58 साल पहले 1966 में शिवसेना की स्थापनी की गई थी। पार्टी के चार नेता मुख्यमंत्री के कुर्सी तक पहुंचे। महाराष्ट्र में इस दल की अपनी सियासी धमक है। मराठा लोगों के अधिकारों की लड़ाई के लिए शुरू हुआ संगठन बाद में सियासी दल बन गया। इसके नाम के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है। पढ़िए शिवसेना की पूरी सियासी कहानी।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। शिवसेना की स्थापना बालासाहेब ठाकरे ने की थी। वे एक अंग्रेजी अखबार में कार्टूनिस्ट थे। मगर साल 1960 में उन्होंने अखबार छोड़ दिया। बाद में उन्होंने ‘मार्मिक’ नाम से अपना एक साप्ताहिक अखबार शुरू किया। देश की आर्धिक राजधानी मुंबई में मराठी लोगों के पक्ष में आंदोलन चलाया। दूसरे राज्यों से मुंबई नौकरी-पेशा करने आने वाले लोगों का विरोध किया।स्थानीय लोगों में लोकप्रियता बढ़ी तो बालासाहेब ठाकरे ने अपने इस क्षेत्रीय आंदोलन को राजनीतिक रूप दिया और 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की। उस वक्त उद्धव ठाकरे महज छह साल के थे।अपनी विचारधारा की वजह से शिवसेना न केवल महाराष्ट्र बल्कि भारतीय राजनीति का अहम दल बन गया। मुंबई में महाराष्ट्र के लोगों को नौकरी में अधिक अवसर देने की मांग से उपजा यह सियासी दल बाद में उग्र हिंदुत्ववादी राजनीति का सिरमौर बना।
किसने दिया शिवसेना नाम?
पार्टी को शिवसेना नाम बाला साहेब ठाकरे के पिता केशव सीताराम ठाकरे ने दिया था। शिवसेना का अर्थ शिवाजी महाराज की सेना से है। बाल ठाकरे की विचारधारा कट्टर हिंदुत्व की रही है। बाद में बीजेपी से गठबंधन की यही एकमात्र वजह भी बनी।
पहले ही चुनाव में जीतीं 17 सीटें
अपने गठन के अगले ही साल 1967 में शिवसेना ने ठाणे नगर निगम की 17 सीटों पर चुनाव जीता। 1968 में शिवसेना ने मुंबई के निकाय चुनाव में ताल ठोकी। यहां की कुल 121 में से 42 सीटों पर चुनाव जीतकर मुंबई में अपनी सियासी धमक का अहसास कराया। यह चुनाव शिवसेना ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ा था।
भाजपा के साथ गठबंधन
1980 में हिंदुत्व के विचार से ओत-प्रोत एक एक नए सियासी दल का उदय हुआ। इसका नाम था भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)। एक ही विचार धारा की वजह से चार साल बाद 1984 में भाजपा और शिवसेना के बीच पहली बार गठबंधन हुआ। भाजपा और शिवसेना का गठबंधन 2014 तक चला। 2014 विधानसभा चुनाव के बाद दोनों दल दोबारा एक साथ आए। मगर 2019 में विधानसभा चुनाव के बाद यह गठबंधन दूसरी बार टूटा।
1985 में मुंबई महानगरपालिका पर कब्जा
शिवसेना ने 1984 में भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा ने 22 और शिवसेना ने छह सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। अगले साल यानी 1985 में शिवसेना पहली बार मुंबई महानगरपालिका में कब्जा जमाने में कामयाब रही।
1990: पहली बार शिवसेना मुख्य विपक्षी पार्टी बनी
1990 में शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। शिवसेना 183 सीटों पर लड़ी। मगर जीत सिर्फ 52 सीटों पर मिली। वहीं भाजपा ने 105 में से 52 सीटों पर चुनाव जीता। शिवसेना के मनोहर जोशी को विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया। इस बीच मंडल आयोग की रिपोर्ट का बाल ठाकरे ने विरोध किया। मगर उनके करीबी छगन भुजबल को यह पसंद नहीं आया। उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दमन थाम लिया। छगन भुजबल के बगावत के बाद नेता प्रतिपक्ष का पद भाजपा के खाते में चला गया।
जब पहली बार सत्ता पर पहुंची शिवसेना
90 के दशक में मंदिर आंदोलन और सांप्रदायिक आंदोलन की वजह से महाराष्ट्र में धुव्रीकरण चरम पर था। इसका सीधा फायदा भाजपा- शिवसेना गठबंधन को हुआ। 1995 में महाराष्ट्र में पहली बार शिवसेना और भाजपा गठबंधन की सरकार बनी। शिवसेना ने 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा के खाते में 65 सीटें आईं।
चुनाव से पहले बाल ठाकरे ने तय कर दिया था कि जिस पार्टी की सीट अधिक होंगी, मुख्यमंत्री उसी का होगा। इसी कारण शिवसेना नेता मनोहर जोशी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। यह सरकार 1999 तक चली। इसी समय प्रदेश की राजधानी का नाम बॉम्बे से मुंबई कर दिया गया। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में लोकसभा अध्यक्ष का पद शिवसेना के खाते में गया। मनोहर जोशी को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया था।
15 साल विपक्ष में रही शिवसेना
1999 के चुनाव में शिवसेना ने 69 सीटों पर जीत दर्ज की। भाजपा ने 56 सीटों पर कब्जा किया। हालांकि गठबंधन को कुल 125 सीटें मिलीं, जो बहुमत के आंकड़े से कम थीं। शरद पवार कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने में कामयाब रहे। विलासराव देशमुख को मुख्यमंत्री बनाया गया।
भाजपा और शिवसेना को करीब 15 साल यानी 2014 तक विपक्ष मे रहना पड़ा। 2004 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की। 2009 विधानसभा चुनाव में शिवसेना सिर्फ 44 सीटों पर ही कब्जा जमा सकी।
उद्धव ठाकरे बने कार्यकारी अध्यक्ष
2003 में उद्धव ठाकरे को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। 2005 में शिवसेना को पड़ा झटका लगा। दिग्गज नेता नारायण राणे ने पार्टी छोड़ दी। 2006 में बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने भी शिवसेना को अलविदा कह दिया और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) नाम से एक नई पार्टी बनाई।
बालासाहेब ठाकरे का निधन
17 नवंबर 2012 को बालासाहेब ठाकरे ने अंतिम सांस ली। मुंबई में दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हुआ। इस दिन पूरी मुंबई थम गई। 18 नवंबर 2012 को उनका अंतिम संस्कार जब किया गया तो मुंबई में लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। एक अनुमान के मुताबिक बालासाहेब ठाकरे की अंतिम यात्रा में करीब 20 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था।
पहली बार टूटा शिवसेना भाजपा का गठबंधन
साल 2014 में पहली बार भाजपा और शिवसेना का गठबंधन टूटा। 2014 विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने कुल 63 सीटों पर जीत दर्ज की। 122 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी। चुनाव बाद दोनों दलों में गठबंधन हुआ और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया।
2019: उद्धव ठाकरे बने मुख्यमंत्री
साल 2019 विधानसभा चुनाव भाजपा और शिवसेना ने मिलकर लड़ा। भाजपा ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटों पर जीत दर्ज की। मगर शिवसेना मुख्यमंत्री के पद पर अड़ गई। नतीजा यह हुआ कि गठबंधन दोबारा टूट गया। उधर, उद्धव ठाकरे ने राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली और महाराष्ट्र के 19वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। यह पहली बार था जब ठाकरे परिवार सीधे सत्ता पर काबिज हुआ। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन को महाविकास अघाड़ी नाम दिया गया।
शिवसेना दो फाड़
कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन से शिवसेना का एक धड़ा नाराज था। इस गुट का कहना था कि जिन दलों से हमारी वैचारिक लड़ाई है, उनसे गठबंधन उचित नहीं है। बाद में जून 2022 में शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे की अगुवाई में 50 विधायकों ने उद्धव ठाकरे से बगावत कर दी। 30 जून 2022 को भाजपा के सहयोग से एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र के 20वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। बाद में दोनों गुटों के बीच पार्टी के नाम और चिह्न पर विवाद छिड़ा।
- शिवसेना (शिंदे गुट): शिंदे गुट को भारत निर्वाचन आयोग से पार्टी का नाम ‘शिवसेना’ और चिह्न धनुष बाण मिल गया। चुनाव आयोग के इस फैसले से शिंदे गुट की पार्टी को बाला साहेब ठाकरे द्वारा स्थापित मूल पार्टी के तौर पर मान्यता मिली।
- शिवसेना (यूबीटी): चुनाव आयोग ने उद्धव गुट को मशाल चुनाव चिह्न आवंटित किया। इसके अलावा पार्टी का नाम ‘शिवसेना उद्धव बाला साहब ठाकरे’ रखने मंजूरी दी। उद्धव गुट ने 2024 लोकसभा चुनाव इसी नाम और चिह्न के साथ लड़ा।
- विधानसभा में आमने-सामने: लोकसभा चुनाव 2024 में उद्धव ठाकरे की पार्टी को नौ सीटों पर जीत मिली। वहीं शिंदे गुट की शिवसेना ने सात सीटों पर चुनाव जीता। दो फाड़ होने के बाद दोनों गुट पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में आमने सामने हैं।
मजबूत जमीनी पकड़
देश का सबसे अमीर नगर निगम बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) है। इस पर शिवसेना का 1985 से 1992 तक और 1997 से आज तक कब्जा है। शिवसेना अपने संगठनात्मक ढांचे और जमीनी नेटवर्क की वजह से बाकी राजनीतिक दलों से बिल्कुल अलग है। शिवसेना के कार्यकर्ता खुद कहते हैं कि शिवसेना पहले एक संगठन है, इसके बाद सियासी दल है। शिवसेना का कार्यकर्ता भी पार्टी के प्रति बेहद वफादार और कट्टर है।
टाइमलाइन
- 1969: कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच सीमा विवाद हुआ। मुंबई बंद के दौरान तीन दिनों तक हिंसा भड़की। बालासाहेब ठाकरे को गिरफ्तार किया गया।
- 1970: मुंबई के परेल से कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक कृष्ण देसाई की हत्या हुई। हत्या का आरोप शिवसेना पर लगा। उपचुनाव में शिवसेना नेता वामनराव महादिक ने चुनाव जीता। वे शिवसेना के पहले विधायक बने।
- 1975: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया। बाल ठाकरे ने इसका खुलकर समर्थन किया।
- 1984: शिवसेना ने भाजपा के चुनाव चिह्न पर विधानसभा चुनाव लड़ा। इस वक्त तक शिवसेना के पास अपना चुनाव चिह्न नहीं था।
- 1985: पहली बार शिवसेना ने मुंबई नगर निगम पर कब्जा किया। पार्टी को कुल 75 वार्डों में जीत मिली।
- 1989: शिवसेना का अखबार सामना की शुरुआत हुई।
- 1990: शिवसेना पहली बार मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। मनोहर जोशी को नेता प्रतिपक्ष चुनाव गया।
- 1992: बृहन्मुंबई नगर निगम चुनाव में शिवसेना को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने नगर निगम पर कब्जा जमाया।
- 1995: भाजपा के सहयोग से शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र में सरकार बनाई। मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने।
- 1998: श्रीकृष्ण आयोग ने 1992 के मुंबई दंगों में शिवसेना की भूमिका पर सवाल उठाए और पार्टी को दोषी ठहराया।
- 1999: शिवसेना और भाजपा गठबंधन को विधानसभा चुनाव में हार मिली। कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई।
- 1999: बाल ठाकरे पर चुनाव आयोग ने छह साल का प्रतिबंध लगाया। वह 2005 तक न तो चुनाव लड़ सकते थे न ही मतदान कर सकते थे। यह कार्रवाई धर्म के नाम पर वोट मांगने की वजह से की गई थी।
- 2003: 43 साल की उम्र में उद्धव ठाकरे शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बने।
- 2005: दिग्गज शिवसेना नेता नारायण राणे ने पार्टी को अलविदा कहा।
- 2006: राज ठाकरे ने भी शिवसेना को छोड़ दिया। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठन किया।
- 2009: शिवसेना और भाजपा गठबंधन को विधानसभा चुनाव में हार मिली।
- 2012: 86 साल की उम्र में हार्ट अटैक से बालासाहेब ठाकरे का निधन हुआ। इसी साल शिवसेना ने मुंबई नगर निगम चुनाव जीता।
- 2014: शिवसेना ने विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से गठबंधन तोड़ा। पार्टी 63 सीटों पर जीती। चुनाव बाद भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार बनाई।
- 2019: शिवसेना ने भाजपा के साथ विधानसभा चुनाव लड़ा। सीएम पद को लेकर गठबंधन दोबारा टूटा। कांग्रेस व एनसीपी के सहयोग से उद्धव सीएम बने।
- 2022: एकनाथ शिंदे ने 50 विधायकों के साथ उद्धव से बगावत की। भाजपा के सहयोग से 30 जून 2022 को मुख्यमंत्री बने।
- 2023: शिंदे गुट को पार्टी का शिवसेना नाम और चुनाव चिह्न धानुष बाण मिला।