अजीज बाशा बनाम भारत सरकार
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद सबसे पहले 1965 में शुरू हुआ। 20 मई 1965 को केंद्र सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन किया था। इससे संस्थान की स्वायत्तता को खत्म कर दिया गया था। बाद में सरकार के फैसले को अजीज बाशा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
संशोधन से एएमयू को मिला अल्पसंख्यक दर्जा
972 में केंद्र की सत्ता पर इंदिरा गांधी काबिज थीं। उनकी सरकार ने भी माना की एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। मगर बाद में विश्वविद्यालय ने इसका विरोध किया। बाद में केंद्र सरकार ने 1981 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम पारित किया। इसके बाद एएमयू को अपना अल्पसंख्यक दर्जा वापस मिल गया था। मगर 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 1981 के उस प्रावधान को भी रद कर दिया जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था। तत्कालीन यूपीए सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। विश्वविद्यालय ने भी एक अलग याचिका शीर्ष अदालत में दाखिल की। 2019 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों वाली पीठ को भेजा गया था।
फैसले पर बंटे जज
सात न्यायाधीशों की पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूर्ण, जस्टिस संजीव खन्ना, जेडी पारदीवाला और मनोज मिश्रा ने बहुमत में फैसला सुनाया। जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और सतीश चंद्र शर्मा ने अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ अपनी राय व्यक्त की।