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दिल्ली ३१ जुलाई – चलो कुछ न्यारा करते है फाउंडेशन के शिक्षा विभाग द्वारा हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती के उपलक्ष्य में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। एक बयान में प्रोग्राम इंचार्ज और फाउंडेशन के शिक्षा विभाग के सदस्य हरिओम कुमार ने बताया की प्रेमचंद, जिनका असली नाम धनपतराय श्रीवास्तव था, हिंदी और उर्दू साहित्य के इतिहास में अपने अनुपम योगदान के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी कलम से समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया और साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।
सदस्या निशा मिश्रा ने बताया की, प्रेमचंद का जन्म 1880 में वाराणसी के पास स्थित एक छोटे से गांव लमही में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी और इलाहाबाद में प्राप्त की। उनके साहित्यिक करियर की शुरुआत उर्दू में कहानियाँ लिखने से हुई, लेकिन बाद में वे हिंदी में लिखने लगे।
सदस्य किशन नाग ने कहा की प्रेमचंद की कहानियाँ और उपन्यास समाज की सच्चाईयों को बिना किसी आवरण के प्रस्तुत करते हैं। उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘गोदान’, ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’, और ‘रंगभूमि’ शामिल हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में किसानों, मजदूरों, और समाज के अन्य शोषित वर्गों के संघर्षों को जीवंत किया।
सदस्या अदिति जांगडे ने कहा की उनकी लेखनी में समाज की कुरीतियों, आर्थिक असमानताओं और सामाजिक अन्याय का यथार्थ चित्रण होता है। उन्होंने अपने पात्रों के माध्यम से समाज को एक दर्पण दिखाने का कार्य किया, जिसमें उन्होंने गरीबों, दलितों, और स्त्रियों की दशा को प्रमुखता से उभारा। प्रेमचंद ने साहित्य में एक नई दिशा दी, जिसे ‘साहित्य का समाजशास्त्र’ कहा जाता है। उनकी कहानियों और उपन्यासों में मानवीय संवेदनाओं का गहरा चित्रण है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देता है।
एक बयान में फाउंडेशन के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर प्रित्तेश तिवारी ने बताया की मुंशी प्रेमचंद की कृतियाँ हमें सिखाती हैं कि समाज में बदलाव लाने के लिए जागरूकता और संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा की हम आशा करते हैं कि उनकी जयंती पर उनके विचारों और उनकी कृतियों से प्रेरणा लेते हुए, हम समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में अग्रसर होंगे। यही मुंशी प्रेमचंद को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।