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सावन और शिव

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बम बम भोले,बम बम भोले, शंकर जटाधारी।
बम बम भोले,बम बम भोले, नंदी की सवारी।।
सावन का महीना, शिव भोले को प्यारा।
बरसे मेघ, बारिश का मौसम है न्यारा-न्यारा।।
त्रिपुरारी कर त्रिशूल सोहे,कंठन विष प्याला।
शिव है भोला भाला, शिव हैं निराला,मतवाला।।
कालों का काल , शिव महाकाल, रूप धारण करे विकराल।
नैन खुल जाये जब तृतीय, तांडव नृत्य से शिव करे धमाल।।
गले सर्प का हार,भक्तों की हैं ढ़ाल।
जटा में गंगा बिराजै, डमरू करे कमाल।।
तन भस्म रमायै, शिव तो सृष्टि कण कण में समाये।
अर्धनारीश्वर रूप भक्तन को सदा सुहाये।।
उमापति की महिमा अपरम्पार, भक्तन आशीर्वाद बरसे।
आ जाओ प्रभु अब तो ,नैनन  तुम्हारे दर्शन को कब से तरसे।।
आदि भी हैं और अंत भी, विघ्न विनाशक मंगल कारी।
शिवरात्रि का त्योहार, कृपा बरसाये त्रिपुरारी।।
तुम करूणा करतार,तुम कैलाशी, तुम परवरदिगार।
तुम अविनाशी, सुख के सागर,  तुम शिवरात्रि पर्व की बहार।।
तुम अनन्त, तुम निर्गुण, तुम साकार निराकार।
तुम केदार, तुम सोमनाथ, तुम हो अवतार।।
तुम पार्वती पति,तुम हो ओंकार, तुम ही परमेश्वर।
तुम मल्लिकार्जुन, तुम भूतनाथ, तुम ही त्र्यम्बकेश्वर।।
तुम महेश, तुम मंगलमय, तुम अतिपावन।
तुम दाता,तुम सत्य सनातन,तुम मन भावन।।
तुम योगी,तुम कृपालु, तुम ही हो दयामय।
तुम पाप हारणहारी, तुम विनय, तुम ही अनुनय।।
हे नीलकंठ ! हे उमारमण! हे भोलेशंकर!  अब तो आ जाओ एकबार।
दे दो दर्शन इस दीन दुःखी को, हो कर नंदी पर सवार।।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर ,कालमिस्ट व युवा साहित्यकार उत्तराखंड ,मोबाइल 09828108858

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