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हीनयानः तु बोधस्य बोध भाषा विलुप्यते– आनंद शास्त्री

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सम्माननीय मित्रों ! प्रागैतिहासिक तथ्यों के आधार पर हिन्द महासागर से सुदूर देश और सभ्यताओं में जनवरी और फरवरी के मास नहीं थे ! उनमें अधिकांशतः ने भचक्र के अनुसार ! अवकहणा चक्रानुसार ! द्वादश राशियों की सूर्य संक्रांति अनुसार ! भारतीय वाङ्गमय के विद्वानों से परामर्श किया ! एवं आकाश अर्थात अम्बर के सातवें भाग को-“सप्तमबर-सेपटेम्बर” अष्टम्बर अक्तूबर”नव अम्बर-नवम्बर””दश अम्बर अर्थात दिसम्बर” ऐसा नाम दिया।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि-देवनागरी लीपि में “नागर” के भावार्थ को समझने की प्रथम आवश्यकता है ! प्रागैतिहासिक काल में नगरीय क्षेत्रों में रहते शास्त्रज्ञों को नागर कहते थे ! भगवान श्रीवेदव्यास जी द्वारा लिखित-“स्कन्द पुराण में नागर संहिता” इसका ज्वलंत उदाहरण है कि देवनागरी अर्थात हिन्दी लीपि का प्राकट्य वैदिकीय काल में भी था ! वैसे भी-“शिव-उमा” का विवाह नागर ब्राम्हणों ने ही कराया था ! सौराष्ट्र,गढवाली एवं काश्मीरी ब्राम्हणों ने भी अपने आपको नागर ब्राम्हण ही कहा है। मित्रों ! सामवेदान्तर्गत नागसूक्त जिसे शाक्त परम्परा में सर्वोच्य स्थान दिया गया है ! मित्रों ! नागालैण्ड, मणीपुर,असम,केरल तथा आंध्रप्रदेश के प्राचीन आदिवासी ब्राम्हणों के पूर्वज भी नागवंशी थे ! इनके आठ गोत्र कहे जाते हैं ! इस संदर्भ मे वैदिकीय देवनागरी लिपि के अनुसार-“१-ॐ,२-अ वर्ग,३-क वर्ग,४-च वर्ग,५-ट वर्ग,६-त वर्ग,७-प वर्ग तथा आठवाँ य वर्ग” नामसे विख्यात है।
देव नगरीय अर्थात शिक्षित लोगों की भाषा हिन्दी नागवंशी अर्थात आर्यावर्त की वह अधिकृत लिपि है जिसे सम्पूर्ण भाषाओं की मातृभाषा कहा गया ! श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि हे भारत ! मैं काल हूँ  ! काल अर्थात समय ! भूत-वर्तमान  और भविष्य की संयुक्ति को काल कहते हैं ! वस्तुतः पिछली स्मृतियों का चलते जाना ही वर्तमान है और यही भविष्य बनता ! निर्धारित करता है ! अर्थात-“वर्तमान” ही भूत और भविष्य है ! जिसने वर्तमान को भूतकाल की तरह स्थापित किया वही भविषयनियंता होंगे। आदिमानव की कल्पना पाश्चात्य संस्कृति की विनाशकारी विडम्बना है ! डार्विन थ्यूरी अपने-आप की भ्रान्तियों से जूझ रही है ! तथाकथित पाश्चात्य देश अपने पूर्वजों को वनमानुष कहते हैं किन्तु सौभाग्य से हम अपने पूर्वजों को-“ॠषि-महर्षि” कहते हैं ! उन अशिक्षित वनमानुषों ने अपने पूर्वजों को क्रास पर लटकाया ! सुकरात को जहर दिया ! प्लूटो अरस्तु जैसों को पृथ्वी गोल है कहने पर मृत्युदंड दिया ! जबकि हमारे ॠषियों ने हजारों हजार वर्ष पूर्व और हजारों हजार ग्रन्थों में-“पृथ्वी गोल है ! यह सूर्यादि की परिक्रमा करती है” ऐसा कहा ! सप्तर्षि मण्डल ही नहीं अपितु लाखों नक्षत्रों का वर्णन और उनका नामकरण किया और इस हेतु हमारे भारतीय राजाओं और विद्वानों ने उन्हें महापुरुषों के रूप में इतिहास के पन्नों में चित्रित किया ! किन्तु दुर्भाग्य से कुछेक जयचंदों के कारण हमारे अन्वेषणों को वे चोर चुरा ले गये ! और उस हमसे चुरायी हुयी हमारी बौद्धिक सम्पदा को उन्होंने अपना घोषित कर दिया।
मित्रों-“नाग,नागवंशी,नागर,देवनागरी,नगर एवं नागरिक” इन शब्दावली के परस्पर सम्बन्ध को अस्वीकार करने का साहस किसी में भी हो सकता है ?
ॠग्वेदादि अष्ट वेद,छत्तीस पुराण,चौदह रामायण,१२७ उपनिषद, षट् शास्त्र एवं,महाभारत,आगम,धम्मपद्द तथा अन्यान्य लाखों लाख भारतीय ग्रन्थ देवभाषा अर्थात सुसंस्कृत देवनागरी में ही लिखे पढे और प्राप्त हुवे ! यूरोप तथा सभी ईसाई देशों के अनुसार अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति पांचवीं शताब्दी में हुयी जबकि देवनागरी हिन्दी लीपि के अस्तित्व को पाश्चात्य देश भी ईसापूर्व बारहवीं शताब्दी से स्वीकार करते आये हैं किन्तु  दुर्भाग्य है हमारा कि अपने ही देश में आज हिन्दी को सबसे निचले सोपान पर ढकेलने का षड्यंत्र इसी भाषा की सन्तान अन्यान्य भाषाओं द्वारा किया जा रहा है ! और सदियों से किया जा रहा है।
मैं सर्वोच्य न्यायपालिका की उस टिप्पणी पर आपका ध्यान आकर्षित कराना उचित समझता हूँ जहाँ भारत एवं हमारे इतिहास के प्रति भ्रामक और बिलकुल झूठी बातों को -“विकिपीडिया” पर होने के कारण उसे भारत में प्रतिबंधित करने की स्पष्ट चेतावनी दी है ! मित्रों हमारा दुर्भाग्य है कि चीन,कनाडा एवं गूगल साल में तीन से चार बार भारतीय मानचित्र को तोड-मरोड कर प्रस्तुत करते हैं ! किन्तु भारत के ही कुछेक राजनैतिक दल उनका समर्थन करते हैं ! आज समूचे भारत में-“मराठा मानुष,बंगाली बाबू,पंजाॅबी,गुजराती और कन्नड़” भाषी होना गर्व की बात है ! अंग्रेजी सीखते सीखते हम हिन्दी को ही भूला बैठे ?
आज गूगल,विकिपीडिया,इंस्ट्राग्राम,टंकण एवं दूरदर्शन आदि सभी का अंग्रेजीकरण होता जा रहा है ! मित्रों ! दूसरे की पिता का सम्मान करते करते हम उनको अपना पिता कैसे मान सकते हैं ।
ईस्वी १३४० में तत्कालीन जेवेलिन दस्यु जनजाति के लंडन में जन्मे जैफ्री चौसर को अंग्रेज विद्वान अंग्रेजी का पिता मानते हैं !
कुरान के प्रस्तुत कर्ता मोहम्मद साहब हैं,बाइबिल के ईश्वरपुत्र ईसामसीह हैं ! कुरान और बाइबिल के अभाव में उन सम्प्रदायों का अस्तित्व ही नहीं है ! आप उनसे पूछें-“हिन्दी भाषा के पिता कौन हैं ? वेदों की लीपि कौन सी है ? धम्मपद्द आगमादि की लीपि कौन सी है ? हिन्दी के जनक कौन हैं ? ये कितने आश्चर्य की बात है कि अरबी,फारसी,उर्दू,मन्दारिन,हान्जी आदि लगभग सभी भाषाओं की लीपि देवनागरी हिन्दी लीपि के वैदिक साहित्य में चिन्हित मुद्राओं,मात्राओं,स्वस्तिक,त्रिशूल,कलश तथा शून्यादि  से चुराये गये हैं ! आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्क सूत्रांक 6901375971″ 

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