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छोटी दुकान पर खाने में हम क्यों हिचकिचाते हैं?

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बार बार हमारे साथ ऐसा होता है कि हम लोग ऐसी छोटी दुकान देखते हैं, और उसे इग्नोर कर के आगे बढ़ते हैं, यदि आप बस से जा रहे है तो,आप ऐसी छोटी दुकान पर रुक नहीं सकते हैं क्यों ये आपकी मजबूरी होगी।
लेकिन ज्यादातर लोग जो अपनी कार से है, या भाड़े की कार में हैं तो एक झूठी शान में जीते हैं कि अरे, ऐसी छोटी दुकान पर कौन रुकेगा हम तो बाबू साहब है बड़े ढाबा और रेस्टुरेंट पर रुकेंगे।
लेकिन मैं अभी आप को बताता हूं, तो शायद आप का ये सोचना बंद हो जाएं।
अपने दोस्तों के साथ कलकत्ता गया था, अपनी ही कार से, मेरे यहां से कलकत्ता की दूरी 800 km hai लगभग, वापस आते समय अत्यधिक जाम होने की वजह से हम लोग 4 घंटा लेट थे और बिहार बॉर्डर आते आते सुबह के 4 बज गए थे। लगातार गाड़ी चलाने से सभी की आंखे भारी हो रही थी और सभी ने ये डिसाइड किया कि कहीं पर रुक कर चाय पीते हैं।
6 या 6 30 का समय था, रास्ते में ही ये छोटी सी दुकान दिखी, दुकान पर 2 बड़ी गाड़ी रुकते देख दुकानदार भी सख्ते में आगया और खड़ा हो गया।
हमने बोला चाचा चाय है वो बोले-” हां है कई गो चाहिए”
हम लोग बोले “8 गो” तो बोले बनाना पड़ेगा, हमने कहा बनाइए। जबतक वो तैयारी करते सामने ही दो बड़े बड़े मिट्टी के मटके रक्खे थे, मैने पूछा चाय के अलावा कुछ है तो बोले हां है खाइएगा, क्या है कैसे है कुछ भी नहीं बताए हमने भी बोला खिलाइए।
अब पत्ते में गर्म गर्म तली हुई बाटी निकाली, और चने का बना छोला उसमें डाल दिया, बाटी और छोले दोनों में ही उपले की जबरदस्त महक आ रही थी। हमने पूछा इसमें क्या क्या पड़ा है, तो बोले चना है, हल्दी है मिर्ची है, और प्लेट में लगाने के बाद दही और नमक और भुना जीरा डाल के दिया और उसपर से बारीक कटा प्याज डाला।
एक बाइट खाने के बाद इतना टेस्टी लगा कि मेरे साथ के सभी लोग एक एक प्लेट की डिमांड कर दिया किसी ने तो 2 3 प्लेट भी मार दिया।
चाचा खुश थे काफी, चाय भी तैयार थी, 8 चाय दिया
तभी एक आदमी और आया फिर 2 कप चाय बनाने लगे, और छोला भी खत्म हो गया था।
मैने बात बात में उनसे पूछा कि इतना कम छोला और बाटी क्यों बनाए हैं, चाय भी जब मांग रहे हैं तब बना रहे है।
उनका मासूम सा जवाब था, भैया खराब हो जाएगा ना, हमने बोला क्यों खराब होगा बेच दीजिए, इसपर उन्होंने बोला। भैया ज्यादा बना लिए और नहीं बिका तो कल सुबह तक चलेगा नहीं, खराब हो जाएगा।
मेरे मन में तुरंत आया बोल दूं कि एक फ्रिज रखिए, लेकिन दुकान की हालत देख कर ये बोलना उचित नहीं था।
फिर वो बोलते हैं हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि छोला और बाकी समान खराब करें , अगर एक दिन भी कुछ खराब हुआ तो 2-3 दिन दुकानदारी संभालने में बहुत दिक्कत होता है, कर्जा चढ़ जाता है।
तभी एक बड़े होटल की शेफ की बात याद आई, उन्होंने मुझसे बोला था, रनिंग आइटम जिसकी डिमांड जायदा होती है, उसे बल्क में बना कर 4-5 दिन तक फ्रिज में रखा जाता है और ऑर्डर आने पर उसे गर्म कर के दे दिया जाता है।
अब सोचिए हम कैसे हैं जहां पर एक जगह ताज़ा खाना मिलता है लेकिन हम जानबूझ के वहां नहीं रुकते और जो 10 दिन का सड़ा हुआ खाना देता है हम जरूरत से ज्यादा पैसे देकर उसे खाते हैं,
इस लिए कभी भी ऐसी छोटी दुकान दिखे तो रुकिए और खाइए इनके यहां ये आप को जरूरत से ज्यादा इज्जत देंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि कैसे आप को संतुष्ठ करना है।
देश की अर्थव्यवस्था में ये लोग भी हमारे पर ही निर्भर हैं। अगर किसी बड़े होटल में 1 बार ना जाएं तो चलेगा लेकिन अगर इनके यहां एक ग्राहक भी अतिरिक्त आ जाएगा तो समझिए, इनके यहां 4 दिन का अतिरिक्त राशन का जुगाड़ हो जाएगा और इसके बदले आप को बस ताजा और सस्ता खाना खाना है।

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