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खुद को जीत लिया तो जग को जीत लिया खुद को जान लिया तो जग को जान लिया
भगवान महावीर का जन्म विदेह क्षेत्र अर्थात गंगा के पार कुंडाग्राम,वैशाली में हुआ था। ईसा पूर्व 599 को पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के घर में एक अद्भुत बालक का जन्म हुआ। सिद्धार्थ वैशाली गणतंत्र के प्रसिद्ध राजा थे। भगवान महावीर के जन्म स्थान के संबंध में भ्रांतियां हैं। वैशाली के अलावा बिहार के दो अन्य स्थलों को भी उनका जन्म स्थान लोग मानते हैं। श्री महावीर स्मारक, वैशाली के उद्घाटन पर लगे शिलालेख से भ्रांतियों पर विराम लग जाता है। इस स्मारक का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था स्मारक केशिलालेख में उल्लेखित है-
‘जिन भगवान महावीर को नमस्कार, सिद्धार्थ राजा और कृष्णा देवी के पुत्र श्री वर्धमान जिन वैश्य ने विदेह प्रदेश के के कुंड पूर नगर में चित्र शुक्ल त्रयोदशी को जन्म लिया था। यह वहीं स्थान है, जहां अरिहंत भगवान वैशाली भंगवान महावीर जी ने जन्म लिया और उनके कुमार काल के 30 वर्ष व्यतीत हुए थे। महावीर भगवान के जन्म के 2555 साल व्यतीत होने पर तथा विक्रम संवत के 2012 वर्ष व्यतीत होने पर महावीर जन्मोत्सव के समय स्वराज्य विधि प्रवीण प्रसाद गुण संयुक्त धीर भारत राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी वहां पधारें और उनके विधिपूर्वक वहां इस माह में स्मारक की स्थापना की। जिसमें वर्धमान भगवान का स्मारक चंद्र दिवाकर चीर स्थाई हो। आज स्थल पर भव्य जैन मंदिर एवं धर्मशाला है। बीत रागी होकर बने महावीर: महावीर के माता-पिता ने उनके शरीर में हो रही नित्य बढ़ोतरी के कारण वर्धमान नाम रखा, जन्म से ही स्वस्थ, सुंदर, आकर्षक, निर्भीक, रणबीर थे। वह चाहते तो राजा बनकर वैभव पूर्ण जीवन बिता सकते थे। मगर उस काल के वातावरण में हिंसा व्याप्त थी. पशुओं की बलि दी जाती, नरमेध यज्ञ तक हो रहे थे।
वह धर्म के नाम पर हिंसा का तांडव हो रहा था। ऐसे में भगवान महावीर ने लोगों को सम्मान दिखाना श्रेयष्कर समझा किंतु दूसरों को समझाने से पहले अपने ज्ञान भंडार को बढ़ाना बेहतर समझा। वाह्य हिंसा से जगत को रोकने के पहले वह अंतर के राग द्वेष जैसी कमजोरी को समाप्त कर देना चाहते थे। परिणाम स्वरूप 30 वर्ष की यौवन अवस्था में गृह त्याग दीया। नग्न दिगंबर होकर निर्जन वन में आत्म साधना में लीन हो गए। पहाड़ों पर कठिन तपस्या के उपरांत 12 वर्ष के बाद वह भी त्यागी हुए। आगे बढ़ने के बाद पुण्य ज्ञान की भी प्राप्ति हुई। मोह, राग-द्वेष आदि पर विजय प्राप्त कर महावीर बने। उसके बाद उनके समवशरण होने लगे। उनके समग्र शहरों में प्रत्येक प्राणी का भाग लेने का अधिकार था। मानव देवों के साथ-साथ पशुओं को बैठने की भी व्यवस्था थी जो शांतिपूर्वक धर्म श्रवण करते थे। भगवान महावीर जातिगत श्रेष्ठता के बदले मानव को आचार विचार के महत्व देते थे उनके मानना है कि भगवान पैदा नहीं होते इंसान अपने कर्मों से भगवान बन सकता है।
भगवान महावीर के कथन
अपने को जीत लिया तो जग को जीत लिया और
अपने को जान लिया तो जग को जान लिया.
अपने सामान दूसरे आत्माओं को जानो
सब आत्माएं समान हैं पर एक नहीं.
यदि सही दिशा में पुरुषार्थ करें तो प्रत्येक आत्मा परमात्मा बन सकती है.
प्रत्येक प्राणी अपने भूल से स्वयं दुखी है और भूल सुधार कर सुखी भी हो सकता है.
श्रेष्ठता का मापदंड मानव के आचार विचार है
अपरिग्रही जीवन को मानने से ही शांति होगी
आज पूरी दुनिया में अपराध का बोल बाला है हर तरफ हिंसा है, अशांति है, व्यापार में गला काट प्रतिस्पर्धा है
दुनिया में शांति और सौहार्द जैन धर्म के सिद्धांतों को अपना कर ला सकते हैं
भगवान महावीर के सिद्धांतो को माना जाए तो पूरे विश्व में शांति होगी.
दस धर्म:
सत्य क्षमा ,सोच ,तप ,संयम ,त्याग अकिंचन, अदव ,आजब और ब्रह्माचार्य.
पांच महाव्रत :अहिंसा, सत्य, असत्य ,ब्रह्मा चार्य और अपरिग्रह.
जैन धर्म के सात तत्व :जीव, अजीब, आश्रम, बध, संवर, निर्जरा एवं मोक्ष.