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शोधार्थी संवाद मंच, हिंदी विभाग, पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग द्वारा आयोजित हुआ एकल व्याख्यान

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शोधार्थी संवाद मंच, हिंदी विभाग, पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग द्वारा दिनाँक 03/10/2024 को एकल व्याख्यान आयोजित किया गया।इस एकल व्याख्यान में दो मुख्य वक्ता डॉ.रीतामणि वैश्य, सह-आचार्य,गौहाटी विश्वविद्यालय और डॉ.वीरबहादुर महतो,त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल उपस्थित रहे।सबसे पहले हिंदी विभाग, गुवाहाटी विश्वविद्यालय की डॉ. रीतामणि वैश्य ने अज्ञेय और पूर्वोत्तर विषय  पर अपने विचार रखते हुए पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में हिंदी की स्थिति को बताते हुए अपने व्याख्यान का आरम्भ किया। सन् 1938 में असम राष्ट्रीय प्रचार समिति के स्थापना के पश्चात अनुवाद प्रक्रिया के माध्यम से पूर्वोत्तर में अनेक कार्य हुए। सन् 1989 में हुए असम जन आंदोलन की बात की। पूर्वोत्तर के रचनाकार जो वर्तमान समय में हिंदी भाषा में लेखन कार्य कर रहे हैं विषय पर बात करते हुए कहा कि इस ओर सकारात्मक कार्य हो रहे हैं साथ ही आगे इस ओर अधिक कार्य होने की अपेक्षा करते हुए भविष्य के संभावनाओं की ओर भी इंगित किया। अज्ञेय के तारसप्तक की बात करते हुए अज्ञेय ने पूर्वोत्तर भारत पर किस प्रकार लेखनी कार्य किया इस बारे में बताया। तथा उन्होंने कहा कि अज्ञेय ने अपनी रचनाओं के माध्यम से पूर्वोत्तर में हिंदी को स्थापित किया। अज्ञेय  की कविताओं, यात्रा वृतांत तथा मेघालय राज्य को कथावस्तु बनाकर लिखी गयी कहानी हिलीबोन की बत्तखें कथा पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की।नेपाल में हिंदी की स्थिति विषय पर अपने विचार रखते हुए डॉ. वीर बहादुर महतो ने भारत एवं नेपाल के बीच प्रगाढ़ सम्बन्ध है पर बल दिया। रोटी एवं बेटी के सम्बन्ध से बड़ा कोई मजबूत रिश्ता नहीं हो सकता जैसी बाते करते हुए, भगवान बुद्ध, माता सीता, विभिन्न धाम एवं अशोक तक की बात कहीं। काठमांडू स्थित त्रिचन्द्र कॉलेज एवं पटना के सम्बन्ध की चर्चा की। नेपाल एवं मेघालय राज्य के भौगोलिक स्थिति में समानता की बात बताई। नेपाली की राजनीति एवं संविधान की ओर विशेष बात की। नेपाल के बहु चर्चित गोरखा पत्रिका के बारे में बताया कि यह पत्रिका वर्तमान समय में 42भाषाओं में निकलती है। रेडियो नेपाल में हिंदी भाषा में समाचार प्रसारण होते हैं। हिंदी के विकास पर चर्चा करते हुए कहा कि यह भाषा केवल भाषाई रूप से ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी लोगों को जोड़ने का काम करती है। हिंदी में समता का भाव है। अंत में हिंदी भाषा के साथ-साथ अपनी मातृभाषा पर भी विशेष बल देने की बात की।

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