Chhath Puja 2024: छठ पूजा में भगवान सूर्य देव के साथ छठी मैया की भी पूजा की जाती है। तो आइए जानते हैं कि छठी मैया कौन हैं और उनकी पूजा का क्या महत्व है।
Chhath Puja 2024: देशभर में महापर्व छठ की छटा देखने को मिल रही है। छठ के पावन और सुंदर गीत से हर घर छठ पूजा के रंग में रंगा हुआ नजर आ रहा है। छठ सभी व्रत में सबसे कठिन माना जाता है। इसमें महिलाओं को पूरे 36 घंटे का निर्जला उपवास रखना पड़ता है। छठ का पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उषा अर्घ्य दिया जाएगा। छठ पूजा में भगवान सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है। तो आइए आज जानेंगे कि छठी मैया कौन हैं और इनकी भगवान भास्कर के साथ क्यों पूजा की जाती है।
छठी मैया कौन हैं?
छठी मैया की पूजा करने से संतान दीर्घायु होते हैं और उनका जीवन सदैव खुशियों से भरा रहता है। छठी मैया को सूर्य देव की बहन माना जाता है। इसलिए छठ पूजा में भगवान सूर्य देव के साथ छठी मैया की पूजा की जाती है। आपको बता दें कि जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो 6 दिन बाद बच्चे की छठी यानी छठिहार किया जाता है। मान्यता है कि इस 6 दिन के दौरान छठी मैया नवजात बच्चे के पास रहती हैं और उसपर अपनी कृपा बरसाती हैं। छठी मैया बच्चों की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा को सूर्य षष्ठी, छठ, छठी, छठ पर्व, डाला पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। छठ पूजा के दौरान सूर्य देव की पूजा करने से सुख, समृद्धि, सफलता और निरोगी शरीर की प्राप्ति होती है। छठी मैया की उपासना करने से संतान दीर्घायु होते हैं और परिवार में संपन्नता और खुशहाली बनी रहती है।
छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। राजा ने रानी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति तो हुई लेकिन वह बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद अपने मृत्य पुत्र के शरीर को लेकर श्मशान ले गया और पुत्र वियोग में अपने भी प्राण त्यागने लगा। तभी भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई। उन्होंने प्रियंवद से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। हे राजन! तुम मेरा पूजन करो और दूसरों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से सच्चे मन से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। तब से लोग संतान प्राप्ति के लिए छठ पूजा का व्रत करते हैं।