बलिया: आपने साधु महात्माओं की कई कहानियां सुनी होगी. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे सिद्ध संत की कहानी बताने जा रहे हैं जिनकी सिद्धि के आगे कभी ब्रिटिश ऑफिसर भी थर्राया करते थे. इतिहासकार की माने तो आज भी महान संत जंगली बाबा की अनेकों कहानी लोगों के मन में जीवंत है. यह वही सिद्ध संत थे जिनके देखने मात्र से दीन दुखियों के कष्ट दूर होते थे. आज उनकी समाधि स्थल लाखों लोगों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र और एक मनोहारी पर्यटन स्थल बना है.
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने लोकल 18 को बताया कि बलिया के सिद्ध संत जंगली बाबा सुदिष्ट बाबा के शिष्य थे. इनका जन्म बलिया जिले के रसड़ा तहसील के जाम गांव में सेंगर क्षत्ररीय श्री रामजियावन सिंह के पुत्र के रूप में हुआ था.
देखने मात्र से खत्म हो जाते थे दीन दुखियों के कष्ट…
यह ऐसे महात्मा थे जो दीन दुखियों के पीड़ा को केवल देखने मात्र से ठीक कर देते थे. ब्रिटिश शासन काल के दौरान एक बार यह अपनी मस्ती में सरयू नदी के किनारे बिहार गांव में तलवार भाज रहे थे, तब अंग्रेज अफसरों ने इनको गिरफ्तार करके कोरंटाडीह जेल में बंद कर दिया था, लेकिन अपने आप तपोवल से बाहर घूमने लगे. यह देखकर अंग्रेज अफसर डर गए और उन्होंने कभी स्वामी जी के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं किया.
हथुआ की महारानी ने बनवाया समाधि स्थल…
यह समाधि स्थल हथूवा राज की महारानी राजमाता ज्ञान मंजरी देवी ने 1983 विक्रमी (1926 ई.) में स्वामी जंगली नाथ बाबा के ब्रह्मलीन होने के उपरांत यह भव्य दिव्य समाधि स्थल बनाया. ये एक बहुत ही रमणीक मनोहारी पर्यटन स्थल भी है. हर साल यहां पर धनतेरस के दिन एक बड़ा मेला भी लगता है.
अनेकों किस्से कहानी आज भी चर्चा में…
स्वामी जंगली नाथ बाबा के चमत्कार के अनेकों किस्से कहानी आज भी लोगों के मन में जीवंत हैं. कहा जाता है की जंगली बाबा को जब कहीं जाना होता था तो वह रेलवे लाइन के किनारे खड़े हो जाते थे और कहते थे कि “कलिकवा हमरो के ले ले चल” तो ट्रेन खड़ी हो जाती थी और जब बाबा बैठ जाते थे तब ट्रेन चलती थी फिर जब उनको जहां उतरना होता था तो वहां वह कहते थे “कलिकवा रुक हम उतर जाई” तो अपने आप वह ट्रेन खड़ी हो जाती थी और बाबा अपने शिष्यों के साथ उतर जाते थे. इनका बच्चों से बहुत प्यार था. यह बच्चों के साथ ही चलते थे तो इस प्रकार की अनेकों कहानीयां स्वामी जंगली नाथ बाबा के बारे में प्रख्यात है. इनकी पूरी जीवंत कहानी बलिया विरासत के ऐतिहासिक पन्नों में दर्ज है.