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हिंदुओं की दुर्बलता का जिक्र कर RSS प्रमुख ने किस खतरे की तरफ किया इशारा? 3 शब्द पर क्यों खास जोर

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी संबोधन में हिंदुओं की एकता से लेकर मिडिल ईस्ट में छिड़ी लड़ाई और बांग्लादेश में तख्तापलट का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि देश में कट्टरता को बढ़ाने वाली घटनाओं में अचानक इजाफा हुआ है. समाज को भाषा से लेकर जाति, मजहब और प्रांत के आधार पर बांटने का प्रयास चल रहा है. जम्मू कश्मीर से लेकर बिहार और मणिपुर तक इसके उदाहरण हैं. भागवत ने कहा कि आज के माहौल और वातावरण को देखते हुए शांति के लिए सज्जनों को ‘शक्ति संपन्न’ होना पड़ेगा. सज्जन एकत्रित नहीं रहते इसलिए दुर्बल दिखाई देते हैं. हमें यह कला सीखनी होगी. आरएसएस, समाज की इसी संगठित साधना का नाम है.

हिंदुओं पर किस खतरे की तरफ इशारा?आखिर संघ प्रमुख ने अपने संबोधन में हिंदुओं की दुर्बलता का जिक्र कर किस खतरे की तरफ इशारा किया? वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी कहते हैं कि डॉ. मोहन भागवत का सालाना विजयादशमी संबोधन स्वयंसेवकों को दिशा-दशा देने के लिए होता है. चूंकि इस केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है इसलिए आरएसएस प्रमुख का संबोधन और महत्वपूर्ण हो जाता है. अभी के संदर्भ में देखें तो मोहन भागवत के संबोधन का एक बड़ा मतलब यह निकलता है कि हिंदू शक्तिशाली रहें और दुनिया के हर कोने में रहें, ऐसा वह चाहते हैं.

उन्होंने बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद हिंदुओं पर अत्याचार का जिक्र करते हुए कहा कि पहली बार बांग्लादेश में हिंदुओं ने एकजुट होकर प्रतिकार किया. जब उन्होंने प्रतिकार किया तो उनके ऊपर हो रहे हमले रुक गए. संघ प्रमुख लगातार इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि हिंदू एकजुट नहीं हैं. हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसी तरह इशारा किया. संघ प्रमुख की बात को इसको इस तरीके से भी देख सकते हैं कि आरएसएस और भाजपा दोनों लार्जर हिंदू कॉन्सोलिडेशन के एजेंडे पर काम कर रहे हैं. कई बार कहा जाता है कि आरएसएस अपने एजेंडे से भटक गया है लेकिन मोहन भागवत के बयान से साफ है कि वह अपने एजेंडे पर पूरी मजबूती से डटा है और आगे बढ़ रहे हैं.

बांग्लादेश का क्यों किया जिक्र?

हर्षवर्धन त्रिपाठी कहते हैं कि आरएसएस प्रमुख के संबोधन में बांग्लादेश के जिक्र का एक और मतलब हो सकता है. उन्होंने सरकार को भी एक तरीके से मैसेज दिया है कि कम से कम जहां हिंदू हैं, उनके मसले पर वहां सरकार प्रतिक्रिया देती हुई दिखाई देनी चाहिए. बांग्लादेश के बहाने संघ प्रमुख ने एक तरीके से अमेरिका को भी निशाने पर लिया और इशारों इशारों में कहा कि अमेरिका का अगला टारगेट भारत हो सकता है, क्योंकि वह किसी को आगे बढ़ता नहीं देख सकता. उन्होंने सीधे नाम नहीं लिया लेकिन कहा कि अमेरिका ने बांग्लादेश में ऐसा किया और अब अगला खतरा भारत को ही है. इसलिये और सावधान रहने की जरूरत है.

 

3 शब्द के बहाने कौन सी फाल्ट लाइन सुधारने की बात?

मोहन भागवत ने अपने बयान में ‘डीप स्टेट’ ‘वोकिजम’ और ‘कल्चरल मार्क्सिस्ट’ जैसे 3 शब्दों का इस्तेमाल किया और इन्हें सबसे बड़ा खतरा बताया. उन्होंने कहा कि इसके नाम पर हमारी परंपराओं और संस्कृतियों को गलत बताने को होड़ मच गई है. यह हमारे लिए सबसे बड़ी चिंता की बात होनी चाहिए. हर्षवर्धन त्रिपाठी कहते हैं कि संघ प्रमुख ने इस खतरे को चिह्नित करते हुए ओटीटी, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसी चीजों और उस खतरे की तरफ भी आगाह किया. इनके जरिये किस तरीके से समाज की ‘फॉल्ट लाइन’ ढूंढ कर उपद्रवी अपना हित साधते हैं, इसपर भी सरकार को सतर्क रहने और काम करने की जरूरच है.

आरएसएस प्रमुख ने अपने संबोधन में कोलकाता की घटना का भी जिक्र क्रिया. इस बहाने सरकार के साथ-साथ सोसायटी को भी साफ मैसेज दिया. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से द्रोपदी का वस्त्र छीना गया तो महाभारत हुआ, सीता का अपहरण तो रामायण हुआ लेकिन कोलकाता में एक बेटी के साथ ज्यादती हुई और हम चुप बैठे रहे. पहली बात तो ऐसी घटना होनी नहीं चाहिए थी और होने के बाद जिस तरीके की प्रतिक्रिया थी और जैसा हमारा व्यवहार है, वह चिंताजनक है.

आरएसएस विचारक राजीव तुली कहते हैं कि संघ प्रमुख के दशहरे का उद्बोधन मुख्य तौर पर तीन लोगों के लिए होता है. एक अपने स्वयंसेवक कार्यकर्ताओं के लिए, दूसरा आम लोगों के लिए और तीसरा समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लिए. संघ पिछले 100 साल से हिंदुओं को एकजुट करने और सशक्त बनाने का ही काम करता आ रहा है, लेकिन कभी रोहित वेमुला तो कभी किसी और चीज के नाम पर इसको डिरेल करने की कोशिश होती है. फिर विखंडनकारी शक्तियां सिर उठाने लगती हैं. ‘वोकिजम’ और ‘कल्चरल मार्कसिज्म’ जैसी चीजें समाज को तोड़ने का काम करने लगती हैं. संघ प्रमुख का इशारा साफ है कि हिंदुओं को इन चीजों से लड़ते हुए आगे बढ़ते रहना है.

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