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आज के दौर में राम राज्य की कल्पना करना आम बात हो गई है। हर कोई एक ऐसे समाज की इच्छा रखता है जहां शांति, समृद्धि, और न्याय हो। लेकिन, इस राम राज्य की कल्पना करते हुए क्या हम वास्तव में भगवान राम के आदर्शों को अपने जीवन में उतार पा रहे हैं? शायद नहीं। राम जी को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, जो अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करते थे, सभी के प्रति सम्मान और प्रेम रखते थे, और धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते थे।
लेकिन आजकल हम कितने लोग भगवान राम के इन आदर्शों को अपने जीवन में उतार पा रहे हैं? आइए, इन आदर्शों पर एक नजर डालते हैं और सोचते हैं कि क्या हम वास्तव में उन्हें अपने जीवन में अपनाते हैं या सिर्फ राम राज्य की कल्पना करते रहते हैं।भगवान राम के जीवन का एक प्रमुख आदर्श था अपने माता-पिता के प्रति पूर्ण समर्पण और आज्ञाकारिता। वनवास की कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया और माता की सेवा की। आज के समाज में माता-पिता के प्रति श्रद्धा और सम्मान में कमी देखी जाती है। कितने बच्चे अपने माता-पिता की सेवा करते हैं? कितने लोग अपने माता-पिता की इच्छाओं का आदर करते हैं? आज जब माता-पिता वृद्धावस्था में होते हैं, तो अक्सर वे अकेले रह जाते हैं या वृद्धाश्रमों में भेज दिए जाते हैं। भगवान राम ने अपने जीवन में सत्य और धर्म का पालन किया, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों। उन्होंने कभी भी गलत रास्ते को नहीं अपनाया, भले ही उन्हें अपने राज्य और परिवार को छोड़ना पड़ा। आज की दुनिया में, सच बोलने और धर्म का पालन करने का महत्व कम होता जा रहा है। लोग अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, और यह समाज में नैतिकता की कमी को दर्शाता है। राम राज्य की सबसे बड़ी विशेषता थी समाज के प्रति कर्तव्य और सभी के लिए न्याय। भगवान राम ने राजा होने के बावजूद कभी भी अपने कर्तव्यों से मुँह नहीं मोड़ा। वे प्रजा के हित में हमेशा तत्पर रहते थे। आज के समाज में, लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थों में उलझे हुए हैं और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं। हमें यह सोचना चाहिए कि हम अपने समाज के लिए क्या कर रहे हैं और राम के इस आदर्श को कैसे अपने जीवन में उतार सकते हैं।
भगवान राम ने हर स्त्री का सम्मान किया। उन्होंने सीता माता के प्रति अपने प्रेम और समर्पण से यह सिखाया कि स्त्रियों को हमेशा सम्मान और समानता के साथ देखना चाहिए। आज के समय में, महिलाओं के प्रति हिंसा, उत्पीड़न और असमानता जैसी घटनाएं रोज़मर्रा की बात हो गई हैं। टीवी ऑन करते ही बलात्कार, हत्या, और उत्पीड़न जैसी खबरें सुनने को मिलती हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि हमने राम के आदर्शों से कितनी दूरी बना ली है। भगवान राम के समय में जहां स्त्रियों का सम्मान सर्वोपरि था, वहीं आज के समाज में स्त्रियों की सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है। राम राज्य की कल्पना सिर्फ एक विचार नहीं है, यह एक ऐसा आदर्श समाज है जहां हर व्यक्ति, विशेष रूप से महिलाएं, सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें। यदि हम राम राज्य की सच्ची भावना को समझें और अपनाएं, तो इस तरह की घटनाएं समाज से समाप्त हो सकती हैं। हमें अपने भीतर बदलाव लाना होगा, स्त्रियों का सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, और इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
रामजी की मित्रता हनुमान जी और सुग्रीव के साथ तथा भाइयों के साथ उनका संबंध आदर्श माने जाते हैं। उन्होंने अपने मित्रों और भाइयों के प्रति जो प्रेम, सम्मान और त्याग दिखाया, वह आज दुर्लभ हो गया है। आज के दौर में, स्वार्थ और प्रतिस्पर्धा की भावना के चलते मित्रता और भाईचारा कहीं खो गया है।
हमारे देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा कर दी है, लेकिन अब जिम्मेदारी हम सब भारतीयों की है कि हम रामजी के आदर्शों को अपनाएं। हमें न केवल रामजी के उपदेशों और शास्त्रों का पालन करना है, बल्कि जब आवश्यकता हो, तब धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र भी उठाना है। यह संतुलन ही राम राज्य की सच्ची भावना है। शास्त्र हमें धर्म, सत्य और कर्तव्य सिखाते हैं, जबकि शस्त्र हमें अन्याय और अधर्म से रक्षा करने की शक्ति प्रदान करते हैं। धर्म रक्षा का अर्थ केवल शस्त्र उठाना नहीं है, बल्कि यह हमारे कार्यों, विचारों और आचरण में भी रामजी के आदर्शों को स्थापित करना है। जय श्री राम का उद्घोष तभी सार्थक होगा जब हम अपने जीवन में रामजी के आदर्शों को उतारकर, धर्म की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।राम राज्य की कल्पना करना जितना महत्वपूर्ण है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है भगवान राम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारना। माता-पिता का सम्मान, सत्य और धर्म का पालन, समाज के प्रति कर्तव्य, स्त्रियों का सम्मान, आदर्श मित्रता, और धर्म रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र का संतुलन—ये सभी आदर्श हमें भगवान राम के जीवन से सीखने को मिलते हैं। अगर हम सच में राम राज्य की स्थापना करना चाहते हैं, तो हमें भगवान राम के आदर्शों को आत्मसात करना होगा। राम राज्य सिर्फ एक कल्पना नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू में राम जी के आदर्शों को उतारने का एक प्रयास है। इसलिए, आइए हम सब अपने जीवन में भगवान राम के आदर्शों को अपनाएं और एक सच्चे राम राज्य की स्थापना की दिशा में कदम बढ़ाएं। याद रखें, राम राज्य बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है हमारे विचारों, हमारे कर्मों और हमारे आचरण में। जब हम सभी भगवान राम के आदर्शों का पालन करेंगे, तभी सच्चे राम राज्य की स्थापना संभव हो पाएगी। और तभी, हम एक ऐसे समाज की रचना कर पाएंगे जहां हर मां-बहन सुरक्षित और सम्मानित हो सकेगी। जय श्री राम!