नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने असम में घुसे बांग्लादेशियों को 15 अगस्त, 1985 को हुए असम समझौते के अनुसार नागरिकता देने वाले विशेष प्रावधान की वैधानिकता पर महत्वपूर्ण फैसला दिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (जस्टिस धनजंय यशवंत चंद्रचूड़) की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 4:1 के फैसले से नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए को वैध बताया। एक जज जस्टिस जेबी पारदीवाला (जस्टिस जमशेद बुरजोर पारदीवाला) ने बहुमत से अलग फैसला देते हुए सेक्शन 6ए को मनमाना, अस्थायी रूप से अनुचित और स्पष्ट रूप से असंवैधानिक बताया।
जस्टिस पारदीवाला के विरोध की मुख्य वजहें
जस्टिस पारदीवालाा ने अपने फैसले के पक्ष में दो मुख्य दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि इन दो गंभीर समस्याओें के कारण धारा 6ए के लागू करने में दिक्कत है, पहला- नागरिकता के लिए आवेदन देने की कोई अंतिम तिथि नहीं रखा जाना, और दूसरा- किसी व्यक्ति को विदेशी साबित करने का पूरा बोझ राज्य पर होना। मतलब, कोई बांग्लादेशी असम आ गया है तो सारी जिम्मेदारी राज्य पर है कि उसे घुसपैठिया साबित करे।
घुसपैठिया को सिर्फ इतनी जहमत उठानी है कि वो येन-केन प्रकारेण भारत-बांग्लादेश की सीमा पार करके असम में घुस जाए। उसे यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि वह घुसपैठिया नहीं है, बल्कि भारत का नागरिक है। जस्टिस पारदीवाला ने यह भी कहा कि सेक्शन 6ए में दी गई छूट का फायदा उठाने का एक मौका मिलना चाहिए ना कि अनगिनत। इसकी जगह कानून यह बना दिया गया कि 1966 से 71 के बीच आए प्रवासियों की पहले पहचान करनी है, फिर उन्हें फॉरनर्स ट्राइब्यूनल में भेजना है। जस्टिस पारदीवाला ने किन वजहों से नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को अप्रासंगिक बताते हुए असंवैधाानिक कहा, पांच बिंदुओं में जानिए…
1. समय सीमा का नहीं होना गलत
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 6ए(3) में विदेशियों का पता लगाने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। इस कारण राज्य सरकार घुसपैठियों की पहचान, पता लगाने और मतदाता सूची से नाम हटाने को लेकर हीलाहवाली करती है क्योंकि उसके सामने तय समयसीमा के अंदर ऐसा करने का दबाव नहीं है। साथ ही, यह 1966-71 के प्रवासियों को अनिश्चित काल तक मतदाता सूची में बने रहने की छूट देता है। जब तक विदेशी न्यायाधिकरण यह पता नहीं कर ले कि वह विदेशी है, उस पर नागरिकता के लिए आवेदन करने का भी दबाव नहीं होता है। यह सेक्शन 6ए के उद्देश्य के विपरीत है जो कि त्वरित पहचान, मतदाता सूची से हटाना और नियमित नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है।
2. सारा बोझ राज्य पर, घुसपैठियों को मदद
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने तर्क दिया कि धारा 6ए(3) का तंत्र राज्य पर विदेशियों की पहचान और उन्हें न्यायाधिकरण के समक्ष पेश करने का पूरा बोझ डालता है। यह प्रावधान विदेशियों (इस मामले में बांग्लादेशी) को अपनी पहचान बताने या अपना पंजीकरण करवाने की कोई समय सीमा नहीं देता। यह अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक है।
3. असम के लोगों की चिंताओं की अनदेखी
उन्होंने कहा कि धारा 6ए का उद्देश्य केवल प्रवासियों को लाभ पहुंचाना नहीं था, बल्कि असम के लोगों की चिंताओं को भी दूर करना था। मतदाता सूची से प्रवासियों को हटाने की समय सीमा नहीं होने से धारा 6ए असम के लोगों की सुरक्षा के उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाती। यह पूरी तरह पक्षपात है।
4. यूं अप्रासंगिक है 6ए
जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए समय के साथ स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित हो गई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पहले के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी कानून समय के साथ अप्रासंगिक हो सकता है। उन्होंने कहा कि कोई कानून जो शुरू में उचित था, समय के साथ अन्यायपूर्ण और अप्रासंगिक हो सकता है। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने कई कानूनों में समय-समय पर संशोधन किए। जस्टिस पारदीवाला ने कहा धारा 6ए भी अब अप्रासंगिक हो गया है, इसलिए इसका लंबे समय तक लागू रहना असंवैधानिक है।
5. संविधान की भावना के खिलाफ
उन्होंने कहा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए में समय-सीमा की कमी और राज्य पर पता लगाने का बोझ डालने से यह कानून स्पष्ट रूप से मनमाना और असंवैधानिक है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) का उल्लंघन करती है क्योंकि ऐसा कोई प्रावधान किसी अन्य विदेशियों के लिए नहीं किया गया है