74 Views
विश्व भर के हिन्दुओं को संगठित करने के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (29 अगस्त, 1964) को स्वामी चिन्मयानंद जी की अध्यक्षता में, उनके मुंबई स्थित सांदीपनि आश्रम में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई।
इस अवसर पर धार्मिक, और सामाजिक क्षेत्र की अनेक महान विभूतियां उपस्थित थीं। स्थापना के समय महामंत्री का दायित्व संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री शिवराम शंकर (दादासाहब) आप्टे ने संभाला, वहां अध्यक्ष के लिए सबने सर्वसम्मति से मैसूर राज्य के पूर्व और अंतिम महाराज श्री जयचामराज वाडियार का नाम स्वीकृत किया।
श्री जयचामराज वाडियार का जन्म 18 जुलाई, 1919 को मैसूर (वर्तमान कर्नाटक) के राजपरिवार में हुआ था। वे युवराज कान्तिराव नरसिंहराजा वाडियार और युवरानी केम्पु चेलुवाजा अम्मानी के एकमात्र पुत्र थे। 1938 में उन्होंने मैसूर वि.वि. से प्रथम श्रेणी में भी सर्वप्रथम रहकर, पांच स्वर्ण पदकों सहित स्नातक की उपाधि ली। फिर उन्होंने शासन-प्रशासन का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया।
1939 में अपने पिता तथा 1940 में अपने चाचा श्री नाल्वदी कृष्णराज वाडियार के निधन के बाद आठ सितम्बर, 1940 को वे राजा बने। भारत के एकीकरण के प्रबल समर्थक श्री वाडियार ने 1947 में स्वाधीनता प्राप्त होते ही अपने राज्य के भारत में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे।
संविधान बनते ही 26 जनवरी, 1950 को मैसूर रियासत भारतीय गणराज्य में विलीन हो गयी। इसके बाद भी वे मैसूर के राजप्रमुख बने रहे। 1956 में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के समय निकटवर्ती मद्रास और हैदराबाद राज्यों के कन्नड़भाषी क्षेत्रों को लेकर मैसूर राज्य बनाया गया, जो अब कर्नाटक कहलाता है। श्री वाडियार 1956 से 1964 तक इसके राज्यपाल रहे। फिर वे दो वर्ष तक तमिलनाडु के भी राज्यपाल बनाये गये।
श्री जयचामराज वाडियार खेल, कला, साहित्य और संस्कृति के बड़े प्रेमी थे। उन्होंने कई नरभक्षी शेरों और पागल हाथियों को मारकर जनता को भयमुक्त किया। टेनिस खिलाड़ी रामनाथ कृष्णन तथा क्रिकेट खिलाड़ी प्रसन्ना उनके आर्थिक सहयोग से ही विश्वप्रसिद्ध खिलाड़ी बने।
वे अच्छे पियानो वादक तथा गीत-संगीत के जानकार व प्रेमी थे। उन्होंने कई देशी व विदेशी संगीतकारों को संरक्षण दिया। ‘जयचामराज ग्रंथ रत्नमाला’ के अंतर्गत उन्होंने सैकड़ों संस्कृत ग्रंथों का कन्नड़ में अनुवाद कराया। इनमें ऋग्वेद के 35 भाग भी शामिल हैं।
श्री वाडियार गांधी जी के ‘ग्राम स्वराज्य’ से प्रभावित थे। उन्होंने मैसूर राज्य में हस्तकला को प्रोत्साहित कर निर्धन वर्ग को उद्योग धन्धों में लगाया। वे सामाजिक स्तर पर और भी कई सुधार करना चाहते थे; पर इसके लिए उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिल सका। जन सेवा को जनार्दन सेवा मानने वाले श्री वाडियार सदा जाति, पंथ और भाषा के भेद से ऊपर उठकर ही सोचते थे।
श्री वाडियार भारतीय वेशभूषा के बहुत आग्रही थे। देश या विदेश, हर जगह मैसूर की पगड़ी सदा उनके सिर पर सुशोभित होती थी। राजशाही समाप्त होेने पर भी मैसूर के विश्वप्रसिद्ध दशहरा महोत्सव में वे पूरा सहयोग देते थे। वाडियार राजवंश सदा से देवी चामुंडी का भक्त रहा है। उसकी पूजा के लिए यह महोत्सव और विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है।
वि.हि.प. की स्थापना के बाद उसके बैनर पर प्रयाग में कुंभ के अवसर पर पहला विश्व हिन्दू सम्मेलन हुआ। इससे पूर्व 27 व 28 मई, 1965 को श्री वाडियार की अध्यक्षता में मैसूर राजमहल में ही परिषद की बैठक हुई थी। राज्यपाल रहते हुए भी उन्होंने परिषद का प्रथम अध्यक्ष बनना स्वीकार किया। उन दिनों राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व था। अतः यह बड़े साहस की बात थी।
देश, धर्म और संस्कृति के परम भक्त श्री जयचामराज वाडियार का केवल 55 वर्ष की अल्पायु में 23 सितम्बर, 1974 को निधन हो गया।