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‘पप्पू और पन्नू यार है, देश का गद्दार है‘ यह नारा देश भर में खूब लगा है, खूब गूंजा, सोशल मीडिया पर ही नहीं बल्कि चैनलों और अखबारो में भी यह नारा काफी सुर्खियां पाया है, काफी विख्यात हुआ, इस नारे को काफी लोगों ने वायरल किया। सबसे बड़ी बात यह है कि इस नारे को लेकर सिख समुदाय के लोगों ने काफी सक्रियता दिखायी और पप्पू और पन्नू को बेनकाब करने का काम किया। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि यह नारा किसके खिलाफ है और इस नारे का उद्भव और विकास के कारण क्या है? इस नारे ने देश को किस प्रकार के खतरे से सावधान रहने के लिए चेतावनी दिया है और आतंकवाद तथा हिंसा ही नहीं बल्कि झूठ को लेकर भी सावधान रहने का संदेश दिया है।
नारे और कहावतें, श्लोगन ऐसे ही नहीं बनते है, ऐसे ही विख्यात नहीं होते हैं और ऐसे ही कुख्यात नहीं होते हैं, ऐसे ही जन-जन तक नहीं पहुंचते हैं बल्कि उसके प्रति सच्चाई होती है, उसके पीछे संदेश छिपा हुआ होता है और उसका अर्थ व्यापक होता है। इसलिए इस नारे की एंकाकी व्याख्या नहीं होनी चाहिए, एंकाकी विश्लेषण नहीं होने चाहिए, एंकाकी परीक्षण नहीं होने चाहिए, बल्कि इस नारे को संपूर्णता में देखना चाहिए, संपूर्णता में व्याख्या करनी चाहिए और संपूर्णता में परीक्षण होना चाहिए। इसलिए भी कि इस नारे के संकेत और चेतावनी देश की एकता और अखंडता से है और हिंसा-आतंकवाद को फिर से सक्रिय करने के खिलाफ है। भारत ने कालांतर में सिख आतंकवाद का भीषण दौर देखा है, सिख आतंकवाद की हिंसा और विखंडन का भीषण तबाही देखी है, हजारों और लाखों लोग इसके पीड़ित रहे हैं, सिखों की भावनाएं भी आहत हुर्इ्र हैं, हिन्दुओं का कत्लेआम भी देखा है, इंदिरा गांधी की हत्या भी देखी है, आस्था के महान प्रतीक और मानवता की सेवा का केन्द्र स्वर्ण मंदिर को अपवित्र करने की अमान्य और अस्वीकार कार्रवाइयां भी देखी है।
अब यहां यह प्रश्न उठता है कि इस नारे और अभियान की जरूरत ही क्यों पड़ी? इसके पीछे कौन सी भूमिका और तत्व काम कर रहे हैं, किसकी करतूत को उजागर करने, किसके झूठ को बेनकाब करने, किसके देश विरोधी कार्य को बेनकाब करने, किसकी स्वार्थ की राजनीति को उजागर करने और किसकी आतंकी नीति को जमींदोज करने तथा किसकी हिंसक राजनीति के खिलाफ जन जागरूकता पैदा करने के लिए इस तरह का अभियान चलाया गया। क्या यह अभियान सही में जन-जन तक पहुंचा, क्या यह अभियान देश की सुरक्षा और अस्मिता को लेकर जनभावनाओ को बल देने का काम किया? निश्चित तौर पर यह अभियान राष्ट्र की अवधारणा में विश्वास करने वाली जनता की चिंताएं बढायी है और यह भी सोचने के लिए विवश किया है कि इस तरह की झूठ और करतूत से देश की एकता और अखंडता कैसे बचेगी, यह तो सीधे तौर पर देश को हिंसा और घृणा में तब्दील करने का राजनीतिक खेल है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि देश को गृह युद्ध में झोकने की राजनीतिक करतूत है, देश के कानून और संविधान की संहिताओं को चुनौती है, सरकारें इस पर खामोश क्यों रहती हैं, ऐसी-करतूतों पर भीषण सजा क्यों नहीं सुनिश्चित होती है, इनकी गर्दन क्यों नहीं मरोड़ी जाती है?
पप्पू का अर्थ राहुल गांधी से है और पन्नू का अर्थ गुरूपतवन सिंह पन्नून से है। मंदबुद्धि का आधार बनाकर राहुल गांधी को भारतीय राजनीति में पप्पू के नाम से जाना जाता है, पुकारा जाता है और उपहास उड़ाया जाता है। राहुल गांधी अपने झूठ की राजनीति और जगहंसाई वाले बयानों से अपनी ऐसी ही छबि बनायी है, तथ्यहीन बयानबाजी उसकी मानसिकता में शामिल है, राष्ट्र की अस्मिता की खिल्ली उड़ाना उसकी मानसिकता और स्वभाव में शामिल है, अपनी बात पर पलट जाना उसकी राजनीति का हिस्सा है, झूठ बोलकर सजा पाने के डर से माफी मांगना उसकी सक्रियता होती है। राहुल गांधी ने बार बार ऐसा झूठ बोला है, ऐसी पप्पूगिरी दिखायी है जो राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरनाक है और जहरीला भी है।
उसने राष्ट्र की अस्मिता को लहूलुहान करने के लिए अमेरिका को चुना और अमेरिका जाकर उस पन्नू से एयारी की जो भारत की राष्ट्रीय एकता को तोड़ने और भारत विभाजन का ख्वाब देखता है, इतना ही नहीं बल्कि पन्नू भारत विखंडन के लिए हिंसा और वैचारिक अभियान पर सक्रिय रहता है। अमेरिका में राहुल गांधी ने क्या-क्या कहा? यह भी जान लीजिये। उसने अमेरिका में सिखों को भड़काया, भारत के खिलाफ मजहबी जहर घोला। राहुल गांधी ने सीधे तौर पर कहा कि भारत में सिखों की धार्मिक आजादी नहीं है, सिखों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है, भारत में सिखों को जगह-जगह पर अपमानित होना पड़ता है, जगह-जगह से सिखों को खदेड़ा जाता है, भारत के सिख गुरूद्वारा नहीं जा सकते हैं, गुरूद्वारा सिख नहीं जायेंगे तो फिर अरदास कैसे करेंगे, यानी की सिखों को अरदास से भी रोका जाता है, भारत में सिख पगडी भी बांध कर नहीं चल सकते हैं, भारत में सिख कड़ा भी नहीं पहन सकते हैं, भारत में सिख कंघा भी नहीं रख सकता है, भारत में सिख कच्छा भी नहीं पहन सकता है और भारत में सिख कृपान भी नहीं रख सकता है। जानना यह जरूरी है कि केश, कंघा, कृपान, कड़ा और कच्छा सिखों की पहचान है, एक धर्म परायण सिख के लिए ये पांचों प्रतीक जरूरी है। इन पांचों प्रतीक चिन्ह गुरू गोविन्द सिंह ने सिखों के लिए अनिवार्य किये थे। इसके पीछे अवधारणा थी कि सिख स्वयं और अपने धर्म की रक्षा कर सके। इन्ही पांच प्रतीक चिन्हों से सिखों की पहचान होती है और सिख पूरी दुनिया में इस पहचान को लेकर सक्रिय रहते हैं। एक अच्छा और आस्थावन सिख अपनी जान बलिदान कर सकता है पर वह अपनी पंगड़ी, कच्छा, कंघा, कड़ा और कृपान पर आंच नहीं आने देता है। इन्ही प्रतीकों की रक्षा के लिए सिख अफगानिस्तान-पाकिस्तान में लडे हैं और कश्मीर में लड़ रहे हैं।
राहुल गांधी की ये सभी आरोप और बातें क्या सही है? झूठ नहीं है? भारत का अनपढ आदमी भी सच बालेगा तो फिर इस कसौटी पर राहुल गांधी को झूठा कहेगा, मनबुद्धि का आदमी कहेगा, देश और संविधान-कानून की खिल्ली उड़ाने वाला कहेगा, देश के खिलाफ करने वाला करतूत बोलेगा। भारत में जितनी धार्मिक आजादी है उतनी धार्मिक आजादी तो यूरोप के उन देशों में भी नहीं है जो अपने आप को महान मानवतावादी कहते हैं और अथाह धार्मिक सहिष्णुता वाले देश घोषित करते हैं। मुस्लिम देशों में तो इस्लाम को छोड़कर अन्य किसी की कौन सी आजादी है। भारत में सिखों को तो हिन्दू धर्म से अलग भी नहीं समझा जाता है। भगवान गुरूनानक और भगवान गुरूगोविन्द सिंह में आस्था रखने वाले अधिकतर हिन्दू ही हैं। गुरूद्वारे में माथा टेकने जाने वाले अधिकतर लोग हिन्दू होते हैं, हिन्दू कभी भी सिखों को अपने से अलग नहीं समझा। राहुल गांधी अपने कथन और अपने आरोपों में ऐसा एक भी सिख को सामने उदाहरण के तौर पर खड़ा नहीं कर सकते हैं जिसे सिख धर्म के पंच प्रतीकों को ग्रहण करने से रोका गया या फिर उसे गुरूद्वारे जाने से रोका गया। सच तो यह है कि हिन्दू अगर गुरूद्वारे जाते हैं तब वे सिखों की तरह ही अपने सिर ढक कर जाते हैं। गुरूद्वारे जाने वाले हिन्दू पूरी तरह से गुरू गोविन्द सिंह की शिक्षाओं का पालन करते हैं और गुरूगोविन्द सिंह द्वारा निर्धारित-अनिवार्य प्रतीकों के प्रति भी आदर और सम्मान का प्रदर्शन करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद जब गुरूद्वारा जाते हैं तब वे पगडी पहनना भूलते नहीं है, वे गुरू गोविन्द सिंह द्वारा निर्धारित और अनिवार्य प्रतीकों को ग्रहण करने से पीछे नहीं हटते हैं। नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यकाल में सिख गुरूओं के प्रति आदर-सत्कार दर्शाने और उन पर अपना समर्पण दिखाने से कब परहेज किया है? जब भी नरेन्द्र मोदी को पुकारा जाता है जब वे खुद गुरूद्वारे पहुंच जाते हैं। सिखों के पहले गुरू गुरू नानक ही नहीं बल्कि सिखों के दसवें और अंतिम गुरू गोविन्द सिंह के प्रति नरेन्द्र मोदी का समर्पण सर्वश्रेष्ठ है। खासकर गुरू गोविंद सिंह के प्रति उनका लगाव और समर्पण उल्लेखनीय है। गुरू गोविन्द सिंह के बलिदान हुए दो बेटे जोरावर सिंह और फतह सिंह के प्रति नरेन्द्र मोदी का सम्मान भी उल्लेखनीय है, उनके बलिदान को नरेन्द्र मोदी ने अमर कर दिया। जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिन पर बाल दिवस मनाया जाता है। जवाहरलाल नेहरू ने बालपन में कोई वीरता दिखायी थी, यह किसी भी इतिहास में दर्ज नहीं है, अपने शासनकाल में नेहरू ने बच्चों के प्रति कौन सी प्रेरक और कल्याणकारी नीतियां बनायी थी, यह कोई नहीं जानता है। गुरू गोविन्द सिंह के बच्चों जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान दिवस को नरेन्द्र मोदी ने वीर बालक दिवस घोषित करने का पुण्य कार्य किया है। मोदी के अनेकानेक कार्य ऐसे हैं जो सिख गुरूओं के दिशानिर्देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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