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असम में पूर्वोत्तर का पहला, 137 साल पुराना डांगरी रेलवे स्टेशन फिलहाल उपेक्षा का दंश झेल रहा है ।

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दुमदुमा प्रेरणा भारती 16 अक्टूबर — असम का डांगरी रेलवे स्टेशन 1883 में स्थापित किया गया था, यह असम और पूरे पूर्वोत्तर का पहला रेलवे स्टेशन था, जो अविभाजित डिब्रूगढ़ जिले में अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए चाय उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में कार्य  के लिए क्रियान्वित किया गया। यह ऐतिहासिक स्टेशन अब अपने पूर्व गौरव को बहाल रखने के विपरीत फिलहाल उपेक्षा का दंश झेल रहा है ।
 अंग्रेजों के औपनिवेशिक काल में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए भारत की अर्थ व्यवस्था में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की  कवायद में यातायात व्यवस्था को को दुरुस्त करने का निर्णय में रेल यातायात शुरू की। इस कड़ी में रेल मार्ग भारत में किसी राज्य से किसी राज्य की यात्रा का सुगम साधन रहा। उत्तर पूर्वांचल के प्रथम तथा पुराने 135 साल पुराने रेलवे स्टेशन का निर्माण 19वीं शताब्दी में अंग्रेजो द्वारा 1884 ईस्वी में डांगरी रेलवे स्टेशन की स्थापना की थी जो अंग्रेजों द्वारा असम में चाय, कोयला आदि सामानों की व्यापार के लिए एक खास मायने रखता था। चाय के निर्यात के लिए परिवहन व्यवस्था की आवश्यकता थी। पूर्वोत्तर का पहला रेलवे स्टेशन तिनसुकिया से 60 किलोमीटर दूरी सदिया क्षेत्र के डांगरी में बनाया। आज 1950 के प्रलयंकारी भूकंप में सदिया रेलवे स्टेशन भौगोलीक स्थिति बदल गया तथा सैखोवा, सदिया स्टेशन को बंद कर अब महज डिब्रूगढ़ ,तिनसुकिया से डांगरी तक ट्रेन आवागमन की सुविधा है। अंग्रेजों ने रेलवे नेटवर्क बढ़ाते हुए चाय तथा अन्य सामग्री निर्यात के लिए डांगरी ,सदिया सैखोवा तालाप, रुपाई ,दुमदुमा,हांहचारा, बडाहापजान  सहित रेलवे स्टेशन का निर्माण किया। आज रुपाई साइडिंग दुमदुमा हांचारा  स्टेशनों पर रात्रि होती ही अराजक तत्वों का बसेरा तथा इन स्टेशनों पर गंदगी टायलेट घर में तब्दील हो गया है।अंग्रेजों के जमाने में मीटर गेज की लाइन हुआ करती थी तथा कोयले से भाप इंजन द्वारा रेलगाड़ी चला करती थी। अंग्रेज माल वाहक के रूप में माल गाड़ियां तथा यात्रियों के लिए सुगम साधन था। आज केवल डांगरी स्टेशन एक विरासत के रूप में खंडहर अवस्था में पड़ा हुआ है। इस स्टेशन में ना यात्रियों के लिए कोई सुविधा है। टिकट काउंटर, विश्राम गृह सिर्फ एक खंडहर में तब्दील होकर उक्त स्टेशन अपनी बदहाली पर आंसू बह रहा है। विकास की गाथा की ढिंढोरा रही पीट रही सत्तासीन सरकार की विकास की पोल खोल रही है।  इस रूट पर सुबह 4:00 बजे डांगरी से खुलने वाली रात्रि 9:00 बजे माकुम से आती है। आज डेमू ट्रेन का परिचालन माकुम तक होने के कारण यात्री नहीं रहती हैं। क्योंकि ज्यादातर यात्री डिब्रूगढ़ तिनसुकिया के होते हैं ।रेलवे इस रूट पर महज खानापूर्ति के लिए ट्रेन का परिचालन कर रखा है। यह ट्रेन बीच-बीच में बंद कर दी जाती है विभिन्न दल संगठनों द्वारा कई बार आवाज उठाने पर ट्रेन परिचालन का निर्णय लिया जाता है। ट्रेन की समय सारणी सही नहीं होने के कारण पैसेंजर नग्नय  रहते हैं। पहले 75904 एवं 75905 संख्या की ट्रेन चला करती थी तो उस वक्त यात्रियों की संख्या भीड़भाड़ रहती थी क्योंकि सुबह डांगरी से 8:00 बजे एवं सुबह 10:00 बजे तिनसुकिया पहुंचकर फिर से डेमो ट्रेन 12:00 बजे तिनसुकिया से प्रस्थान करती थी फिर दोबारा डांगरी से डेमो 3:00 प्रस्थान करती थी ।इस ट्रेन में दूरगामी पैसेंजर उठकर तिनसुकिया जंक्शन से अपने गंतव्य के लिए ट्रेन पकड़ने में सुविधा मिलती थी।

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