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Hindi Kavita: अटल बिहारी वाजपेयी की 2 चुनिंदा कविताएं

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चौराहे पर लुटता चीर,

प्यादे से पिट गया वज़ीर,

चलूँ आख़िरी चाल कि बाज़ी छोड़ विरक्ति रचाऊँ मैं?

राह कौन-सी जाऊँ मैं?

सपना जन्मा और मर गया,

मधु ऋतु में ही बाग़ झर गया,

तिनके टूटे हुए बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं?

राह कौन-सी जाऊँ मैं?

दो दिन मिले उधार में

घाटों के व्यापार में

क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं?

राह कौन-सी जाऊँ मैं?

रोते-रोते रात सो गई

रोते-रोते रात सो गई

झुकी न अलकें

झपी न पलकें

सुधियों की बारात खो गई

दर्द पुराना

मीत न जाना

बातों ही में प्रात हो गई

घुमड़ी बदली

बूँद न निकली

बिछुड़न ऐसी व्यथा बो गई

रोते-रोते रात सो गई

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