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सकारात्मक सोच की शक्ति ! — सुनील कुमार महला

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कहते हैं कि आदमी का दिमाग़ विश्व में सबसे ज्यादा पावरफुल है। दिमाग से पावरफुल है। दिमाग से पावरफुल दुनिया में कुछ भी नहीं है। आदमी अपने जीवन को बेहतर, अच्छा बनाने के लिए हर समय बाहरी स्त्रोतों की तलाश करता है, न जाने इसके लिए वह कहां कहां भटकता है। सुख, सुकून की तलाश करता है लेकिन आदमी कभी भी अपने अंतर्मन में नहीं झांकता। आदमी को यह कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि उसके स्वयं के भीतर ही अविश्वसनीय संसाधन मौजूद हैं। और यह संसाधन है हमारी सकारात्मकता, हमारी पाजीटिविटी। हम कितने पाज़ीटिव हैं ? लेकिन हम सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए कभी भी प्रयास नहीं करते। अपने लिए कभी समय ही नहीं निकालते। हमें जीवन के सकारात्मक पहलुओं पर विचार करना चाहिए और यह काम केवल और केवल हमारा दिमाग कर सकता है। हम जैसा सोचते हैं, जैसे विचार रखते हैं, वास्तव में हम वैसा ही बनते हैं। वास्तव में यह एक चुनौती है। आज हर कहीं नेगेटिविटी बिखरी पड़ी है। आज के परिवेश में सकारात्मक होना आसान नहीं है लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। सकारात्मक होना संभव है और बिल्कुल मुमकिन है। हर कोई सकारात्मक हो सकता है और अपने जीवन को सफल बना सकता है। हम तूफानों से लड़ना सीखें, संघर्षों में जीना सीखें, जीवन यही है। एक कवि कुछ यूं लिखते हैं -तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार, आज सिन्धु ने विष उगला है, लहरों का यौवन मचला है, आज हृदय में और सिन्धु में, साथ उठा है ज्वार, तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार, लहरों के स्वर में कुछ बोलो, इस अंधड़ में साहस तोलो, कभी-कभी मिलता जीवन में तूफानों का प्यार, तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार , यह असीम, निज सीमा जाने सागर भी तो यह पहचाने, मिट्टी के पुतले मानव ने कभी न मानी हार, तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार…।’ हमें अपनी रगो में साहस तौलना है और संघर्षों से कभी भी परेशान नहीं होना है। संघर्षों में भी हम आशान्वित रहें, सकारात्मक सोच रखें। हमें यह चाहिए कि हम नकारात्मक लोगों, नकारात्मक विचार फैलाने वाले लोगों से दूर रहें। वास्तव में,  सकारात्मक मानसिकता बनाने के लिए अभ्यास की जरूरत होती है। आदमी हमेशा अपने मन को, अपने दिमाग को बीमार रखता है। आज आपा-धापी, भाग दौड़ भरी जिंदगी है। हम स्वयं का समावेश प्रकृति के साथ नहीं करते, जीवन की आपाधापी में ही हमेशा उलझे रहते हैं। हमारी अच्छी सोच हमारे जीवन में जिजीविषा पैदा करती है। जीवन बड़ा ही सुंदर है, सहज है। हम स्वयं को खुद ही बीमार रखते हैं, क्यों कि हमारी सोच ही नेगेटिव होती है। नेगेटिविटी आदमी को हमेशा आकर्षित करती है, यह नेगेटिविटी का गुण है। वास्तव में पाज़ीटिव होने के लिए हम कुछ अफरमेशंस को अपना सकते हैं। दरअसल, सकारात्मक पुष्टि कथन या मंत्र हैं जिनका उपयोग हम अपनी मानसिक आदतों को बदलने के लिए कर सकते हैं। वे हमें नकारात्मक विश्वासों को सकारात्मक लोगों से बदलने में मदद करते हैं। वे हमारे विचार पैटर्न को बदलने में भी हमारी मदद कर सकते हैं। एक सकारात्मक पुष्टि हमारे  व्यवहार को बदलने, हमारा आत्मविश्वास बढ़ाने और हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के हमारे व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों प्रयासों का समर्थन कर सकते हैं। सकारात्मक स्वीकारोक्ति वह अभ्यास है जिसमें आप जो चाहते हैं उसे इस उम्मीद के साथ ज़ोर से कहते हैं कि ईश्वर उसे वास्तविकता बना देगा। कहते हैं कि शब्दों में आध्यात्मिक शक्ति होती है और अगर हम सही विश्वास के साथ सही शब्द बोलते हैं, तो हम धन और स्वास्थ्य व जो हम चाहें वह प्राप्त कर सकते हैं। यह सब ‘आकर्षण के नियम'(ला आफ अट्रेक्शन)  पर आधारित होता है जो वास्तव में काम करता है। यह सिखाता है कि “जैसा आकर्षित करता है वैसा ही” – एक सकारात्मक कथन या विचार सकारात्मक प्रतिक्रिया आकर्षित करता है। यकीं मानिए सब कुछ ईश्वर की उपस्थिति और शक्ति से भरा हुआ है। सकारात्मक विचार की शक्ति इस ब्रह्मांड में गूंजती हैं और यह संपूर्ण सृष्टि सकारात्मक विचार को पूरा करने में लग जाती है। अफरमेशंस में बहुत शक्ति होती है। दरअसल, अफरमेशंस सकारात्मक कथन ही तो हैं। वास्तव में, सकारात्मक पुष्टि छोटे, सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण कथन हैं, जिन्हें हम नियमित रूप से खुद से दोहरा सकते हैं। मसलन, हम अपने आप से कुछ ऐसा कहने की कोशिश करें जैसे: ‘मैं जीवित और स्वस्थ हूँ’ या ‘आज का दिन बहुत अच्छा होने वाला है !’,’ ईश्वर मेरे साथ है और मैं हमेशा खुश व संतुष्ट हूं, मेरे पास किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं है ‘ वगैरह वगैरह।सकारात्मक ऊर्जा बनाने में यह अभ्यास(पाज़ीटिव अफरमेशंस) बहुत ही प्रभावी सिद्ध होता है। आप इसे भले ही मानें या न मानें। हमें यह चाहिए कि हम अपने दैनिक उपयोग की वस्तुओं से विचार ट्रिगर जोड़ने का प्रयास करें ताकि हमें उन चीजों की याद आ सके जो हमें खुश करती हैं। उदाहरण के लिए, हम अपने फोन में कोई स्टेटस लगा सकते हैं, व्हाट्स एप पर डीपी लगा सकते हैं, फेसबुक पर कोई फोटो विशेष लगा सकते हैं, जो हमें किसी ऐसी चीज की याद दिलाए जिसके लिए हम आभारी हैं। इस तरह के छोटे-छोटे ट्रिगर दिन भर में बनते रहते हैं और फर्क पैदा करते हैं। सकारात्मक सोच को स्वयं ही विकसित करना पड़ता है, इसके लिए किसी का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। हम सदैव दूसरों के लिए अच्छा काम करें, भलमानसियत अपनाएं, किसी को कष्ट न दें, ईर्ष्या न करें। हम यह पाएंगे कि दूसरों के लिए अच्छे काम करना हमारी आत्माओं को ऊपर उठा सकता है और यह उतना ही संतुष्टिदायक है जितना कि कोई आपके लिए कुछ करता है। जब हम किसी के पास से गुज़रते हैं तो बस एक दोस्ताना इशारा करके हम स्वयं को सकारात्मक महसूस कर सकते हैं। हमें चाहिए कि हम छोटी छोटी बातों में खुशियां ढ़ूढ़ें। दूसरों के लबों पर मुस्कान लाने का प्रयास करें और जब दूसरे लोगों के मुख पर मुस्कान आएगी तो स्वयं का खुश होना तो लाजिमी ही है। किसी को दुःख देकर, किसी को आहत करके हम कभी भी खुश नहीं हो सकते हैं। वास्तव में, मुस्कुराहटें मुखौटों से ढकी हुई होतीं हैं, इसलिए किसी अजनबी को हाथ हिलाकर, सिर हिलाकर या बस एक खुशनुमा ‘नमस्ते’ या अभिवादन करके देखें। हमें यह चाहिए कि हम अपने अतीत और भविष्य की चिंता बिल्कुल भी नहीं करें बल्कि वर्तमान में जीएं। अतीत व भविष्य के चक्कर में हम अपने वर्तमान को खो देते हैं। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि अतीत या भविष्य में कभी कुछ नहीं होता है। चीजें वर्तमान में होती हैं। प्रत्येक क्षण जिसमें हम हैं, चाहे वह कितना भी छोटा या महत्वहीन क्यों न हो, सकारात्मक हो सकता है यदि हम अन्य क्षणों के बारे में चिंता करने को अपने रास्ते में नहीं आने देते हैं। यदि हम अपनी वर्तमान स्थिति पर ध्यान केंद्रित करते हैं और जो हमें अभी और यहीं प्रभावित कर रहा है, तो हम यह बात महसूस कर सकते हैं कि जिन चीजों के बारे में हम चिंता कर रहे थे उनमें से बहुत सी चीजें कितनी महत्वहीन हैं, जिनका वर्तमान में कोई मतलब ही नहीं है। हमें यह चाहिए कि हम प्रकृति से सीखें, उससे प्यार करें। शांत मन से टहलें। प्रकृति का आनंद लें, संगीत सुनें। हमें यह चाहिए कि हम ऐसे लोगों की तलाश करें जो हमारा समर्थन करते हैं और हमें ऊपर उठाते हैं और फिर उनके लिए भी ऐसा ही करें। जितना अधिक हम अपने आस-पास के लोगों से सकारात्मक विचार और दृष्टिकोण सुनते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि हमारे सोचने के तरीके प्रभावित होंगे। हमें अपने दिल को खोलकर शानदार दिन का आनंद लेना चाहिए। हमें प्रतिदिन कहना चाहिए कि ‘मैं अच्छा हूं, बेहतर हूं।’ हम अपने जीवन में सदैव दयालु रहें, विनम्र रहें, शांत व संयमित रहें। याद रखिए कि विचार हमारी मान्यताओं का प्रतिबिंब होते हैं, इसलिए यदि हमारे बारे में हमारे विचार अधिकतर नकारात्मक हैं, यदि वे नेगेटिविटी लिए हुए हैं तो अंतर्निहित मान्यताएँ भी नकारात्मक या नेगेटिव ही होंगी। सकारात्मक पुष्टि हमें उन मान्यताओं को नए, अधिक सकारात्मक मान्यताओं से बदलने में मदद कर सकती है। अंत में एक कवि के शब्दों में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि -‘सब जाग रहे तू सोता रह, किस्मत को थामे रोता रह। जो दूर है माना मिला नहीं जो पास है वो भी खोता रह। सब जाग रहे तू सोता रह, किस्मत को थामे रोता रह । लहरों पर मोती चमक रहे, झोंके भी तुझ तक सिमट रहे। ना तूफान कोई आने वाला, सब तह तक गोते लगा रहे, लहरें तेरी कदमों में है, तू नाव पकड़कर बस रोता रह। सब जाग रहे तू सोता रह, किस्मत को थामे रोता रह किस्मत को थामे रोता रह। धूप अभी सिरहाने हैं मौसम जाने पहचाने हैं, रात अभी तो घंटे हैं बस कुछ पल दूर ठिकाने है । इतनी दूर तय कर आया, दो पग चलने में रोता रह । सब जाग रहे तू सोता रह, किस्मत के भरोसे रोता रह, किस्मत के भरोसे रोता रह। ‘

 

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

मोबाइल 9828108858

 

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