों का प्रदर्शन तेज हो गया।वहां के लोगों का मानना है कि मणिपुर की शांति के लिए भले ही लगातार प्रयत्न का रहे है पर शांति नहीं हो रही है सो स्वयं प्रधानमंत्री को मणिपुर का दौरा कर व दोनों समुदाय से मिलकर शांति का प्रयत्न करना चाहिए ।

अशोक भाटिया,

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक,  एवं टिप्पणीकार

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स्वतंत्र पत्रकार – अशोक भाटिया , वसई पूर्व (मुंबई – महाराष्ट )

ASHOK BHATIA
FREE LANCE JOURNALIST
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VASAI EAST -401208

( MUMBAI –  MAHARASHTRA )

MOB. 09221232130

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