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जानिए धनतेरस के दिन नया बर्तन खरीदने की परंपरा कब से है? – डॉ. बी. के. मल्लिक

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धनतेरस, हिन्दी पंचांग में त्रयोदशी तिथि के रूप में मनाई जाती है और यह हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। धनतेरस का पर्व धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। यह त्योहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। इस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान धन्वंतरि की पूजा का महत्व है।
धनतेरस हिन्दू धर्म का प्रमुख पर्व है। यह पर्व दिवाली से दो दिन पहले मनाया जाता है। धनतेरस के दिन पारंपरिक तौर पर मां लक्ष्मी, कुबेर देव और भगवान धन्वंतरि पूजा की जाती है। धनतेरस के दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और अच्छे से सजाते हैं। साथ ही धन और धन-संपत्ति में वृद्धि के लिए इस दिन घरों में विशेष पूजा-आराधना की जाती है। धनतेरस के दिन विशेष रूप से लोग सोने और चांदी के आभूषण, मूर्तियां या अन्य वस्तुओं की खरीददारी करते हैं, क्योंकि इसे धन की वृद्धि के लिए शुभ माना जाता है। वैसे तो इस दिन खरीदारी का बड़ा महत्व है, लेकिन शास्त्रों में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है, जिन्हें धनतेरस के दिन नहीं खरीदना चाहिए।
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि, लक्ष्मी, कुबेर, यम और गणेशजी की पूजा होती है। धनतेरस के दिन ग्रामीण क्षेत्र में मवेशियों को अच्छे से सजाकर उनकी पूजा करते हैं, क्योंकि ग्रामीणों के लिए पशु धन का सबसे ज्यादा महत्व होता है। दक्षिण भारत में लोग गायों को देवी लक्ष्मी के अवतार के रूप में मानते हैं इसलिए वहां के लोग गाय का विशेष सम्मान और आदर करते हैं।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’ इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है। शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
धनतेरस पर इन चीजों को जरूर खरीदना चाहिए
धनतेरस के दिन नमक खरीद कर घर लाने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। धनतेरस को त्रयोदशी और धन्वंतरि जंयती भी कहते हैं। धनतेरस पर सोना, चांदी, कई तरह के शुभ धातुओं जैसे पीतल, तांबा आदि के बर्तन, धनिया, झाड़ू, गोमती चक्र आदि खरीदना तो शुभ माना ही गया है, लेकिन इस दिन नमक भी अवश्य खरीदना चाहिए।
धनतेरस पर सोना, चांदी, बर्तन, धनिया, झाड़ू आदि खरीदना शुभ माना जाता है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि इस दिन नमक भी अवश्य खरीदना चाहिए। जानें, क्यों खरीदना चाहिए।
क्यों खरीदना चाहिए धनतेरस पर नमक और इससे क्या-क्या उपाय किए जाते हैं। क्या है धनतेरस पर नमक खरीदने का महत्व?
धनतेरस के दिन नमक खरीद कर घर लाने से धन लाभ होता है। घर में मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। यदि आप धनतेरस के लिए शॉपिंग करने वाले हैं तो एक पैकेट नमक का भी अवश्य खरीदें। इस नमक को ही भोजन में इस्तेमाल करें। ऐसा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। मान्यता है कि यदि दीपावली के दिन घर में नमक वाले पानी से पूरे घर में पोछा लगाया जाए, तो दुख, गरीबी, दरिद्रता, नकारात्मकता दूर होती है। धनतेरस परहीरे जवाहरात नहीं, इस सस्ती चीज से मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न।
ज्योतिष के अनुसार इस दिन घर के उत्तर और पूर्व दिशा में कोने में एक शीशे की कटोरी में थोड़ा सा नमक डालकर रख देने से दरिद्रता दूर होती है। धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति बेहतर होने लगती है। घर से नकारात्मकता को दूर करने के लिए इस दिन पूरे घर में नमक वाले पानी से पोछा भी लगाने की मान्यता है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यदि आपकी शादीशुदा जिंदगी में कोई अनबन चल रही है, किसी प्रकार का तनाव है तो रात में अपने कमरे में किसी कोने में थोड़ा सा सेंधा या सफेद नमक रख दें। इससे सारे लड़ाई-झगड़े कम हो जाएंगे और आपके बीच आपसी प्यार और स्नेह बढ़ेगा। धनतेरस के दिन आप घर के छोटे बच्चे को नमक वाले पानी से स्नान कराएं, इससे आपका बच्चा और घर किसी की बुरी नज़र से बचा रहेगा. बच्चे की सेहत भी अच्छी रहेगी। यदि आपका बिजनेस फल-फूल नहीं रहा है, लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है तो नमक को अपने हाथों में लें और उसे अपने सिर पर कम से कम तीन बार घुमाकर अपने शॉप के बाहर फेंक दें. ऐसा करने से व्यापार में तरक्की होनी शुरू हो जाएगी। आपकी आर्थिक स्थिति बेहतर होने लगेगी।
धनतेरस के दिन ये चीजे नहीं खरीदना चाहिए
धनतेरस के दिन लोहा या लोहे से बनी वस्तुएं घर लाना शुभ नहीं माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार यदि आप धनतेरस के दिन लोहे से बनी कोई भी वस्तु घर लाते हैं, तो घर में दुर्भाग्य का प्रवेश हो जाता है और ये शुभ फल नहीं देता है। धनतेरस पर एल्युमिनियम या स्टील की वस्तुएं न खरीदें। मान्यता है कि स्टील या एल्युमिनियम से बने बर्तन या अन्य कोई सामान खरीदने से मां लक्ष्मी रूठ जाती हैं और घर में दरिद्रता का वास होता है। धनतेरस के दिन प्लास्टिक की वस्तुएं भी नहीं खरीदनी चाहिए। ज्योतिष के अनुसार यदि आप धनतेरस के दिन घर में कोई भी प्लास्टिक की चीज लेकर आएंगे तो इससे धन के स्थायित्व और बरकत में कमी आ सकती है। धनतेरस के शुभ अवसर पर शीशे या कांच की बनी चीजें भी बिल्कुल नहीं खरीदनी चाहिए। शीशे या कांच का सीधा संबंध राहु से होता है। मान्यता है कि यदि घर में राहु प्रवेश कर जाए तो इससे तरक्की रूक जाती है। धनतेरस के दिन चीनी मिट्टी या बोन चाइना की कोई भी वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए। ये चीजें घर में आने वाली बरकत में बाधा डालती हैं।
धनतेरस पर पांच चीजों का करें दान
इस दिन लोग विशेष रूप से विशेष प्रकार की पांच वस्तुओं का दान करते हैं, जिससे वे धनवान बन सकते हैं। पांच वस्तुओं का दान करके आप अपने जीवन में धन और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं।
 धनतेरस पर सोने का दान करना बहुत शुभ माना जाता है, सोना हमेशा से मानवता के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसका दान करने से व्यक्ति को आर्थिक स्थिरता मिलती है।
1 सोना: धनतेरस पर सोने का दान करना बहुत शुभ माना जाता है, सोना हमेशा से मानवता के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसका दान करने से व्यक्ति को आर्थिक स्थिरता मिलती है।
2 चांदी: चांदी का दान भी धनतेरस पर किया जा सकता है। चांदी का दान करने से व्यक्ति को लाभ होता है और वह धन और समृद्धि की ओर अग्रसर होता है।
3 वस्त्र: धनतेरस पर वस्त्र का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। वस्त्र का दान करके व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि, और सुख-शांति की प्राप्ति कर सकता है।
4 अन्न का दान: धनतेरस के दिन अन्न का दान करने से करने से देवी लक्ष्‍मी अत्‍यंत प्रसन्‍न होती हैं और जातक पर उनकी कृपा बनी रहती है।
5 घी: धनतेरस पर घी का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। घी का दान करने से व्यक्ति को आर्थिक संपत्ति, समृद्धि, और खुशहाली की प्राप्ति होती है।
इन पांच वस्तुओं का धार्मिक दृष्टिकोण से महत्व बताया गया है, लेकिन यह तभी संभव है जब इसे सही भावना और समर्पण से किया जाए। इस धनतेरस पर हमें समझना चाहिए कि धन का सही उपयोग करना हमें समृद्ध नहीं बनाता, बल्कि उसे सही रूप में दान करना हमें अधिक खुशियों और समृद्धि की ओर ले जाता है।
भगवान धन्वंतरि को विष्णु जी का अंश माना जाता है। धनतेरस को धनत्रयोदशी के रूप में भी जाना जाता है। दिवाली से पहले धनतेरस मनाने की परंपरा है। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। इस खास दिन लोग जमकर खरीददारी करते हैं। मान्यता है कि धनतेरस पर सोना, चांदी, बर्तन और अन्या चीजें खरीदने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। वहीं घर में हमेशा घर में बरकत बनी रहे इसलिए धनतेरस के दिन विधि विधान के साथ माता लक्ष्मी, भगवान धन्वं‍तरि और कुबेर देवता की पूजा करनी चाहिए।
धनतेरस की पौराणिक कथा
शास्त्रों के मुताबिक, जब समुद्र मंथन हुआ था उस समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुआ थे। वो समय कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। यही वजह है कि इस दिन को धनतेरस या धनत्रयोदशी के रूप में जाना जाता है। भगवान धन्वंतरि को विष्णु जी का अंश माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि हाथों में कलश लेकर प्रकट हुए थे इस वजह से धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। कहते हैं कि इससे धन, सौभाग्य, वैभव और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
धनतेरस की दूसरी कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।
 बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए। इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
डॉ.बी.के. मल्लिक
वरिष्ठ लेखक
9810075792

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