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दान एवं चंदे में काफी अंतर है। दान स्वैच्छिक रुप से किसी को भी चाहे कितना भी किया जाए उसके परिणाम हाथोंहाथ अथवा देर सबेर दिखाई देता है लेकिन चंदा एक धंधा बन चूका है। चंदा भी आत्मा प्रशन्न होकर स्वैच्छिक रुप से दिया जाए तब तक तो ठीक है जोर जबरदस्त दिया जाता है तथा तथाकथित संगठनों क्लबों एवं न्यासों में आयकर बचाने अथवा कालाधन सफेद करने के लिए दिया जाता है तो उसकी महता कम हो जाती है। ऐसे लाखों संगठनों को मोदी सरकार ने बंद कर दिया।
दुर्भाग्य का विषय है कि आवश्यकता से अधिक धन संग्रह कर तो लिया जाता है लेकिन सरकार के कङे नियमों के कारण लाखों करोड़ों रुपये ऐसे लोगों के पास पङे रहता है जो अमुमन वापस लेने में पापङ बेलने पङते है अथवा भुगता दिए जाते हैं यह भी बहुत बङा भ्रष्टाचार है लेकिन कहा गया है कि,, सामर्थ को नहीं दोष गोसांई,,।
अनेक संगठनों द्वारा समय समय पर रक्तदान शिविर लगाया जाता है लेकिन खपत के अनुपात में संग्रह नाममात्र रक्तदान होता है। नैत्र दान तो मृत्यु के बाद ही दिया जाता है जो घंटे दो घंटे में नष्ट कर दिया जायेगा लेकिन लोग समूचित जानकारी ना होने एवं अंधविश्वास के कारण हट जाते हैं। इस दान से एक अमुल्य जीवन में प्रकाश लाने का बहुत बड़ा सहयोग हो सकता है। अंगदान तो बहुत ही कम होता है लेकिन पश्चिमी बंगाल के लोकप्रिय मुख्यमंत्री दिवंगत ज्योति वसु ने किया था। ओर भी लोगों ने किया होगा उस से विज्ञान के छात्रों को सीखने तथा जरूरत मंद रोगियों को, अंग भी मिलने से जीवन बच सकता है।
पहले लोग मित्रों रिश्तेदारों आसपड़ोस के कमजोर लोगों मंदिरों सामाजिक धार्मिक संगठनों एवं स्थलों में गुप्त दान करते हैं इसका महत्व एवं धर्म बहुत बङा है। लेकिन आज लोग यश कीर्ति एवं नाम के लिए ऐसा नहीं करते उनके योगदान को भी कम नहीं माना जाना चाहिए।
दान धर्म योग्य व्यक्ति पारदर्शी संगठनों एवं स्थलों पर होना चाहिए जो उचित समय खर्च किया जा सके।
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653