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भगदड़ रोकने के लिए नियमावली लेकिन लोग है कि मानते ही नहीं— मदन सुमित्रा सिंघल

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भगवान् एवं भक्ति एक ऐसा आनंद, है कि लाख कौशिश के बावजूद लोगों का हजुम इतना होता है कि रोकने से भी नहीं रूकते। धार्मिक आयोजन करने वाले अंदाज से अनुमति लेते हैं उसी हिसाब से प्रबंध करते हैं कभी कभी तो व्यवस्था धरी की धराई रह जाती है जब लोग आते ही नहीं इसलिए वक्ता एवं आयोजकों को निराशा होती है। ऐसा देखकर वक्ता दुबारा नही आने के निर्णय लेने से बात दूर तक पहुँच जाती है। हजारों लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की जाती है लेकिन कम आने से आयोजकों के सामने समस्या आती है कि बने हुए भोजन को कैसे निपटाया जाए। चमत्कार को नमस्कार हताश एवं निराश लोग अवश्य करते हैं इसलिए देश में फैले कथाकारों एवं महाराजों के प्रवचन सुनने के अलावा उनके एजेण्डा पर आकर्षित होकर खींचे चले जाते हैं। भारत में भेङचाल उस समय का मुहावरा था जब अधिकांश लोग अशिक्षित थे लेकिन आज लगभग आबादी शिक्षित नही तो भी काफी समझदार हो गये हैं जो भले ही अपनी अभिव्यक्ति जाहिर ना कर सके  देश के सभी लोकप्रिय एवं सुप्रसिद्ध मंदिरों में भी काफी भीड़ होती है लेकिन जब दर्शन का नंबर आता है तो उनको गर्दन तक घुमाने दर्शन करने का अवसर तक नहीं दिया जाता। हैरान परेशान भक्त एकबार तो निर्णय लेते हैं कि दोबारा नहीं आयेंगे ऐसा तो दूरदर्शन में ही देख लेंगे लेकिन फिर वही स्थान पर नहीं तो दूसरे पर चले जाते हैं।भगदड़ किसी भी कारण से हो उसमें मानव जीवन की जोखिम लाजमी होती है‌। हाथरस कांड में 121 लोगों की अकस्मत मृत्यु जीता जागता उदाहरण है  लोगों के पास इंतजार करने का धैर्य नहीं होता इसलिए हङबङाहट में भगदड़ मच जाती है।भीड़ को बिठाने एवं आपातकाल में अप्रिय घटना के लिए सभी प्रबंध पहले से करना जरूरी होती है। आयोजक ना तो भीड़ को वापस कर सकते हैं ना ही उन्हें जाने से इसलिए यह काम पुलिस प्रशासन के जिम्मे देना चाहिए।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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