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“प्रभाव की विरासत: असम की राजनीति में गुवाहाटी विश्वविद्यालय की भूमिका और ABVP की छात्र संघ चुनाव में ऐतिहासिक जीत”

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असम के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. गोपीनाथ बरदलै सरकार के तत्वाधान में एवं उनके स्वप्न स्वरूप पूर्वोत्तर भारत का प्रथम एवं  सबसे बड़ा विश्विद्यालय गौहाटी विश्विद्यालय की स्थापना 26 जनवरी 1948 यानि देश की  आजादी के छः महीनों के भीतर होती है,जिसके संस्थापक कुलपति के रूप में संस्कृत के प्रकांड विद्वान,विचारक एवं समाजसेवी प्राध्यापक कृष्ण कांत संदिकै नियुक्त होते हैं। गौहाटी विश्विद्यालय को एक ऊंचाई पर ले जाने में एक मजबूत शिक्षा एवं संस्कृति की नींव डालने का कार्य प्राध्यापक कृष्ण कांत संदिकै ने किया। गौहाटी विश्विद्यालय के आधिकारिक गीत को पूर्णता देने का काम  प्रसिद्ध संगीतकार एवं  गायक डॉ. भूपेन हजारिका ने किया।ब्रह्मपुत्र घाटी को ज्ञान की ज्योति से उज्ज्वल करने की आकांक्षा इस संगीत में मिलती है-
“जिलिकाब लुइतरे पार
आंधारर भेंटा भाङि
प्रागज्योतिषत बइ
जेउति निज़रारे धार….”
अर्थात् , गौहाटी  विश्वविद्यालय लुइत (ब्रह्मपुत्र) नद के दोनों पार के  अंधेरे का शमन कर ज्ञान के प्रकाश के किरण से प्रागज्योतिष को आलोकित करेगा।
पूर्वोत्तर का सबसे पहला एवं बड़ा विश्वविद्यालय होने के नाते गौहाटी विश्वविद्यालय ने पूर्वोत्तर क्षेत्र एवं विशेष कर असम के भीतर सिर्फ शिक्षा ही नहीं, हर क्षेत्र में नेतृत्व खड़ा करने का कार्य किया है । उच्च शिक्षा का क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो, सांस्कृतिक क्षेत्र हो या राजनीतिक क्षेत्र हो अब तक तीन मुख्यमंत्री ऐसे हैं जो गौहाटी विश्वविद्यालय के छात्र रहे। शिक्षाविद अमर ज्योति चौधरी, अर्थशास्त्री एवं लेखक भवानंद डेका, वैज्ञानिक जितेंद्र नाथ गोस्वामी, अभिनेत्री कश्मीरी सैकिया बरुआ,  शिक्षाविद महिम बरा, साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त नगेन सैकिया, स्त्री शक्ति सम्मान प्राप्त श्रीमती पूर्णिमा देवी बर्मन, उपन्यासकार ध्रुव हजारिका, पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह, प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉक्टर रीता चौधरी, बोड़ो सामाजिक कार्यकर्ता उपेंद्रनाथ ब्रह्म जैसे विभूतियों को इसी विश्वविद्यालय ने जन्म दिया है।
भाषा आंदोलन का भी केंद्र रहा गौहाटी विश्वविद्यालय
गौहाटी विश्विद्यालय असम में हुए माध्यम आंदोलन का भी बड़ा केंद्र रहा है।सरकार द्वारा त्रिभाषी व्यवस्था लागू करने के विरोध में 1972 में गौहाटी विश्विद्यालय में बड़ा आंदोलन होता है। आंदोलन के फलस्वरूप ब्रह्मपुत्र घाटी में असमिया भाषा एवं बराक घाटी में बांग्ला भाषा को माध्यम के रूप में स्वीकृति दी जाती है एवं बराक घाटी में एक तीसरे विश्विद्यालय की स्वीकृति केंद्र सरकार से मिलती है जिसे आज असम विश्विद्यालय के रूप में जाना जाता है।
मंगलदोई लोकसभा चुनाव में 40,000 अवैध मतदाता ने असम को झकझोरा, असम आंदोलन के राष्ट्रीयकरण में विद्यार्थी परिषद ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका।
असम में बांग्लादेशी घुसपैठ की गंभीर समस्या है, जो मुस्लिम वोट बैंक के लालच में कांग्रेस की दीर्घकालीन सरकार की देन है ।मंगलदै लोकसभा के निवर्तमान सांसद श्री हीरालाल पटवारी के आकस्मिक निधन के कारण उपचुनाव होना था। उपचुनाव के वोटर लिस्ट में लोगों को ध्यान में आया कि लगभग 45 हजार अवैध मुस्लिम घुसपैठियों के नाम वोटर लिस्ट में दर्ज हैं ।पूरा असम इस विषय के ध्यान में आने से स्तब्ध हो गया। इस विषय को लेकर आंदोलन शुरू होता है।जिसे असम आंदोलन के रूप में जाना जाता है।जिसका नेतृत्व ऑल असम स्टूडेंटस यूनियन (आसू) करती है।बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ को राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से खतरा देखते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया। परिषद ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर घुसपैठ जैसी गंभीर समस्या के बारे में देशव्यापी जनजागरण किया।उस समय के विद्यार्थी परिषद के नेता श्रीमान सुशील कु. मोदी एवं श्री हरेंद्र प्रताप जी के नेतृत्व में विद्यार्थी परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल आसू से मिलता है।असम आंदोलन के नेताओं श्री प्रफुल्ल कुमार महंत एवं  स्व.भृगु कुमार फूकन जैसे नेताओं को भारत के बड़े एवं प्रतिष्ठित विश्विद्यालयों में घुसपैठ की समस्या को लेकर संगोष्ठी एवं अलग-अलग जनजागरण के कार्यक्रम आयोजित किए,जिसमें आसू के नेताओं को वक्ता के नाते आमंत्रित किया गया एवं उन्होंने असम में चल रही समस्या से देशभर को अवगत कराया।जिस कारण यह समस्या सिर्फ असम की स्थानीय समस्या न होकर एक राष्ट्रीय समस्या बनी।
जब सत्याग्रहियों पर पुलिस ने किया अभूतपूर्व एवम् वीभत्स लाठीचार्ज।आंदोलनकारियों का नहीं टूटा मनोबल; नहीं गिरफ्तार करने की असम पुलिस की लंबी परंपरा टूटी।
“Save Assam Today to Save Bharat Tomorrow” का नारा देते हुए विद्यार्थी परिषद के हजारों कार्यकर्ताओं ने देशभर से 2 अक्तूबर 1983 को गुवाहाटी के ऐतिहासिक जजेज फील्ड में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ के खिलाफ हुंकार भरा। उस समय पूर्वोत्तर क्षेत्र के सह क्षेत्रीय संगठन मंत्री, साहित्यकार, लेखक एवम् प्रसिद्ध कवि श्री लक्ष्मी नारायण भाला बताते हैं कि “असम बचाओ देश बचेगा’’ के नारों के बीच दिनांक 2 अक्टूबर, 1983 की भरी दोपहरी में गुवाहाटी के ‘जजेज फिल्ड’ पर जनसभा प्रारंभ हुई। अध्यक्ष एवं वक्‍तागण मंच पर विराजमान थे। महाराष्ट्र की कुमारी अंजली गीते ने जोशीले स्वर में गीत प्रारंभ किया, ”हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ तैयार”…और एक हजार कंठों ने दोहराया… “अगर देश के काम न आये तो जीवन बेकार, साथियों हो जाओ तैयार।” सभा प्रारंभ हुई। वक्‍ताओं के भाषणों को बड़े गौर से सुना जा रहा था। देश की युवा शक्ति असम में चल रहे “विदेशी घुसपैठ विरोधी आंदोलन” के एक चरण के रूप में सत्याग्रह करने देश के कोने-कोने से यहां आई थी। देश की अखंडता की रक्षा के लिए कुछ कर गुजरने की मनोकामना से युवा भारत यहाँ एकत्रित था। सत्याग्रह का संचालन करने वाले कुछ प्रमुख कार्यकर्ता सभा में बैठे सत्याग्राहियों को घूम-घूम कर सूचनाएं दे रहे थे। मैदान के चारों ओर पुलिस तैनात थी।
दोपहार 1 बजे सभा समाप्त करना आवश्यक था, क्योंकि 1 बजे से 4 बजे तक के लिए ही इस मैदान से धारा 144 हटाई गई थी। पुलिस अफसर ने सूचना भेजी- सभा के लिए दिया गया समय समाप्त हो चुका है। सभा समाप्त की जाए, वरना मंच पर चढ़कर सबको गिरफ्तार कर लिया जायेगा।’ मंच पर बैठे नेतागण इस बात के लिए तैयार थे। यह घटना अपने आप में एक अनोखी घटना होती, परन्तु पुलिस की ओर से कोई पहल नहीं की गई। 4:20 तक सभा की कार्यवाही चलती रही।
सभा समाप्ति के पश्चात राज्यपाल को ज्ञापन देने के लिए जुलूस के रूप में राजभवन की ओर जाने की घोषणा मंच से होते ही पुलिस की तत्परता बढ़ गयी पुलिस के द्वारा घोषणा की जाने लगी कि धारा 144 लागू कर दी गई है, जुलूस नहीं निकाल सकते, सब लोग मैदान छोड़कर चले जाएं। सत्याग्रह का मन बनाकर आये हुए युवा भला इस बात को कैसे मान लेते, अत: विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. कृष्ण भट्ट, राष्ट्रीय महामंत्री दत्तात्रेय, राष्ट्रीय मंत्री सुशील मोदी एवं उत्तर क्षेत्र के सह संगठन मंत्री श्री लक्ष्मीनारायण भाला सामने आये। महात्मा गाँधी का चित्र हाथ में लिये एक छात्रा प्राय: 50-60 छात्राओं के दल के साथ पीछे खड़ी थी। प्राय: 1000 छात्रों का जोश हाथों में पताका, नामपट्ट आदि के साथ उफान ले रहा था। पूरे मैदान को पुलिस ने घेर रखा था। सत्याग्राहियों का दल भी केद्धीय सुरक्षा दल तथा पुलिस दल के घेरे में था। तनाव बढ़ता जा रहा था।
पुलिस अफसर एवं जुलूस के नेताओं में गरमा-गरम बहस होने लगी। पुलिस किसी भी कीमत पर जुलूस को आगे बढ़ने नहीं देना चाहती थी और छात्र नारे लगा रहे थे— “लाठी गोली खाएगे-असम को बचाएगे।” थोड़ी देर की बहस के बाद एक पुलिस अफसर ने कहा, “Now a days there is no concept of arrest in Assam, Better you disperse immediately” इन दिनों असम में गिरफ्तार करने की अवधारणा नहीं है। अच्छा यहीं होगा कि आप लोग जुलूस को भंग कर दें। यह कहकर पुलिस जुलूस को आगे बढ़ने के लिए रोक रही थी। जुलूस एक-एक इंच आगे बढ़ रहा था। अचानक जुलूस के नेताओं ने अपना रूख बदला। दूसरे किसी रास्ते से राजभवन की ओर कूच करने की योजना आंदोलनकारियों की है, यह बात मस्तिष्क में आते ही पुलिस उग्र हो उठी। मैदान का घेरा और भी निकट लाकर मजबूत किया गया। लाठी, अश्रु गैस, बन्दूक एवं ढाल से सुसज्जित जवानों ने जुलूस को घेर लिया। युद्ध स्थल का सा दृश्य उपस्थित हो गया। थोड़ी ही देर में एक दहाड़ सुनाई दी— र्चा…ज। अगले ही क्षण जुलूस पर लाठी चार्ज होने लगा।
छात्राओं पर निर्मम लाठी चार्ज होते देख सबका खून उबलना स्वाभाविक था परन्तु बार-बार दी गई सूचनाओं का परिणाम था कि जोश के साथ सबका होश भी बरकरार था। “हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा”, “लाठी गोली खायेगे, असम को बचाएंगे”, आदि नारे और भी तेज हुए। लाठी एवं जूतों की मार भी तेज हुई। बर्बर लाठी जूतों के साथ निहत्थे किन्तु अनुशासित युवा शक्ति का यह संघर्ष जिन आँखों ने देखा होगा, वही उसे समझ पायेगें। लाठी-जूते की बेरहम मार के बावजूद एक भी सत्याग्रही मैदान छोड़कर नहीं भागा और न ही कोई प्रतिकार हुआ। अहिंसक शांतिप्रिय एवं अनुशासित प्रर्दशनकारियों के साथ कैसे निपटा जाये इसका अभ्यास हमारी पुलिस को नहीं होने के कारण वे असमंजस में पड़े थे। एक अफसर लाठी चलाने को ही अपना धर्म समझ रहा था तो दूसरे ने सभी को रूक जाने को कहा था। लाठी खाकर भी तितर-बितर न होने वाली इस युवा शक्ति के सामने अंततः बर्बरता को हार माननी पड़ी। पांच मिनट के इस अभूतपूर्व संघर्ष के बाद लाठी चार्ज रोक दिया गया। पुलिस की रणनीति असफल रही। सभी सत्याग्रही अपने-अपने स्थान पर बैठ गये। जोर से नारे लगाये जा रहे थे। जोश एवं होश का अद्भुत संगम मैदान में दिखाई दे रहा था।
पुलिस अफसर अपने सहयोगियों से सलाह कर रहे थे— अब क्या किया जाये? अंततः उन्‍हें निर्णय लेना पड़ा कि सबको गिरफ्तार किया जाये। असम में गिरफ्तारी का रिवाज समाप्त हो चुका है, केवल लाठी-गोली की भाषा बोली जाती है। ऐसा मानने वाले असम पुलिस को एक हजार सत्याग्रहियों को गिरफ्तार करने का निर्णय लेना पड़ा। प्रदर्शनकारियों की रणनीति
की जीत हुई। सत्याग्राहियो ने नारे लगाये-“जीत हुई भाई जीत हुई, छात्रशक्त की जीत हुई।” कुछ ही मिनटों में मैदान पर दो बसे आई प्रायः 50 सत्याग्राहियों को गिरफ्तार करके ले जाया गया। पुलिस अफसर सोच रहे ये कि इस प्रतीकात्मक गिरफ्तारी के बाद सभी सत्याग्राही लौट जाएंगे। परंतु ऐसा नहीं हुआ। सभी को गिरफ्तार करने एवं बसों में बैठकर ले जाने के लिए पुलिस मजबूर थी। पुलिस की जीप दौड़ाई गई। रास्ते चलती सिटी बसों को रोककर लाठी के भय से यात्रियों को उतारकर एक के बाद जाने लगी। छात्राओं की गिरफ्तारी की बारी आई तो छात्राओं ने महिला पुलिस की मांग की। उन्‍हें डराया धमकाया गया परंतु अंततः महिला पुलिस की व्यवस्था भी करनी पड़ी। सत्याग्राहियों के मनोबल ने पुलिस के आतंक को इस कदर तोड़ दिया था कि सत्याग्राही जैसा कहे पुलिस को वैसा ही करना पड़ता था।
इस सारे घटना क्रम में प्राय: 3 घंटे बीत चुके थे। इसी बीच 50-60 छात्रों का एक दल मैदान के एक छोर से नारे लगाते हुए अंदर आता दिखाई दिया। हाथों में सामान, चेहरे पर लंबे प्रवास की थकान, पस्तु सत्याग्रह करने की उमंग लिए वे सत्याग्रह स्थल की ओर दौड़ रहे थे। पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने की कोशिश की परंतु दक्षिण भारत से आए इस दल का स्वागत करने सुशील मोदी एवं लेखक उनकी ओर बढ़े। पुलिस ने गुस्से में आकर सुशील मोदी को पकड़ते हुए धक्के मारकर वहां से हटाना चाहा। सत्याग्राहियो में उत्तेजना बढ़ी। मुंबई के नंदू जोशी सत्याग्राहियों को संबोधित करने लगे। बढ़ती उत्तेजना को देख पुलिस अफसर ने एक-एक को पकड़ा प्रारंभ किया। एक पत्रकार श्री कुलकर्णी भी उनकी लपेट में आ गये। कुल 9 लोगो को पान बाजार ‘पुलिस थाने की हिरासत में भेज दिया गया। प्रो. कृष्णभट्ट, दत्तातरेय, सुशील मोदी, लक्ष्मीनारायण भाला, सुनील उपाध्याय, नंदू जोशी, रमेश पप्पा, सुरेद्र कुमार एवं पत्रकार कुलकर्णी इन 9 लोगों को थाने में जाते ही नारे सुनाई दिए-‘ विद्यार्थी परिषद जिन्दाबाद’। नारे लगाकर स्वागत करने वाले उन लोगों से बात हुई तो जानकारी मिली कि एक दिन पूर्व परिषद्‌ कार्यालय से 2, राममंदिर से 3 तथा रास्ते चलते 3 लोगों को पकड़कर थाने में भेज दिया गया था।इन सभी 8 सत्याग्राहियों को इसी बात का दु:ख था कि वे सत्याग्रह स्थल पर नहीं पहुंच सके। इन सभी ने ठीक 11 बजे थाने में ही नारे लगाना शुरू कर दिया था। थानेदार के डराने ‘एवं मना करने के बाद भी उन्होंने यह कहकर आधे घंटे तक नारे बाजी की कि यह समय हमारे सत्याग्रह के लिए निर्धारित समय है अतः हम नारे लगाएंगे।
उधर जिन 9-10 बसों में सत्याग्राहियों को भरा गया था उनमें 5 बसें ब्रहमपुत्र से सराई घाट पुल के उस पार प्रायः 5 कि.मी. दूर ले आई गई। गाँव वालों को जैसे ही जानकारी मिली कि “असम बचाओ’ के सत्याग्रह है तो उन्होंने उनका स्वागत किया। शरबत तथा ग्लुकोज का पानी पिलाया। उत्साह एवं उमंग के साथ सभी सत्याग्रही बारी-बारी से गुवाहाटी पहुंचे। अन्य बसों को प्राय: 40 कि.मी. दूर मेघालय की सीमा पर पहुँचाया गया। बस से उतारकर उन्हें लाठियां मार मारकर जंगल की ओर भगा दिया गया । स्थानीय लोगों में चर्चा थी कि शरद फूकन नाम के कुख्यात पुलिस अफसर के निर्देशन में यह काम हुआ। रात 8 बजे तक परेशानियों से जूझने के बाद ट्रक-बस-जीप आदि के द्वारा वे सभी सत्याग्रह गुवाहाटी लौट पाए।
इन सब आतंक की घड़ियों में भी सत्याग्रहियों की उमंग एवं रसिकता कम नहीं हुई थी । सत्याग्राहियों को ले जाने वाली एक बस रास्ते में बंद हो गई तो पुलिस के सिपाहियों को नीचे उतर कर बस को धकेलना पड़ा। अंदर बैठे सत्याग्रही नारे लगाने लगे–‘ एक धक्का और दो सैकिया को फेंक दो।’ पुलिस बौखला कर सत्याग्राहियों को लाठियां दिखाने के बाद पुनः बस धकेलने जाये तो फिर वही नारा लगता। यह क्रम कुछ देर चलता रहा।
नारों के कारण पुलिस के मन भी प्रतिक्रिया होती थी और कुछ सिपाही यह कहकर लाठियां चलाते थे लो लाठी गोली खाना चाहते हो न, खाओ लाठी। सत्याग्रह भी कम नहीं थे, जोश में आकर पुनः नारा लगाते, “लाठी गोली खाएगे, असम को बचाएंगे।’ जजेज फिल्ड में आधे घंटे तक जब बस नहीं आई तो सत्याग्राहियों ने नारा लगाना प्रारंभ किया- सैकिया की बस कहां, सैकिया बेबस यहाँ।’ “हम किसी से कम नहीं सैकिया में दम नहीं।’ सत्याग्रह के दौरान हरियाणा के एक छात्र ने अपनी जेब में रखी पिस्तौल की ओर संकेत करते हुए पूछ–“कहे तो पुलिस पर गोलियां चला दूं, मैं लाइसेंसधारी हूँ।” उसके जोश को होश में बदलना बड़ा कठिन था। परंतु वह मान गया। मध्यप्रदेश का एक सत्याग्रही अपनी जेब से राखी निकालकर पूछने लगा पुलिस अफसर को राखी बांध दूँ क्या? शायद उसका मन पसीज जाये, और वह लाठी फेंक दें। उसे भी संयम बरतने को कहा गया।
असम आंदोलन का केंद्र रहा गौहाटी विश्वविद्यालय; 33 वर्ष की आयु में देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने प्रफुल्ल कु. महंत। विश्वविद्यालय छात्रावास से सीधे पहुंचे मुख्यमंत्री आवास।
गौहाटी विश्विद्यालय शुरुआती दिनों से ही सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र रहा है। असम आंदोलन का भी केन्द्रबिन्दु आसू ने गौहाटी विश्विद्यालय के छात्रावास को ही बनाया।यह आंदोलन विश्विद्यालय के छात्रावासों से परिचालित होता था। धीरे-धीरे आंदोलन हिंसक होने लगा एवं 855 लोग पुलिस की गोली से मारे गए।इस समस्या के समाधान के लिए आसू, असम सरकार एवं  भारत सरकार के बीच असम एकार्ड हस्ताक्षर होने के बाद आसू ने “असम गण परिषद” नामक एक क्षेत्रीय राजनैतिक दल गठन कर विधानसभा चुनाव में भाग लिया था।1985 में हुए इस चुनाव में असम गण परिषद की जीत होती है एवं देश के इतिहास में ऐसा पहली बार होता है कि एक छात्र संगठन (आसू ) के अध्यक्ष रहे श्री प्रफुल्ल कुमार महंत मात्र 33 वर्ष की आयु में गौहाटी विश्विद्यालय छात्रावास से चुनाव जीतकर सीधा मुख्यमंत्री की शपथ लेते हैं एवं मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर असम की बागडोर संभालते हैं।लेकिन सत्ता में शामिल होते हीं असम गण परिषद अपनी असमिया जाति की रक्षा के लिए किए गए वादे एवम् संकल्प को सत्ता मद में भूल जाती है एवं आकंठ भ्रष्टाचार में डूब जाती है।अंग्रेजी इतिहासकार एवं  विचारक लॉर्ड ऐक्टन की एक प्रसिद्ध पंक्ति है “Power tends to corrupt, and absolute power corrupts absolutely” असम गण परिषद के साथ यह चरितार्थ होता हुआ दिखता है।
गौहाटी विश्वविद्यालय का चुनाव असम की राजनीति पर विशेष प्रभाव।
गौहाटी विश्विद्यालय के स्नातकोत्तर छात्र संघ चुनाव का पूरे असम के भीतर विशेष प्रभाव होता है।इस चुनाव के परिणाम के पर पूरे राज्यवासी की नजर होती है।भाषा आंदोलन एवं असम आंदोलन का नेतृत्व देने के कारण आसू का गहरा प्रभाव विश्विद्यालय के छात्र संघ में होता है। साथ ही साथ कांग्रेस की छात्र इकाई एन.एस.यू.आई, वामपंथी पार्टी का छात्र इकाई एस.एफ.आई. एवं असम गण परिषद की छात्र इकाई असम छात्र परिषद भी छात्र संघ चुनाव में भाग लेते आए हैं।
आसू के पुराने कार्यकर्ता जो सरकार या सत्ता में बैठे हैं या विश्विद्यालय प्रशासन में शामिल हैं, उनकी मदद भी आसू को आंतरिक तौर पर मिलती रहती है, जिससे आसू को विश्विद्यालय परिसर में और भी मजबूती मिलती है।किंतु समय-समय पर आसू के ऊपर तथाकथित रूप से क्षेत्रवाद के नाम पर भावना भड़का कर अराजकता फैलाने का एवं  डरा धमकाकर जबरन चंदा वसूलने का आरोप लगता है।जिस कारण आज असम की आम जनता एवं आम छात्र समाज का आसू के प्रति मोह भंग हो रहा है एवं धीरे धीरे आसू की लोकप्रियता आम छात्रों के बीच से कम होती जा रही है।
वही दूसरी ओर राष्ट्रवादी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जिसने एक समय असम आंदोलन के लिए आसू को समर्थन दिया था उसके कार्यकर्ता गौहाटी विश्विद्यालय के परिसर में छात्र हित के मुद्दों को लेकर समय-समय पर संघर्षरत रहे हैं।क्षेत्रवाद की भावना असम में प्रबल होने के कारण एबीभीपी का परिसर में कार्य करना आसान नहीं था, जहाँ कि आसू का मुख्य कार्यालय भी उसी परिसर में मौजूद है।
पहली बार गौहाटी विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में जीतकर परिषद ने किया छात्रों के लिए ऐतिहासिक कार्य।
विद्यार्थी परिषद के पूर्व कार्यकर्ता श्री समीरन फुकन जिन्होंने 1996 में गुवाहाटी विश्विद्यालय के छात्र संघ चुनाव में जीत दर्ज की थी ,जो अभी हैदराबाद के एक मल्टी नेशनल कंपनी में कार्यरत हैं बातचीत के दौरान बताते हैं कि 1996 में विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता जब गौहाटी विश्विद्यालय में कार्य करते थे तो उस समय आसू के लोग उन्हें रोकने के लिए हिंसा का भी सहारा लेते थे।उन्होंने अपने विद्यार्थी परिषद के दिनों को याद करते हुए बताया कि उसी वर्ष विद्यार्थी परिषद ने परिसर के भीतर 200 छात्रों को विद्यार्थी परिषद का सदस्य बनाया ज्ञात एवं छात्र संघ चुनाव में भाग लेते हुए वाद विवाद एवं  सम्मेलन सचिव के पद पर जीत दर्ज की गई एवं पहली बार विद्यार्थी परिषद के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर का अंतर विश्विद्यालय वाद विवाद प्रतियोगिता गौहाटी विश्विद्यालय में आयोजित होती है। उस समय के विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीमान दत्तात्रेय होसबले जो वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माननीय सरकार्यवाह हैं, उनका वक्तव्य “राष्ट्रनिर्माण में छात्र युवाओं की भूमिका” विषय पर विश्विद्यालय परिसर में आयोजित किया जाता था,जिसमें 96 विश्विद्यालय के छात्र-छात्रा भाग लेते हैं। विद्यार्थी परिषद के निवर्तमान राष्ट्रीय महामंत्री श्री वी. मुरलीधरण, जो वर्तमान में भारत सरकार में मंत्री हैं, उनका प्रवास भी गौहाटी  विश्विद्यालय में उस दौरान होता है।
उसके बाद समय जैसे जैसे बीतता गया आसू,एन.एस.यू.आई.,एस.एफ.आई. जैसे छात्र संगठनों का प्रभाव कम होता दिखता है एवं अधिकांश संस्थानों में विशेषकर कॉलेजों में विद्यार्थी परिषद की जीत होती गई। 2019 में गौहाटी विश्विद्यालय स्नातकोत्तर छात्र संघ चुनाव में विद्यार्थी परिषद ने महासचिव समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर जीत दर्ज की।
CAA आंदोलन में विद्यार्थी परिषद पर चलाया गया अत्याचार।
2019 में केंद्र सरकार द्वारा नागरिक संशोधनी कानून (CAA) लागू करने के विरोध में आसू पूरे असम के भीतर हिंसक आंदोलन करती है।जिसकी शुरुआत गौहाटी विश्विद्यालय एवं  कॉटन विश्विद्यालय से होती है।हिंसक आंदोलन के कारण 6 लोगों की जान चली जाती है एवं हजारों करोड़ों की संपति का नुकसान भी होता है। महीनों भर असम बंद होता है जगह-जगह आगजनी एवं हिंसा होती है।असम फिर से पुराने हड़ताल बंद अशांति की आग में झोंकता हुआ दिखता है।अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद,असम प्रदेश CAA का समर्थन करते हुए गुवाहाटी महानगर में एक रैली आयोजित करती है जिसमें हजारों छात्र छात्रा भाग लेते हैं। CAA का समर्थन करने के कारण विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं को आसू के लोग निशाना बनाते हैं।विद्यार्थी परिषद एवं संघ विचार परिवार के कार्यालय एवं  कार्यकर्ताओं के ऊपर हमले किए जाते है।सैकड़ों कार्यकर्ता अपने घर व कार्यालय छोड़ के पलायन करने पर विवश होते हैं। 2019 में विद्यार्थी परिषद की बढ़ती ताकत से चिंतित आसू CAA को ढाल बनाकर राष्ट्रवादी ताकतों को दबाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से परिषद व संघ कार्यकर्ता,कार्यालय एवं उनके घरों पर हमले करती हैं। परिषद के कार्यकर्ताओं ने इस परिस्थिति का डटकर सामना किया। CAA आंदोलन के बहाने से आसू के मंच से दूसरे राजनैतिक दल का जन्म होता है। तत्कालीन आसू के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई के नेतृत्व में “असम जातीय परिषद” नामक राजनैतिक दल का गठन होता है। लुरिनज्योति गोगोई के नेतृत्व में असम जातीय परिषद 2021 में असम विधानसभा चुनाव में उतरती है, पर एक भी सीट उस दल के हाथ नहीं लगती है, क्योंकि आसू द्वारा जन्म लिए राजनैतिक दल ए.जी.पी. के भ्रष्ट शासन को असम के लोग भूले नहीं थे।कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ आसू ने 1979 में असम आंदोलन किया था, जहां सैकड़ों लोग शहीद हुए थे। इसी आसू से जन्मे असम जातीय परिषद 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरी।पर अफसोस असम की जनता ने इस दल पर भरोसा नहीं दिखाया।अभी असम में होने वाले उप चुनाव में कांग्रेस से मिली उपेक्षा से असम जातीय परिषद आहत है एवं उनकी नाराजगी साफ दिखती है। लूरिन कांग्रेस को मनाने के लिए कई पैंतरे अपनाने में लगे है।लेकिन असम की जनता ने आसू द्वारा जन्म दिए गए असम गण परिषद द्वारा सत्ता में आने के बाद का हश्र देखा है,इसलिए आज ऐसे राजनैतिक दल पर इनका भरोसा नहीं है।
गौहाटी विश्विद्यालय में आसू एवम् एनएसयूआई ने एक विशेष प्रकार का चुनाव तंत्र खड़ा किया है। उनकी बनाई व्यवस्था में छात्रावास में अवैध रूप से रहने वाले सीनियर,सुपर सीनियर पूर्व छात्र पढ़ाई पूरी होने के बाद भी छात्रावास में रहकर चुनाव को संचालित करते हैं।इनके ऊपर आम छात्रों की रैगिंग एवम् डरा धमकाकर आसू के पक्ष में वोट डलवाने के लिए विवश करने का आरोप लगता हैं।वहीं दूसरी ओर एनएसयूआई धनबल, बाहुबल एवं  मुस्लिम वोट बैंक को पुष्ट करते हुए परिसर के छात्रावासों को नशा का अखाड़ा बनाया है एवं विशेषकर चुनाव के समय शराब,मांस पैसे इत्यादि बांटकर चुनाव को प्रभावित करने का हथकंडा अपनाता है। दोनों छात्र संगठन छात्रावास में रैगिंग के नाम पर छात्रों को नशाग्रस्त करने का षडयंत्र करते हैं , जिसकी शिकायत समय-समय पर छात्र विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को करते रहते हैं। इसी नशे का ही परिणाम है कि 2024 के छात्र संघ चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद रात्रि को दो छात्रावासों के बीच में खूनी संघर्ष होता है।
गौहाटी विश्वविद्यालय परिसर में CAA आंदोलन के नाम पर जब आसू और एन.एस.यू.आई करती है महावीर लाचित बरफूकन एवम् मां कामख्या का अपमान।
देश के अन्य राज्यों की तरह असम में भी विद्यार्थी परिषद कई रचनात्मक काम करती आई है। इसी प्रक्रिया में असम के अनेक शैक्षिक संस्थानों की तरह गौहाटी विश्वविद्यालय में भी परिषद छात्रों के सर्वांगीण विकास से संबन्धित कई कार्यक्रम करती आई है। 2023 के 18 मार्च को गौहाटी विश्वविद्यालय में परिषद की तरफ से छात्र नेता सम्मेलन का आयोजन किया गया था। उस वर्ष गौहाटी विश्विद्यालय एवं  अन्य कॉलेजों में हुए छात्र संघ चुनाव में विद्यार्थी परिषद के एक हजार से अधिक पदाधिकारी छात्र संघ चुनाव में अप्रत्याशित रूप से जीते थे।इन जीते हुए पदाधिकारियों का एक सम्मान कार्यक्रम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद असम प्रांत द्वारा 18 मार्च 2024 को गौहाटी विश्वविद्यालय के बिरिंची कुमार बरुआ (बी.के.बी.) सभागार में प्रदेश स्तरीय छात्र नेता सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें राज्य भर के विभिन्न महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों के हजार से अधिक छात्र एवं छात्र नेताओं ने भाग लिया। अभाविप द्वारा आयोजित इस सम्मेलन को विफल करने करने के लिए आसू और एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं ने CAA की आड़ कार्यक्रम स्थल में ही विरोध प्रदर्शन किए। दोनों पक्षों के बीच मारपीट भी होती एवं कार्यक्रम के बैनर में लगे असम गौरव महावीर लाचित बरफूकन एवं मां कामख्या की तस्वीर को आंदोलनकारियों न केवल फाड़े बल्कि उनके साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार करते हुए जलाया भी। अभाविप कार्यकर्ताओं ने उस समय धैर्य का परिचय देते हुए अपने सम्मेलन को जारी रखा। सम्मेलन में अभाविप के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. याज्ञवल्क्य शुक्ल उपस्थित थे। छात्र नेता सम्मेलन के मुख्य अतिथि शिक्षाविद् प्राध्यापक ननी गोपाल महंत थे जो वर्तमान में गौहाटी विश्विद्यालय के सम्माननीय कुलपति हैं। कार्यक्रम में नागालैंड विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री समुद्र गुप्त कश्यप भी उपस्थित थे।18 मार्च को गौहाटी विश्विद्यालय में मां कामाख्या एवं  लाचित बरफुकन को अपमानित कर वहां कि उज्जवल गरिमा को धूमिल किया गया। सभी शिक्षक एवं गौहाटी विश्विद्यालय प्रेमी शिक्षाविद् इस घटना से आहत हुए। उन्हें इस बात को लेकर ठेस पहुंचती है कि जिस आसू ने कभी असम को बचाने के लिए आंदोलन किया था वही आसू आज महावीर लाचित बरफूकन एवम् मां कामाख्या तस्वीर को अपने पैरों तले रौंद रही है।पूरे प्रदेश में एबीभीपी मां कामाख्या एवं  लाचित बरफुकन के अपमान के विरोध में प्रदर्शन करती है।
जब गौहाटी विश्वविद्यालय में लहराया भगवा परचम।
2024 में हुए गौहाटी विश्विद्यालय छात्र संघ चुनाव में एबीभीपी ने दबदबा बनाते हुए अध्यक्ष समेत 3 महत्वपूर्ण पदों पर जीत दर्ज की। छः महीने पूर्व गौहाटी विश्विद्यालय में महावीर लाचित बरफूकन और मां कामाख्या के अपमान की टीस का जवाब छात्रों ने बैलेट में प्रकट किया।लाचित विरोधी एनएसयूआई एवं आसू को छात्रों ने पूरी तरह से छात्र संघ चुनाव में नकार दिया।पूर्वोत्तर भारत के प्रतिष्ठित गौहाटी विश्विद्यालय में हुए छात्र संघ चुनाव में विद्यार्थी परिषद ने पहली बार अध्यक्ष पद जीत कर इतिहास रच दिया।गत 26 सितंबर को हुए गौहाटी विश्विद्यालय स्नातकोत्तर छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद पर विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी “फी बेवर बॉय” के नाम से प्रसिद्ध मानस प्रतीम कलिता गौहाटी विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर छात्र संघ (PGSU) के चुनाव में जीत हासिल की है। मानस गरीब छात्रों के सस्ती शिक्षा के लिए लंबा एवम् चरणबद्ध आंदोलन करते हुए संघर्ष करते हैं एवम् गरीब छात्रों को उनका हक दिलाते हैं।गरीब छात्रों के लिए राज्य सरकार द्वारा शुल्क माफ करने का निर्णय होता है,परंतु उस निर्णय को विश्विद्यालय प्रशासन लागू करने में आनाकानी करती है।उनकी हक की मांग को लेकर मानस असम सरकार के शिक्षा मंत्री डॉ.रनोज पेगू से मिलकर ज्ञापन सौंपते हैं एवम् राज्य सरकार के निर्णय को विश्विद्यालय प्रशासन द्वारा टालने के विषय को लेकर अवगत कराते हैं। विश्विद्यालय परिसर में भी मानस इस विषय को लेकर आंदोलन का नेतृत्व करते हैं।अंत में प्रशासन गौहाटी विश्वविद्यालय में फ़ी वेवर नोटिफिकेशन भी जारी करती है, जिसमें छात्रों को फ़ीस में छूट देने के प्रावधान किए गए जाते हैं। यह कदम गरीब छात्रों को सस्ती शिक्षा प्रदान करने के लिए उठाया गया है। छात्र संघ चुनाव में मानस प्रतीम कलिता ने एनएसयूआई के प्रत्याशी अंकुर ज्योति भराली को 573 मतों से करारी शिकस्त दी है। चुनाव में कुल हुए 2483 मत में विद्यार्थी परिषद के निर्वाचित अध्यक्ष मानस प्रतीम कलिता को 50 प्रतिशत से भी अधिक यानी 1258 मत प्राप्त हुए। वहीं एनएसयूआई के प्रत्याशी अंकुर ज्योति भराली एवं  आसू के प्रत्याशी कीर्ति कमल डेका को क्रमशः 685 और 447 मत प्राप्त होते हैं।गौहाटी विश्विद्यालय जिसे आसू एवं एनएसयूआई का गढ़ माना जाता था, वहां छात्रों ने आसू एवं एनएसयूआई को परास्त करते हुए विद्यार्थी परिषद को चुना। गौहाटी विश्वविद्यालय जहां कहा जाता था कि छात्रावास के बाहर रहने वाला छात्र कभी चुनाव नहीं जीतता वहां मानस प्रतीम कलिता जिन्होंने पहले ऐसे अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर निर्वाचित होने वाले छात्र बने, जो छात्रावास प्रत्याशी नहीं थे।छात्रावास नेक्सस को ध्वस्त करते हुए मानस प्रतीम कलिता ने बड़ी जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया एवं सभी छात्र चाहे वह छात्रावास का निवासी हो या न हो उनकी बुलंद आवाज के रूप में उभरा है।
छात्र राजनीति ले रही अलग करवट;क्षेत्रवाद से राष्ट्रवाद की ओर अग्रसर असम।
आज गौहाटी विश्विद्यालय की छात्र राजनीति अलग करवट लेती हुई दिखाई दे रही है।विश्विद्यालय कि एक लंबी परंपरा जहां आम छात्र अपना स्वतंत्र रूप से प्रतिनिधि नहीं चुन पाते थे तो विश्विद्यालय के मठाधीश बने सीनियर सुपर सीनियर चुनाव को प्रभावित करते थे।वहीं दूसरी विद्यार्थी परिषद द्वारा परिसर में किए गए कार्य जैसे  चाहे वह विश्विद्यालय के छात्रों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य शिविर हो या प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन हो आम छात्र आज ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थी परिषद के विचारों से जुड़ता प्रतीत होता है।हाल हीं में महान संत श्रीमंत शंकरदेव जी की पुण्यतिथि पर विश्विद्यालय परिसर में विद्यार्थी परिषद द्वारा नाम कीर्तन का आयोजन किया गया। विश्विद्यालय का आम छात्रों के बीच ऐसे कार्यक्रम के माध्यम यह संदेश गया कि श्रीमंत शंकरदेव सिर्फ असम के संत नहीं तो पूरे देश को भक्तिमार्ग का दिशा देने वाले संत हैं।
महावीर लाचित बरफूकन के जन्म के 400 वां वर्ष में पूरे देश में लाचित बरफूकन के कार्यक्रम आयोजित किए गए।लाचित बरफूकन सिर्फ असम के नायक नहीं अपितु उनका शौर्य,पराक्रम,त्याग,उत्कट राष्ट्रप्रेम पूरे देश को प्रेरित करने वाला है। जयपुर में आयोजित विद्यार्थी परिषद के 68 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में महावीर लाचित बरफूकन की प्रतिमूर्ति लगाकर देश भर को उनकी वीरता, साहस एवम् राष्ट्रप्रेम का संदेश दिया गया। आज सिर्फ असम नहीं अपितु पूरा देश महावीर लाचित बरफुकन के पराक्रम के बारे में जनता है इसमें विद्यार्थी परिषद की भी एक बड़ी भूमिका रही है।आज असम का छात्र अपनी वास्तविक पहचान को लेकर के सजग दिखता है। जिस प्रकार से महावीर लाचित बरफूकन ने मुगलिया ताकतों को कभी पूर्वोत्तर भारत में पैर रखने नहीं दिया इस शौर्य पर वह गर्व करता है।
आज गौहाटी विश्विद्यालय स्नातकोत्तर छात्र संघ चुनाव 2024 का परिणाम यह दिखाता है कि अगर छात्र हितों के लिए संघर्ष किया जाए एवम् अपनी परंपरा संस्कृति महापुरुषों की गरिमा की रक्षा की न सिर्फ बातें की जाए तो इस हेतु कार्य किए जाएं तो आम छात्र ऐसे विचारधारा को प्रचंड बहुमत से जिताने का कार्य करता है। आज समय बदलता हुआ दिखाई देता है।आज का छात्र बदलते हुए पूर्वोत्तर एवम् असम को अपनी आंखों से देख रहा है।एक समय बार बार बंद एवं हड़ताल की भेंट चढ़ने वाला असम विकाश के रास्ते पर देश से कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है।चाहे सड़क मार्ग हो या हवाई मार्ग या जलमार्ग हर तरह से असम विकाश के सही रास्ते पर है।स्वावलंबिता की दृष्टि से देखे तो सेमीकंडक्टर का प्लांट असम में लगना असम में युवाओं को रोजगार प्रदान करने की दृष्टि से बहुत बड़ा कदम है।आज असम का छात्र राष्ट्रवाद के विचार से जुड़कर आत्मनिर्भर,स्वावलंबी एवं अपनी असमिया परंपरा संस्कृति की रक्षा करते हुए समृद्ध असम के सपने को साकार होता हुआ देख रहा है।
आखिर क्यों बदल रहा असम का युवा मन?
आज छात्र क्षेत्रवाद के नाम पर भावनाएं भड़काकर अपनी राजनैतिक रोटी सेकने वाली परंपरा से ऊब चुका है। तो सिर्फ बातें नहीं तो वास्तविक अर्थ में कार्य करने वाले कौन है।विकाश का समर्थन करने वाली ताकतें कौन हैं वहीं दूसरी ओर क्षेत्रवाद का ढाल बना कर विकाश को रोकने वाले कौन हैं। मातृभाषा में शिक्षा की बात आती है तो कौन लोग हैं जो सिर्फ विरोध के लिए आंदोलन करते हैं और कौन लोग समाधान तक के लिए आंदोलन करते हैं।आज का छात्र वास्तविकता में जीता है इसलिए असम हित में राष्ट्रहित में वह क्षेत्रवाद से राष्ट्रवाद की ओर बढ़ता हुआ दिखता है।
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(श्री अनूप कुमार, लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), असम प्रदेश के प्रदेश संगठन मंत्री हैं।)

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