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रोजकांडी चाय बागान: ईश्वर भाई उबाडिया के नेतृत्व में पर्यावरण और श्रमिकों का उत्थान

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शिवकुमार शिलचर, 4 अक्टूबर: काछार जिले के, रोजकांडी चाय बागान में प्रबंधक ईश्वर भाई उबाडिया की अनूठी नीतियों ने न केवल पर्यावरण के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, बल्कि बागान के श्रमिकों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाए हैं। उनके नेतृत्व में बागान में कार्यरत कर्मचारियों और स्थानीय समुदाय के लिए कई सकारात्मक पहलें शुरू की गई हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद कर रही हैं। ईश्वर भाई उबाडिया ने पर्यावरणीय संरक्षण के महत्व को समझाते हुए विभिन्न उपायों को अपनाने पर जोर दिया है। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए सभी को एकजुट होकर प्रयास करना होगा। उनका मानना है कि हर व्यक्ति को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने ऊर्जा की बचत, पानी के उचित उपयोग, और पुनः प्रयोज्य सामग्रियों के प्रयोग जैसे महत्वपूर्ण उपायों पर जोर दिया है। उनकी ये पहल न केवल बागान के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि कर्मचारियों में जागरूकता बढ़ाने में भी सहायक हो रही हैं। बागान में हरियाली बनाए रखने के लिए पेड़ लगाने और जैव विविधता की रक्षा करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है। उन्होंने बताया कि बागान के कर्मियों को जलवायु विरोध और जागरूकता अभियानों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे न केवल श्रमिकों का आत्मविश्वास बढ़ता है, बल्कि उन्हें पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशील बनाया जा रहा है।उबाडियाजी ने बताया कि आजकल यहाँ के स्थानीय युवक-युवतियां बाहर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने के लिए जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उनमें आवश्यक स्किल्स का अभाव है। अगर आप किसी से भी पूछेंगे तो वह बीए पास होगा, लेकिन उनमें से अधिकांश की स्किल्स कमजोर हैं। यह चाय बागानों में कर्मचारियों की कमी का मुख्य कारण बन रहा है, उन्होंने बताया। उन्होंने स्थानीय युवाओं को स्किल सीखने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि अगर वे सही प्रशिक्षण प्राप्त करें, तो वे अपने ही बागानों में रोजगार पा सकते हैं। इससे न केवल बागान में श्रमिकों की कमी दूर होगी, बल्कि स्थानीय युवा भी अपने घरों के पास रोजगार प्राप्त कर सकेंगे।उबाडिया ने चाय बागान के श्रमिकों को सतर्क करते हुए कहा, चाय बागानों में कई ऐसे दलाल हैं, जिनका चाय श्रमिकों और बागान से कोई सरोकार नहीं है। ये लोग अपने स्वार्थ के लिए श्रमिकों को भड़काते हैं और अपने फायदे के लिए काम करते हैं। ऐसे लोगों से हमेशा सतर्क रहना चाहिए और उनकी बातों में नहीं आना चाहिए। ये लोग चाय श्रमिकों की भलाई कभी नहीं कर सकते हैं। यह सलाह श्रमिकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन्हें अपने अधिकारों और आवश्यकताओं के प्रति जागरूक करता है। उबाडिया के प्रयासों से चाय श्रमिकों में एक नई जागरूकता देखने को मिल रही है, जो उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने में मदद करेगी। रोजकांडी बागान में ऊर्जा-कुशल उपकरणों का प्रयोग, एलईडी बल्बों का इस्तेमाल, और पुनः प्रयोज्य सामग्री का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि बागान में सौर पैनलों और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि उत्पादन को बढ़ाते हुए पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव डाला जा सके। उबाडिया का मानना है कि स्थानीय उत्पादों का समर्थन, खाद्य अपशिष्ट को कम करना, और जलवायु के अनुकूल आदतों का विकास सभी के लिए अनिवार्य है।उबाडिया ने कर्मचारियों और स्थानीय समुदाय से अपील की है कि वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ व्यक्तिगत प्रयास करें और सतत विकास की दिशा में कदम बढ़ाएं। उन्होंने यह भी कहा कि बागान के प्रत्येक कर्मचारी को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
उन्होंने एक विशेष इंटरव्यू में, प्रबंधक ईश्वर भाई उबाडिया ने कहा की, चाय उत्पादन में गिरावट को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और श्रमिकों की कमी चाय उद्योग की सबसे बड़ी चुनौतियों में से हैं। यह समस्याएं उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं।उबाडिया ने कहा, चाय बागानों में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में गंभीर उतार-चढ़ाव हो रहा है। सितंबर में लगातार आठ दिनों तक तापमान 35 से 40 डिग्री के बीच रहा। इससे उत्पादकता में भारी कमी आती है।” उन्होंने असम में हो रही अनियमित और भारी बारिश के प्रभावों का भी जिक्र किया, जिसने बागानों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा की है। अचानक भारी बारिश होती है, जिसमें एक घंटे में दो इंच तक पानी गिरता है। इसका सीधा प्रभाव बागानों की ऊपरी मिट्टी पर पड़ता है, जो बहकर चली जाती है। यह मिट्टी पौधों के लिए अत्यधिक उपजाऊ होती है, लेकिन बार-बार बारिश की वजह से इसे नुकसान हो रहा है, प्रबंधक ने बताया।
उबाडिया ने यह भी बताया कि चाय उद्योग की यह स्थिति केवल उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर सीधे बाजार पर भी पड़ रहा है। “इस साल चाय की कीमतें थोड़ी बेहतर हैं, लेकिन पिछले सात सालों से चाय उद्योग को लगातार नुकसान हो रहा है। हमारी इंडस्ट्री साइक्लिक होती है, जिसमें कुछ साल अच्छे होते हैं और कुछ खराब, लेकिन अब कई सालों से हमें लगातार नुकसान हो रहा है।
उबाडिया का यह बयान स्पष्ट करता है कि चाय उद्योग में आय का प्रवाह धीमा हो गया है, जिससे श्रमिकों के जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अगर स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो यह केवल उद्योग के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए संकट का कारण बन सकता है। उबाडिया ने इस बात पर जोर दिया कि अगर जलवायु परिवर्तन और श्रमिकों की कमी जैसे मुद्दों का समाधान जल्द नहीं निकाला गया, तो चाय उद्योग के भविष्य पर गंभीर संकट मंडरा सकता है। उनका यह संदेश स्पष्ट है कि असम का चाय उद्योग, जो राज्य की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ है, जलवायु परिवर्तन और श्रम संकट से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। उबाडिया ने सरकार और उद्योग से जुड़े संस्थाओं से अपील की है कि वे इन समस्याओं का समाधान निकालें और चाय उद्योग को स्थायी विकास की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाएं।
रोजकांडी चाय बागान में प्रबंधक ईश्वर भाई उबाडिया के प्रयासों ने बागान को एक नई दिशा दी है। उनकी दूरदर्शिता और समर्पण के कारण बागान में न केवल उत्पादन में सुधार हो रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी सार्थक कदम उठाए जा रहे हैं। अगर इस दिशा में इसी प्रकार के प्रयास जारी रहते हैं, तो यह न केवल बागान के लिए, बल्कि पूरे चाय उद्योग के लिए एक सकारात्मक बदलाव साबित होगा। उबाडिया का मानना है कि अगर स्थानीय लोग अपने समुदाय में रहकर रोजगार की संभावनाओं का निर्माण करें और नई स्किल्स प्राप्त करें, तो न केवल उनकी स्थिति में सुधार होगा, बल्कि पूरे बागान और क्षेत्र की समृद्धि में भी योगदान होगा। उन्होंने बागान के कर्मचारियों और स्थानीय समुदाय से यह अपील की है कि वे एकजुट होकर अपने अधिकारों और संभावनाओं के प्रति जागरूक रहें। यह सभी पहलें और प्रयास एक नई उम्मीद जगा रहे हैं कि रोजकांडी चाय बागान आने वाले समय में एक आदर्श बागान बनेगा, जहां श्रमिकों का उत्थान और पर्यावरण का संरक्षण एक साथ किया जाएगा।

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