हर समाज अपने अपने तरिके से परंपरागत कमोबेश अपने त्यौहार मनाने युगपुरुसों की जन्मजयंती मनाने के साथ साथ होली दिवाली मिलन के अलावा जनहित के लिए भी अपनी क्षमता एवं भक्ति के अनुसार काम करते हैं इससे उनके शहर के लोगों को विशेषकर गरीब एवं जरूरत मंद लोगों को राहत मिलती है। प्याऊ परंपरा अग्रवाल समाज के समाजवादी राजा अग्रसेन महाराज ने शुरू की थी कुंए बाबङी बनाकर कोसों दूर चलने वाले राहगीरों को विश्राम करने एवं जीभर कर पानी पीने के लिए परंपरा चलाई जो आज अन्य समाज संगठन एवं कल्ब अधिकाधिक चला रहे हैं। इसमें खर्च कम परिश्रमी अधिक होता था लेकिन आजकल सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए पदाधिकारियों की टोली अवश्य आती है पानी रेडिमेड पिलाने वाले श्रमिक फिर भी सराहनीय कार्य किया जाता है। संस्थानों द्वारा उन प्रतिष्ठित एवं सैंकड़ों सम्मान प्राप्त लोगों को ही सम्मानित किया जाता है जो उचित नहीं है। जो जमीनी काम करते हैं बिल्कुल निशुल्क उनकी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाता सिर्फ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गया जो उन श्रमिकों को सम्मानित करने के साथ साथ स्वयं साथ बैठकर खाना भी खाते हैं।स्वादिष्ट व्यंजनों के धार्मिक आयोजन एवं भंडारों में आमंत्रित अतिथि एवं जानेमाने चेहरों को अलग कक्ष में भोजन कराया जाता है। गरीब अनजान अथवा भिखारी को फटकने तक नहीं दिया जाता। हाँ बचे हुए मिष्ठान की बंदरबांट करने के बाद चावल दाल पुङी शब्जी जरूर गरीब लोगों में वितरित की जाती हैं लेकिन स्वादिष्ट व्यंजन पर आयोजकों एवं संभ्रांत नागरिकों का ही अधिकार होता है।
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- Admin
- November 7, 2024
- 5:14 pm
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मान सम्मान वंचित उपेक्षित ऐसे सितारों का करें जिन्होंने जमीनी काम किया– मदन सुमित्रा सिंघल
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